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डी एम मिश्र की ग़ज़लें

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  किसान जमीन से जुड़ा वह व्यक्ति होता है जो महज अन्न का उत्पादन ही नहीं करता बल्कि समाज के सभी व्यक्तियों के जीवन के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराता है। उसके उत्पादित अन्न से बाकी लोग अपने कार्यों को सुचारू रूप से सम्पन्न कर पाते हैं। इस तरह किसान धरती पर प्रत्यक्ष देवता होता है। दुर्भाग्यवश उसी किसान को तमाम दिक्कतें और जलालतें झेलनी पड़ती हैं। उदारीकरण ने किसानों की दशा को और भी खराब कर दिया है। इससे किसानों के शोषण के और कई नए रास्ते खुले हैं। आज एक बार फिर किसान अपनी माँगों को लेकर आन्दोलनरत हैं। डी एम मिश्र ने इधर  किसान आन्दोलन के साथ खड़ी कुछ उम्दा गज़लें लिखी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है  डी एम मिश्र की ग़ज़लें। डी एम मिश्र की ग़ज़लें 1 सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से बिजली न कहीं फाट पड़े आसमान से। चुपचाप है वो इसलिए गूंगा समझ लिया वो ख़ूब सोच समझ के बोले ज़ुबान से। मिट्टी का वो माधव नहीं जो सोच रहे हैं फौलाद का बना है वो देखें तो ध्यान से। हालात हैं ख़राब मगर  हैसियत बड़ी चिथड़ों में भी हुज़ूर वो रहता है शान से। सब भेड़िए, सियार भगें दुम दबा के दूर जब ढोल पीटता है वो ऊंचे मचान

क्षितिज जैन 'अनघ' की कविताएँ

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क्षितिज जैन 'अनघ' परिचय- नाम- क्षितिज जैन "अनघ" वय- 17 वर्ष शिक्षा- सेंट स्टीफन कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए ऑनर्स प्रथम वर्ष में अध्ययन साहित्यिक उपलब्धि- देश-विदेश के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। दो पुस्तको- क्षितिजारुण एवं जीवन पथ का प्रकाशन विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी माउंट आबू से भेंट वार्ता प्रसारित राजस्थान पत्रिका के उपक्रम वैशाली पत्रिका में इंटरव्यू प्रकाशित सम्पादन- साहित्य हंट मासिक ई पत्रिका में सह संपादक । सम्प्रति- जयपुर में वास किसी भी रचनाकार की रचनाएँ उसके समय की प्रतिनिधि आवाज हुआ करती हैं। कवि का कर्म उतना आसान नहीं होता जितना कि आमतौर पर उसे समझा या माना जाता है। कभी कभी कवि को अपने समाज और शासन सत्ता के उस स्वर के खिलाफ भी जाना पड़ता है, जो मनुष्यता विरोधी होती है। ऐसा स्वर उठाना हमेशा खतरनाक होता है। लेकिन कवि तो वही होता है जो खतरे उठा कर भी मनुष्यता के पक्ष में खड़ा रहे।  ग्रेजिया डेलेडा की एक कविता की पंक्तियां इस प्रकार हैं : 'अगर आपका बच्चा कविता लिखता है/ तो उसे पहाड़ों पर घूमने के लिए भेज दें।/  अगर वह फिर भी लिखता है/ तो उ

आदित्य विक्रम सिंह का स्मृति लेख “वह नाम जो रवि था”

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  रविशंकर उपाध्याय वह एक धूमकेतु की तरह आया और कुछ पल की चमक बिखेर कर पता नहीं कहाँ ब्रह्माण्ड के विस्तार में अपना हिस्सा बँटाने चला गया। उससे जब भी मैं मिला वह हमेशा मुस्कुराते मिला। उसको देख कर या उससे बात कर एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगता था कि वह एक अत्यन्त सामान्य कृषक परिवार का है, जिसकी नियति आर्थिक अभाव की होती है। अभी उसकी उम्र ही क्या थी लेकिन निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि वह एक उम्दा संयोजनकर्ता था। अपने साथियों के लिए प्रेरणास्पद व्यक्तित्व था। आज भी उसके तमाम मित्र उसका नाम आते ही सम्मान से श्रद्धावनत हो जाते हैं और उनकी आंखें सहज ही नम हो आती हैं। उसके चुम्बकीय आकर्षण से बच पाना लगभग नामुमकिन होता था। वह छात्र था लेकिन गुरुजन आज भी उसे श्रद्धा से याद करते हैं। उसकी अभी उम्र ही क्या थी लेकिन झूठ को सच करते हुए एक परिन्दे की मानिन्द वह इस दुनिया से किसी दूसरी दुनिया में चला गया। ऐसे व्यक्तित्व का नाम था रविशंकर उपाध्याय। आज भी उसके लिए 'था' या 'स्वर्गीय' लिखने को जी नहीं करता। वाकई वह नाम के अनुरूप ही रवि था। आदित्य विक्रम सिंह ने अपने मित्र रविशंकर को

स्वप्निल श्रीवास्तव का आलेख ‘स्मृति एक दूसरा समय है’

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    हिन्दी के जाने माने कवि मंगलेश डबराल का विगत 9 दिसम्बर 2020 को कोरोना से संक्रमित होने के कारण गाजियाबाद के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। मंगलेश जी आजीवन फांसीवादी ताकतों के खिलाफ कविता की आवाज को सशक्त करते रहे। आज जब प्रतिबद्धता बीते जमाने का टर्म हो गया है उनकी प्रतिबद्धता काबिले तारीफ़ थी। वे उस वर्ग की आवाज के प्रतीक थे , जो आम तौर पर अपनी आवाज नहीं उठा पाता। मंगलेश जी ने प्रतिरोध का अपना एक अलग और निजी सौंदर्य शास्त्र गढ़ा है। मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हैं- ' पहाड़ पर लालटेन ', ' घर का रास्ता ', ' हम जो देखते हैं ', ' आवाज भी एक जगह है ' और ' नये युग में शत्रु ' । इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह ' लेखक की रोटी ' और ' कवि का अकेलापन ' के साथ ही एक यात्रावृत्त ' एक बार आयोवा ' भी प्रकाशित हो चुके हैं। कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने मंगलेश डबराल को अपने इस आलेख के माध्यम से शिद्दत से याद किया है। पहली बार की तरफ से मंगलेश जी को नमन करते हुए प्रस्तुत है यह आलेख।     क्या यह स्मृति