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सुभाष पंत से आशीष सिंह की बातचीत

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  सुभाष पंत  कल 7 अप्रैल 2025 को प्रख्यात कथाकार  सुभाष पंत के न रहने की खबर मिली।  हिंदी की नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर सुभाष पंत पिछले पांच दशकों से निरंतर रचना-कर्म में सक्रिय थे।  सुभाष पंत मूलतः वैज्ञानिक थे। उन्होंने  सन् 1961 में भारतीय वन अनुसंधान (एफ.आर.) डॉक्युमेंट्री से अपने राजकीय सेवा की शुरुआत की थी और सन् 1991 में भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् कम्पनियों के।वरिष्ठ वैज्ञानिक पद से वे सेवानिवृत्त हुए।  उनकी पहली कहानी 'गाय का दूध' वर्ष 1973 में 'सारिका' के विशेषांक में प्रकाशित हुई थी और काफी चर्चित हुई। इस कहानी का अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ एक दौर में वह रंगकर्म से भी जुड़े रहे। सुभाष जी को पहली बार की तरफ से नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि।  युवा आलोचक आशीष सिंह ने पिछले दिनों सुभाष पंत से एक लम्बी बातचीत किया था। उनकी टिप्पणी के साथ हम आज पहली बार पर इस बातचीत को प्रस्तुत कर रहे हैं।   कहानीकार उपन्यासकार सुभाष पन्त नहीं रहे। जब से यह खबर मिली है मन विचलित है। विजय गौड़ के  के बाद सुभाष जी के निधन ने...

सुभाष पन्त के उपन्यास 'पहाड़चोर' पर यादवेन्द्र की समीक्षा 'आजादी या री है उर्फ़ पहाड़चोर'।

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जाने माने कहानीकार-उपन्यासकार सुभाष पन्त का राजपाल एंड संस से एक महत्वपूर्ण उपन्यास ' पहाड़चोर ' प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास पर रचनाकार और अनुवादक यादवेन्द्र जी ने एक समीक्षा लिखी है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है सुभाष पन्त के उपन्यास ' पहाड़चोर ' पर यादवेन्द्र की समीक्षा ' आजादी या री है   उ र्फ़ पहाड़चोर ' । आजाद्दी या री है उर्फ़ पहाड़चोर   यादवेन्द्र   देहरादून   आते   जाते हुए   वरिष्ठ कथाकार सुभाष पंत को एक इंसान और कहानीकार के रूप में अंतरंग ढंग से जानने का मौका मिला - कई दौरों की बातचीत में   सुभाष जी ने जिस विस्तार और कंसर्न के साथ पढाई और नौकरी के बीच दुविधा , बार-बार सिर पर आ कर बैठ जाने वाली बीमारियाँ , सारिका में छपी सबसे पहली दो कहानियों पर देहरादून के साहित्यकारों की अजीबोगरीब प्रतिक्रिया , कमलेश्वर का अगाध स्नेह , इमरजेंसी में जाँच पड़ताल के लफड़े में पड़ जाना , प्रमुख कहानियों के वास्तविक किरदारों का परिचय , 60 से 63 वर्ष की उम्र का रचनात्मक रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय और कारगर रहना जैसे अनेक मुद्दों ...