कर्मानंद आर्य की कविताएं
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कर्मानंद आर्य |
शिक्षा एक बड़ी ताकत है। यह हमें उस ज्ञान से लैस करती है जो हमें अच्छे और बुरे में फर्क करना सिखाता है। यह ज्ञान जब आता है तब हम तमाम जड़ताओं से मुक्ति पा जाते हैं। दिक्कत यह है कि हमें आज जो शिक्षा मिलती है वह क्या हमारे अन्दर मानवीय मूल्यों का संचार कर पाती है। शिक्षित होने के बाद भी हम जातीय, धार्मिक, क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहते हैं। आजादी के 78 वर्ष बीत जाने के बावजूद समाज का दलित तबका आज भी वह मानवीय स्वाभिमान पाने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो मनुष्य होने के नाते उसका स्वाभाविक और प्राथमिक हक है। तो क्या हम आज भी सही मायने में मनुष्य बन पाए हैं। परिवर्तन तो सृष्टि की अवश्यंभावी सच्चाई है। वह लगातार हो रहा है और आगे भी अपने तरीके से होता ही रहेगा। परिवर्तन के प्रवाह को कुछ समय के लिए तो अवरुद्ध किया जा सकता है लेकिन उसे रोका नहीं जा सकता। कवि कर्मानंद आर्य अपनी कविता 'सावित्री बाई फुले' में लिखते हैं : 'परिवर्तन की राहों में/ कांटे बहुत होते हैं/ चुभते हैं, दर्द देते हैं/ गड़ जाते हैं हाथ, पैर, कान, आंख, नाक, देह में/ कांटे हमारे समाज की सच्चाई हैं/ वे हमारे जीवन से अलग नहीं जा सकते/ हमें बनाते हैं मजबूत'। ये कांटे दलित समाज की सच्चाई हैं। लेकिन इसी को अब वे अपनी मजबूती बना रहे हैं। कविता की दुनिया में कर्मानंद आर्य ने कथ्य और शिल्प की बदौलत अपनी एक अलहदा पहचान बनाई है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कर्मानंद आर्य की कुछ नई कविताएं।
कर्मानंद आर्य की कविताएं
जो प्यार करते थे मुझे
मेरे एक कदम बढ़ाने पर
जो बढ़ा लेते थे अपना एक कदम
मेरे गिरने पर करते थे
गिर जाने का नाटक
जो गुलेल की तरह भिड़ जाते थे
सुदूर किसी निशाने पर
जिसका होना मौसम का खुश मिजाज होना था
अब वे दोस्त कहाँ चले गए
चंदा
सूरज, टोनी, मोनी
जो भैंस चरा कर लौटे तो
माँ ने पुकार लिया चारा काटने
दोस्तों की चाल जाती रही
उनकी पिता वाली हॉक से
आम की एक टिकौली क्या तोड़ डाली
नायक बन गए किसी डोली के
घर का बोझ उठाने वाले
वे दुलरुआ कहार कहाँ चले गए
उनकी साइकिलें कौन कबाड़ी ले कर चला गया
वे समुद्र में खो गए
आसमान में ड्रोन ने लील लिया उनका जीवन
वे किसान हो गए
कि पहचान में नहीं आते अब
या भर्ती हो गए किसी श्रीरामी सेना में
बिजनेस मैन तो नहीं हो सकते मेरे दोस्त
कविता पढ़ने वालों
यह पैगाम उन दोस्तों को जरूर पहुँचा देना
शहर की भीड़ भरी इस गली में
जानकार तो बहुत हैं
पीछे घूमने वालों का तांता लगा हुआ है
पर अपना कौन है यहां
मिले कोई दोस्त तो
कहियेगा दिल का हाल
उनके उन कदमों के बारे में पूछिएगा
जो नाच देखने निकल जाते थे चुपके से
सावित्रीबाई फुले
देश में अशिक्षा है
पर लंबे समय तक किसने सबको अशिक्षित रखा
उन धूर्त लोगों की कारस्तानियों पर कोई बात नहीं करता
तुच्छ स्वार्थी लोगों ने गढ़ी किताबें
अपना राज्य चलाने के लिए नरक बना दिया देश को
पहचानो अब वे कहां हैं
क्या कर रहे हैं
किस सावित्री को कुचल रहे हैं
धर्म के नाम पर जलाया गया स्त्रियों को
विधवाओं को जलाया गया
दूध पीती बच्चियों को मारा गया
जबरदस्ती आग में बैठा कर उन्हें बनाया गया सती
देव दासी बनाया गया
किनकी धूर्तता पर हुआ यह जघन्य अपराध
आज कहां हैं वे अपराधी
लाखों महिलाओं के हत्यारे
किस स्त्री को पढ़ा रहे हैं कुपाठ
गोबर कीचड़ तो छोटी बात है
जो शरीर पर लगे और धुल जाए
उस गोबर और कीचड़ का क्या करें
जो मानसिक विकलांग धूर्तों के मन में
आज भी भरी हुई है
देश को गर्त में ले जाना उनका स्थाई भाव है
क्या लिखा है उनकी किताबों में
जो तुम्हारे बारे में
तुम्हारे किए गए उपकारों को
एक शब्द नहीं दे पाए
वे अंधकार के वंशज आज भी तुम्हें
फूलों का व्यापार करने वाला एक माली समझते हैं
सावित्रीबाई
वे तुम्हारे बारे में और क्या लिख सकते थे
खानदानी धूर्तता ही है जिनकी पहचान
जो आज भी देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं
और सदियों का सड़ा गला ज्ञान बांट रहे हैं
धन्यवाद माई। सावित्रीबाई
तुमने करोड़ों को सोचना सिखा दिया
जो अनपढ़ थे उन्हें पढ़ा दिया
परिवर्तन का नीला ध्वज फहरा दिया
आज स्त्रियां पढ़ रही हैं
तुम्हारा ही करम है वे आगे बढ़ रही हैं
देश से कुशिक्षा भाग रही है
वंचितों की चेतना जाग रही है
2
परिवर्तन की राहों में
कांटे बहुत होते हैं
चुभते हैं, दर्द देते हैं
गड़ जाते हैं हाथ, पैर, कान, आंख, नाक, देह में
काटे हमारे समाज की सच्चाई हैं
वे हमारे जीवन से अलग नहीं जा सकते
हमें बनाते हैं मजबूत
समाज के कांटों को अपने आईना दिखा दिया
शिक्षा की सच्ची देवी सावित्री
आपने कांटों को रास्ता दिखा दिया
3
फुले दंपति
फूलों के व्यापारी
फुले ने कहा हम फूल ही नहीं कांटा भी उगाते हैं
हम सिर्फ खुशबू नहीं बांटते, चुभ भी जाते हैं
चुभ जाते हैं उनकी आंखों में
जो समाज के दुश्मन हैं
हमने दुश्मन को पहचान लिया है
शिक्षा का फंदा उनके गले डाल दिया है
थोथे ज्ञान की दुंदुभी बजाने वाले
अज्ञानी धूर्त
जहां तहां मुंह छुपा रहे हैं
अब वे भी फुले फुले चिल्ला रहे हैं
पड़ताल
मृत्यु पर नहीं
यह जीवन पर लिखने का समय है साथी
कठिन से कठिन समय
दुलत्ती खा कर भाग जाता है
फिर यह ऐसा समय भी तो नहीं
कि हथियारों से खाली हो आपका किला
कि यह ऐसा भी तो समय नहीं
मृत्यु को प्राप्त हो गए हों सैनिक
कि यह ऐसा भी समय नहीं है
भुजाएं काट दी गई हों आपकी
यह वही समय है
अब तक का सबसे ठंडा समय
अब तक का सबसे शांत वातावरण
उठो और मृत्यु को नकार दो
मृत्यु पर नहीं
यह जीवन पर लिखने का समय है साथी
क्या कह रहे हो खोखा मांझी
दुनिया बदलने में देर लगेगी
क्या कह रहे हो खोखा मांझी
ब्राह्मण ब्राह्मणों के लिए मर रहा है
ठाकुर ठाकुरों के लिए जर रहा है
बनिया कहता है बनियों की बात
दलित समझ चुका है आरक्षण की औकात
हर जाति का एक नेता
हर जाति का एक उपनेता
कहानी जाति से शुरु हो कर जाति तक आती है
इसी तरह से दुनिया बार बार ठगी जाती है
झूठ है विरासत साझी
क्या कहते हो खोखा मांझी
मांग और महार आपस में लड़ रहे हैं
दुखिया की मेहनत से बबुआन के कोठे भर रहे हैं
मनरेगा, इंदिरा आवास एक बहाना है
खजाना तो बबुआन के घर में भरा जाना है
एक काम करो खोखा मांझी
भेदभाव की दुनिया को आग लगा दो
भेड़ियों का लिंग काट शिव पर चढ़ा दो
स्वच्छता अभियान से गंदगी नहीं जायेगी
कुछ भी कहो हम भंगियों की जान जायेगी
शिक्षित वे तुम्हें होने नहीं देंगे
वे तुम्हारा संगठन चला रहे हैं
तुम्हारे बीच घुस कर वे अभी तुम्हारा नारा लगा रहे हैं
तुम्हारे संघर्ष को जहर पिला रहे हैं
दुनिया बदलने में देर लगेगी
कितनी पीढियां हमारी और जलेंगी
पीढियां जेलों में सड़ जाएंगी
बोलो खोखा मांझी वे भेदभाव पर आग कब लगायेंगी
लपटों से घिरा हुआ है संसार
खुद को सलामत रखना ही है तुम्हारा कारोबार
तुम्हारी बारी
मृत्यु के देवता ने कहा
शिक्षालयों से ख़बरें कम आ रही हैं
अभी और दलित मारे जाने चाहिए
पीठिका तैयार कर लो
दरवाजों पर लगा दो ताला
रास्ते बंद कर दो
शत प्रतिशत आरक्षण दो
कहीं कोई कमी न रह जाए
पीठासीन अधिकारी को बता दो टारगेट
काम समय पर पूरा होना है
तमगा मिलेगा
कुछ और दलित मारे जाने चाहिए
कुलपति सचिवालय में तैनात कर दिए गए हैं कर्मचारी
डीन आफ स्टूडेंट वेलफेयर को अलर्ट कर दिया गया है
चीफ प्रॉक्टर हनीमून से लौट आये हैं असमय
मंत्रालय से जारी हो चुका है सर्कुलर
सफाई अभियान जारी रहे
चिंतित हैं कुलगुरु
कल तक जो चमरौधा बनाते थे
वे आज करने लगे हैं बराबरी
मिल गई है उन्हें नौकरी
क्या हमारा बुरा वक्त भी आएगा
हमारा चमरौधा हमें काट खायेगा
प्रोफेसर गुट बना रहे हैं
अपने चेलों को धार देना सिखा रहे हैं
मृत्यु के देवता का फरमान तारी है
मेरे बच्चों अबकी बार तुम्हारी बारी है
वे जो आरक्षण मांग रहे हैं
जरुरी नहीं है वे गरीब हों
जो आरक्षण मांग रहे हैं
जरुरी नहीं है वे जाहिल और अपढ़ हों
यह भी जरुरी नहीं
उन्होंने लंबे समय तक सहा हो अपमान
कोई गारन्टी नहीं है
आरक्षण उन लोगों के लिए भी है
जिनका हक़ मार गए दूसरे
जिनकी पीढ़ियों को मिल नहीं पाया प्रतिनिधित्व
जो मानव सूचकांक में आज भी पीछे हैं
जिनके लिए न्याय का दरवाजा बंद है
जिन्हें पुलिस आज भी चोर-उचक्का मानती है
जो कम मनुष्य हैं
दुष्टों और कसाइयों को शतप्रतिशत मिले आरक्षण
यही कामना है
उन्हें मिलना चाहिए उनका हक
वे जो सड़कों पर उतर कर मार खा रहे हैं
उनसे पूछा जाना जरूरी है
उन्हें बताया जाना भी जरुरी है
आरक्षण गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं
वह प्रतिनिधित्व का मसला है
अगर तुम्हारा प्रतिनिधित्व नहीं है
तो आगे आओ और छीन लो रास्ता
कब्जेदारों को उखाड़ फेंको
नौकरियां पीढ़ी दर पीढ़ी किसी की बपौती नहीं
और हर बार मार खाना
किसी के नाम का पेटेंट नहीं है दोस्त
आओ मिल कर लड़ो वह लड़ाई
जो प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष कर रही है
जो अभी तक आरक्षण के सहारे जिन्दा है
उसका साथ दो
मार खा कर खुद को मजबूत करो
समय की मांग है आरक्षण छीन लो
वह खैरात नहीं
प्रतिनिधित्व का सवाल है
(पटना में आरक्षण की मांग पर मार खाते सवर्णों को समर्पित)
देर रात गए
पांच करोड़ होंगे या दस करोड़
पांच अरब होंगे या दस नील खरब
आसमानी तारों की तरह
होंगे खिलखिलाते
अलग अलग जगहों में कर रहे होंगे कोई न कोई काम
जोत रहे होंगे हल
चला रहे होंगे कुदाल
ईंट के भट्ठों पर ढो रहे होंगे बोझ
होंगे चुप जाति और धर्म के सवाल पर
एक रहनुमा जो हांक देता है पशुओं को
चरागाहों की तरफ
वह शाम को ही बुलाता है
हम भी हांक दिए गए होंगे असमय
हमारा मालिक कर रहा होगा पूजा पाठ
सीख रहा होगा धोखा
बना रहा होगा जमीन हड़पने की चाल
या किसी बकरी के बच्चे पर होगी टेढ़ी नजर
वहीं हम
जोत रहे होंगे हल
चला रहे होंगे कुदाल
थक कर पड़ चुके होंगे निढाल
हमारा मालिक नोट गिन रहा होगा
देर रात के अँधेरे में
घ्राण शक्ति
बहुत तेज है आपकी घ्राण शक्ति
दूर पक रही किसी की रसोई में बिना गए
आप बता देते हैं
खीर पक रही है या पक रही है गाय
विचार पक रहे हैं या आंदोलन
तेज है आपकी घ्राणशक्ति
एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड तक
सब सूंघ लिया है
जान लिया है सबका स्वाद
ब्रह्मानंद सहोदर की पीठिका तक
लिख डाली है तुमने
सूंघ कर ही करते हो तुम इलाज
अपना बनाते या छोड़ देते हो हालात पर
देखते हो चमड़ी दमड़ी का रंग
तुम्हारे लिए बहुत कठिन नही है
पता करना मेरा जातीय इतिहास
मेरे पितरों की संस्कृति
मेरे आत्मपुरुषों की सरणियाँ
पहचान का संकट नहीं है
आप चाहो तो एक मिनट में
सूंघ कर पता लगा सकते हो मेरी प्रजाति
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
मोबाइल : 8863093492
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