यतीश कुमार का आलेख 'बचपन में झांकते हुए यथार्थ की बानगी'

एक गरीब बच्चे के माध्यम से बच्चों की मनोदशा को जानने का प्रयास अपने आप में रोचक लगता है। बच्चा, वह भी गरीब, उसके माध्यम से औरों की मनोदशा और सामयिक परिस्थितियों को भला कैसे जाना जा सकता है। लेकिन इसको सम्भव कर दिखाया है उर्दू के मशहूर लेखक मोहसिन खान ने अपने उपन्यास ‘अल्लाह मियां का कारखाना’ के माध्यम से। लेखक ने अपने इस उपन्यास में एक बच्चे के दृष्टिकोण से दुनिया को देखने-दिखाने का कारनामा किया है। उपन्यास का मुख्य पात्र नौ वर्षीय जिब्रान है जिसके बाल-मन में कई सहज जिज्ञासाएं हैं। इन्हीं जिज्ञासाओं के जरिए इस उपन्यास की बुनावट की गई है जिसमें समाज के विभिन्न पहलू अपने आप समाहित हो गए हैं। इस किताब को हिन्दी में अनुवादित किया है सईद अहमद ने। इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए कवि आलोचक यतीश कुमार लिखते हैं "इस किताब की सबसे ख़ास बात है कि यहाँ कोई ड्रामा नहीं रचा गया है, बल्कि कल्पना भी यथार्थ को मासूमियत के साथ मात दे रही है, लगभग हमशक्ल बन कर।" तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं मोहसिन खान के अनुवादित उपन्यास ‘अल्लाह मियां का कारखाना’ पर यतीश कुमार की समीक्षा। 'बचपन में ...