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कमल जीत चौधरी के संग्रह पर ख़ुदेजा ख़ान की समीक्षा 'लोकधर्मिता के पक्ष में खड़ी कविताएँ

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न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली ने  'समकाल की आवाज़: चयनित कविताएँ'  शीर्षक से कुछ कवियों की कविताएं प्रकाशित की हैं। यह एक स्तुत्य प्रयास है। इसी क्रम में हिन्दी के महत्त्वपूर्ण युवा कवि कमल जीत चौधरी का संग्रह  हाल ही में    प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है  कवि समीक्षक  ख़ुदेजा ख़ान  ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  कमल जीत चौधरी के संग्रह पर  ख़ुदेजा ख़ान  की समीक्षा  'लोकधर्मिता के पक्ष में खड़ी कविताएँ'। 'लोकधर्मिता के पक्ष में खड़ी कविताएँ' ख़ुदेजा ख़ान हमारा रास्ता आम नहीं है, लेकिन यह आम लोगों के हक़ में जाता है इस पर चलते हुए जिस मूल्य को अर्जित किया है वह अमूल्य है। यह तो एक इतिहास है, एक लौ है। मैं शिक्षण, प्यार व कविता के अंदर और बाहर एक जैसा हूं, रहना चाहता हूं। यह मेरी ताकत है और परीक्षा भी। युवा कवि कमलजीत चौधरी 'समकाल की आवाज़' 2022 में अपनी 60 चयनित कविताओं के संग्रह के आत्म वक्तव्य में जब यह बात कहते हैं तो एक जेनुइन कवि की छवि उभरती है, इस आश्वस्ति के साथ कि कवि की जनोन्मुखी, लोग धर्मी प्रतिबद्धता कविता में स्था

वाज़दा ख़ान के संग्रह पर यतीश कुमार की समीक्षा

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  ज़िंदगी में रंगों की अहम भूमिका होती है। बेरंग दुनिया कोई नहीं चाहता। ये रंग जीवन को कुछ अपनी तरह से ही गढ़ते हैं। ये रंग मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं। हालांकि ये रंग कुदरती हैं लेकिन हम मनुष्यों ने इन्हें भी बांट दिया है। लेकिन रंग कहां मानने वाले। वे अपना काम अपनी तरह से करते रहते हैं। वाज़दा खान हमारे समय की ऐसी कवयित्री हैं जो शब्दों और तूलिका के बीच सहज आवाजाही करती रहती हैं। वाज़दा खान का हाल ही में एक नया कविता संग्रह 'खड़िया' नाम से आया है। इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है यतीश कुमार ने। यतीश कुमार एक कवि हैं और गद्य लिखते हुए भी उनका काव्यमय प्रवाह सहज ही दिखाई पड़ता है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं  वाज़दा खान के कविता संग्रह  'खड़िया' पर यतीश कुमार की समीक्षा 'रंगों से एक लंबी बात-चीत का फ़लसफ़ा'। समीक्षा रंगों से एक लंबी बात-चीत का फ़लसफ़ा यतीश कुमार एक चित्र हजारों शब्द को बयां करता है और भावनाओं को प्रस्तुत करता है। किसी का हाथ साहित्य और कला दोनों ही विधाओं में बराबर सधा हो तो इसे विरल संयोग ही कहा जाएगा। कवि-चित्रकार वाज़दा को पढ़ते हुए ऐसा बार

वाचस्पति का रिपोर्ताज 'बांदा-सम्मेलन के पचास वर्ष'

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लेखक सम्मेलनों की हमेशा अपनी एक उपादेयता होती है। इसी क्रम में समय समय पर अपने यहां लेखक सम्मेलनों का आयोजन होता रहा है। केदार नाथ अग्रवाल जब तक जीवित रहे, रचनाकारों के लिए उनकी जन्मभूमि बांदा एक तीर्थ की तरह रही। इसी बांदा में केदार जी की पहल पर 1973 में लेखक सम्मेलन का आयोजन किया गया। हिन्दी के अनेक रचनाकार इस सम्मेलन में अपने खर्च पर आए और शामिल हुए। आगे चल कर इनमें से कई रचनाकार हिंदी साहित्य की मुख्य धारा में शामिल हुए। यही नहीं बाद में बने कई लेखक संगठन भी परोक्ष रूप से इस बांदा सम्मेलन की ही देन थे। वाचस्पति जी के पास संस्मरणों और चित्रों का एक अनमोल खजाना है। उनके पास एक बेशकीमती पंचायती डायरी भी है जिसमें अनेक रचनाकारों ने खुद अपनी लिखावट में अपनी बातें लिखी हैं। बांदा सम्मेलन से जुड़ा यह रिपोर्ताज और इसकी कुछ अमूल्य तस्वीरें हमें वाचस्पति जी ने उपलब्ध कराई हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं  वाचस्पति का रिपोर्ताज 'बांदा-सम्मेलन के पचास वर्ष'। बांदा-सम्मेलन के पचास वर्ष वाचस्पति "अखिल भारतीय प्रगतिशील साहित्यकार सम्मेलन" बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले में 22

सुनील कुमार पाठक का भोजपुरी आलेख 'छपरा के बच्चू बाबा आ उहाँ के कविता'

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  बच्चू पांडेय  हिन्दी का आकाश उसकी स्थानीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, ब्रज, अवधी, बुन्देली आदि से जगमग है। कई ऐसे रचनाकार हैं जो अपनी स्थानीय बोली भाषा में लिखने के साथ साथ हिन्दी में भी साधिकार लिखते रहे हैं। ऐसा ही एक नाम बच्चू पांडेय का है। वे बच्चू बाबा नाम से कहीं अधिक ख्यात थे।  पांडेय जी ने हिन्दी के साथ साथ भोजपुरी में भी बेहतर लिखा है। उनकी भोजपुरी कविताओं पर एक गहन दृष्टि डाली है कवि सुनील कुमार पाठक ने। आज विश्व मातृ भाषा दिवस पर बधाई देते हुए हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं सुनील कुमार पाठक का भोजपुरी आलेख 'छपरा के बच्चू बाबा आ उहाँ के कविता'। 'छपरा के बच्चू बाबा आ उहाँ के कविता' सुनील कुमार पाठक                     सारण (छपरा) जिला के साहित्यिक परम्परा बहुत समृद्ध रहल बिया। प्रिन्सिपल मनोरंजन प्रसाद, आचार्य शिवपूजन सहाय, प्रो. जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज', इज्तबा हुसैन रिजवी, हरेन्द्र देव नारायण, कविवर कन्हैया, मूसा कलीम, डा. केदार नाथ लाभ, प्रो. राजेन्द्र किशोर, प्रो. हरिकिशोर पांडेय, बच्चू पांडेय, डा. विश्वरंजन, राम नाथ पांडेय, सतीश्वर सहाय वर्मा '