पूजा की कविताएं

पूजा समाज में तमाम विद्रूपताओं के बावजूद साहित्य हमेशा मनुष्यता का पक्षधर रहा है। घटाटोप अंधियारे के दौर में भी वह उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ता। इस अर्थ में कहा जाए तो साहित्य प्रगतिशील मूल्यों को बढ़ावा देता है। वह जूझता है रूढ़ियों से, संकीर्ण परंपराओं से, बने बनाए मूल्यों से। पूजा युवा कवयित्री हैं। वे अपनी कविताओं के जरिए उन प्रगतिशील मूल्यों को बढ़ावा दे रही हैं, जिन पर आजकल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तमाम प्रहार किए जा रहे हैं। वे उन पितृसत्तात्मक परंपराओं से जूझती दिखाई पड़ती हैं जिसने सदियों से स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखा है। पूजा की एक उम्दा कविता है 'बारिश'। इस कविता में वे बड़ी साफगोई से मां और बाबा की बारिश में फर्क बताती हैं। बीते फरवरी में हमने 'वाचन पुनर्वाचन' नामक स्तम्भ को पहली बार पर फिर से आरम्भ किया था। इस स्तम्भ के अन्तर्गत एक कवि दूसरे कवि पर लिखता है। इसी क्रम में कुछ बिल्कुल नए कवियों पर टिप्पणी करेंगे अग्रज कवि नासिर अहमद सिकन्दर। साथ ही कवि की कुछ नवीनतम कविताए...