महेश चन्द्र पुनेठा के संग्रह 'भय अतल में' पर विजय गौड़ की समीक्षा
महेश चन्द्र पुनेठा का पहला कविता संग्रह 'भय अतल में' काफी चर्चित रहा था. इस संग्रह की कविताओं की ख़ास बात यह थी कि महेश ने अत्यंत सामान्य लगने वाली घटनाओं और व्यक्तित्वों को अपनी कविता का विषय बनाया। पहाड़ के साथ-साथ उनका एक शिक्षक और आम आदमी का वह संवेदनशील सा मन भी इन कविताओं में साफ़ तौर पर दिखायी पड़ता है, जो अन्यत्र प्रायः नहीं दिखायी पड़ता। इस संग्रह पर हमारे कवि-कहानीकार साथी विजय गौड़ ने पहली बार के लिए एक समीक्षा लिख भेजी है. तो आईए पड़ते हैं यह समीक्षा। मध दा ने कर दी है दिन की शुरूआत विजय गौड़ गांव और शहर दो ऐसे भूगोल हैं जो मनुष्य निर्मित हैं। उनकी निर्मिति को मैदान, पहाड़ और समुद्र किनारों की भौगोलिक भिन्नता की तरह नहीं देखा जा सकता। भिन्नता की ये दूसरी स्थितियां प्रकृतिजनक हैं। हालांकि बहुधा देखते हैं कि गांव के जनसमाज के सवाल पर हो रही बातों को भी वैसे ही मान लिया जाता है जैसे किसी खास प्राकृतिक भूगोल पर केन्द्रित बातें। साहित्य में ऐसी सभी रचनाओं को आंचलिक मान लेने का चलन आम है। यही वजह है कि पलायन की कितनी ही कथाओं को ‘कथा में गांव’ या ‘कथा में पहाड़’ जैसे शीर्षको