ग्रीक कवयित्री जैंती होन्ड्रू हिल की कविताएँ
जैंती होन्ड्र हिल वर्ष 2020-21 में कोरोना जैसी महामारी पूरी दुनिया के लिए आफ़त बन कर आयी। सब कुछ यहाँ तक कि समूचा जीवन भी ठप्प पड़ गया। वह जीवन, जो सीखने की रोज की आदतों से बना है। वह जीवन, जो जीने की रोज की आदतों से ही सँवरा है। ग्रीक कवयित्री जैंती होन्ड्रू हिल की चिन्ता वह वाजिब चिन्ता है, जो न केवल ग्रीस (यूनान) के लिए बल्कि समूची दुनिया के लिए एक बड़ी चिन्ता है। इस महामारी का दुःख अकथनीय था। इस महामारी ने लोगों के दिलों पर ऐसे जख्म छोड़े हैं जो उन्हें पूरी ज़िंदगी सताते रहेंगे। यह कवयित्री की वह संवेदनात्मक चिन्ता है जिसमें वे लिखती हैं : 'कुछ को दुबारा सीखनी पड़ेगी साँस लेने की कला,/ सीखना पड़ेगा दुबारा बोलना, निगलना,/. न केवल सच को बल्कि भोजन को भी!/ उन्हें सीखना पड़ेगा चलना,/ महीनों तक कोमा में रहने के बाद,/ हड्डी और माँस पेशियों के बेतरह कमज़ोर हो जाने के बाद!' आज जैंती होन्ड्रू हिल का जन्मदिन है। जन्मदिन की बधाई देते हुए पहली बार पर आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं जैंती होन्ड्रू हिल, की कविताएं। इन कविताओं का अनुवाद किया है हमारे स...