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शिरोमणि महतो की कविताएं

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  शिरोमणि महतो तमाम विविधताओं के बावजूद वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो मनुष्य एक है। उसका खून और उसकी आन्तरिक संरचना में कोई अन्तर नहीं। लेकिन कुछ वर्गों की संकुचित मानसिकता के कारण रंग, नस्ल, लिंग, वर्ग, भाषा, बोली के स्तर पर भेदभाव किया जाता रहा है। 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति ने जब 'स्वतन्त्रता, समानता, बंधुत्व' का नारा दिया तो विश्वव्यापी स्तर पर छाई  भेदभाव की यह जड़ता  टूटी। हालांकि कवियों ने हमेशा समता की बात की। आधुनिक काल में असमानता के खिलाफ बाकायदा संघर्ष की परिपाटी ही चल पड़ी और अपने हक हिस्से के प्रति सर्वहारा वर्ग की जागरूकता भी दिखाई पड़ी। फैज अहमद फैज की पंक्तियां याद आ रही हैं  हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे। इक बाग़ नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।। इस रूप में देखा जाए तो शिरोमणि महतो अपने पूर्ववर्ती कवियों से जुड़े हुए दिखाई पड़ते हैं। महतो आधुनिक चेतना सम्पन्न कवि हैं। वे अपनी कविताओं में उन मानवीय मूल्यों की बात करते नजर आते हैं जिस पर आज हर तरफ से प्रहार किया जा रहा है। यह प्रतिबद्धता और पक्षधरता उन्हें कवियों की जमात ...

शिरोमणि महतो के उपन्यास करमजला की महेश केशरी द्वारा की गई समीक्षा।

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शिरोमणि महतो एक चर्चित कवि हैं। कविता के अलावा शिरोमणि ने उपन्यास भी लिखे हैं। अभी हाल ही में उनका दूसरा उपन्यास ' करमजला ' प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास की एक समीक्षा लिख भेजी है महेश कुमार केशरी ने। आज पहली बार पर प्रस्तुत है यह समीक्षा ' सामाजिक पृष्ठभूमि का उपन्यास करमजला ' । सामाजिक पृष्ठभूमि का उपन्यास करमजला महेश कुमार केशरी लगभग दो दशक पहले सन 2000 में शिरोमणि महतो का एक सामाजिक उपन्यास ‘ उपेक्षिता ’ आया था , यह गांव की सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया उपन्यास था । अब दो दशक के बाद उनका दूसरा उपन्यास ‘ करमजला ’ आया है , यह उपन्यास भी सामाजिक-जीवन के बिंबों का सफल चित्रण है , उपन्यास का नायक है - राघव , और नायिका है विभा । उपन्यास के शुरुआत में स्कूल के दृश्य का चित्रण है , एक कमजोर समाज का लड़का कैसे अपनी कक्षा में प्रवेश करता है और मोहन नाम का लड़का राघव (नायक) का विरोध करता है , लेकिन राघव का सर्मथन   नायिका (विभा) करती है । नायिका के पिता माथुर सिन्हा और खुद नायक (राघव) में भी सामान्य मानवीय दुर्बलताएं   हैं , ...