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निकानोर पार्रा की कविताएँ (अनुवाद - श्रीकांत दुबे)

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निकानोर पार्रा पाब्लो नेरूदा के ही समकालीन कवि निकानोर पार्रा इ क्की सवीं सदी की ‘ एंटीपोएट्री ’ अथवा ‘ प्रति - कविता ’ नामक साहित्य आन्दोलन के सबसे प्रमुख स्वर माने जाते हैं । पार्रा और प्रति कविता आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी के साथ पार्रा की कविताओं का अनुवाद किया है युवा कवि श्रीकान्त दुबे ने । आज पहली बार प्रस्तुत है निकानोर पार्रा पर एक टिप्पणी और उनकी कविताएँ ।       मेरे साथ ही खत्म हो गई कविता : निकानोर पार्रा विभिन्न सिद्धांतों - दर्शनों के जरिए सृष्टि के क्रमिक विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करते प्राय : यह देखने को मिलता है कि कोई एक सिद्धान्त जीव - जगत अथवा ब्रह्मांड आदि से जुड़े रहस्यों का समूचा उद्घाटन कर ही लेने वाला होता है कि एक नया सिद्धान्त वजूद में आ कर पिछली धारणा को ढेर सारे सवालों के हवाले कर अप्रासंगिक करार देता है। उदाहरण के तौर पर अरस्तू और टॉलेमी द्वारा पृथ्वी को ब्रह्मांड का स्थिर केंद्र मानते हुए शेष ग्रहों - उपग्रहों - तारों की गति और अवस्थिति को परिभाषित किए जाने का खंडन कर कॉपरनिकस ने पृथ्वी को स्वय...