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सुप्रिया पाठक का आलेख 'अंबेडकर एवं स्त्री प्रश्न'

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भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू समाज की रूढ़ियों को तोड़ने के लिए आजीवन कार्य किया। इस क्रम में उन्होंने  समाज के अस्पृश्य, उपेक्षित तथा सदियों से सामाजिक शोषण से संत्रस्त दलित जाति को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य तो किया ही महिलाओं की मुक्ति के लिए भी प्रयास भी किए। वे जानते थे कि आधी आबादी की स्थिति में सुधार लाए बिना बेहतर समाज की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती।  सुप्रिया पाठक ने  जेंडर अध्ययन श्रृंखला के अन्तर्गत अम्बेडकर के उस चिन्तन पर विचार किया है जिसके अन्तर्गत उन्होंने स्त्री मुद्दों पर बात किया है। आज अम्बेडकर जयंती है। उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं  सुप्रिया पाठक का आलेख 'अंबेडकर एवं स्त्री प्रश्न'।                         'अंबेडकर एवं स्त्री प्रश्न' सुप्रिया पाठक भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में व्याप्त जाति, वर्ग एवं जेंडर के स्तर पर व्याप्त असमानताओं और उनमें सुधार संबंधी मुद्दों पर चिंतन हो रहा हो तो डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारो...

कँवल भारती का आलेख 'संविधान, संविधानवाद और आंबेडकर'

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  कँवल भारती विगत 27 मार्च 2025 को इलाहाबाद में दलित आलोचक  कँवल भारती द्वारा  सत्यप्रकाश मिश्र स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण  व्याख्यान  दिया गया। व्याख्यान का विषय था  "संविधान, संविधानवाद और डा. आंबेडकर"। इन तीनों बिंदुओं की तह में जाते हुए भारती जी ने उस लोकतन्त्र की चर्चा की जो संविधान का मूल उद्देश्य है। संविधानवाद सैद्धांतिकी का आधार बनाता है और अंबेडकर संविधान के उन पहलुओं की चर्चा करते हैं जिससे एक भेदभाव रहित समाज की स्थापना की जा सके।  कँवल भारती इस व्याख्यान में बताते हैं कि ' संविधान और संविधानवाद के बीच एक महीन सी नहीं, मोटी सी लकीर है। संविधान समाज का निर्माण नहीं करता। वह समाज को न नैतिक समाज बनाता है, और न अनैतिक। वह सिर्फ समाज को नियंत्रित करता है। लेकिन संविधानवाद में किसी ख़ास तरह के समाज का निर्माण करने की भावना निहित होती है। इसलिए अच्छे या बुरे संविधान का निर्माण करने के लिए जो चीज़ प्रेरित करती है, वह निस्संदेह संविधानवाद है। यह एक संवैधानिक धारणा, दर्शन या वैचारिकी का नाम है।' तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं...