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यादवेन्द्र का आलेख 'देश का असली हाल हम ही तो कहेंगे'

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  सुभाष पंत के साथ यादवेन्द्र  साहित्यकार और कलाकार की प्रतिबद्धता जन के प्रति होती है। जन के अधिकारों को सम्मान दिलाने के लिए वह अपनी कला का उपयोग करता है। यह अलग बात है कि सत्ताधीशों को कलाकारों की ऐसी गतिविधियां नागवार लगती हैं और वे अपने तन्त्र के द्वारा कलाकारों के खिलाफ कारवाई करने में जुट जाते हैं। सत्ता आमतौर पर किसी भी तरह के विरोध को राष्ट्र विरोधी बता कर अपने दमन को उचित ठहराने का प्रयास करती है। सुभाष पंत ने अपनी कहानी "बूढ़े रिक्शा चालक का चित्र" में इसी कथानक को आधार बना कर कहानी लिखी है। सुभाष पंत की कहानियों का मूल्यांकन करते हुए यादवेन्द्र उचित ही लिखते हैं - 'सुभाष पंत की कहानियाँ नीरा किस्सागोई कभी नहीं होतीं - दरअसल सिर्फ़ कहानी लिखने के लिए वे कभी नहीं लिखते बल्कि दैनंदिन जीवन के सामाजिक विश्वसनीय बर्ताव के सन्दर्भ में उनको जब कोई बात कहनी होती है तो कहानी का सहज स्वाभाविक ताना बाना बुनते हैं।' आजकल पहली बार पर हम प्रत्येक महीने के पहले रविवार को यादवेन्द्र का कॉलम  'जिन्दगी एक कहानी है' प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके अन्तर्गत वे किसी महत्त्वपूर...