डी एम मिश्र की ग़ज़लें
किसान जमीन से जुड़ा वह व्यक्ति होता है जो महज अन्न का उत्पादन ही नहीं करता बल्कि समाज के सभी व्यक्तियों के जीवन के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराता है। उसके उत्पादित अन्न से बाकी लोग अपने कार्यों को सुचारू रूप से सम्पन्न कर पाते हैं। इस तरह किसान धरती पर प्रत्यक्ष देवता होता है। दुर्भाग्यवश उसी किसान को तमाम दिक्कतें और जलालतें झेलनी पड़ती हैं। उदारीकरण ने किसानों की दशा को और भी खराब कर दिया है। इससे किसानों के शोषण के और कई नए रास्ते खुले हैं। आज एक बार फिर किसान अपनी माँगों को लेकर आन्दोलनरत हैं। डी एम मिश्र ने इधर किसान आन्दोलन के साथ खड़ी कुछ उम्दा गज़लें लिखी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है डी एम मिश्र की ग़ज़लें। डी एम मिश्र की ग़ज़लें 1 सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से बिजली न कहीं फाट पड़े आसमान से। चुपचाप है वो इसलिए गूंगा समझ लिया वो ख़ूब सोच समझ के बोले ज़ुबान से। मिट्टी का वो माधव नहीं जो सोच रहे हैं फौलाद का बना है वो देखें तो ध्यान से। हालात हैं ख़राब मगर हैसियत बड़ी चिथड़ों में भी हुज़ूर वो रहता है शान से। सब भेड़िए, सियार भगें दुम दबा के दूर जब ढोल पीटता है वो ऊंचे मचान