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सुनील कुमार शर्मा की बाल कविताएं

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  सुनील कुमार शर्मा आमतौर पर बच्चों की  कविताएं जितनी सहज दिखती हैं उतनी होती नहीं। बच्चों के लिए कविताएं लिखना सामान्यतया आसान नहीं होता। इसके लिए जरूरत होती है ऐसे कथ्य की जो बच्चों के मन को भा जाए। इसके लिए जरूरत होती है ऐसे शिल्प की जो मस्तिष्क पर टंकित हो जाए। और बच्चों के मन मस्तिष्क को समझ पाना उतना आसान कहां होता है। लेकिन कवि जो कल्पना में रवि तक पहुंच जाते हैं यह कठिन काम भी अपने हुनर से आसान बना डालते हैं। सुनील कुमार शर्मा एक जाने पहचाने कवि तो हैं ही, उन्होंने कुछ बाल कविताएं भी लिखी हैं। ये सहज तो हैं ही, इनका शिल्प भी बेहतरीन है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  सुनील कुमार शर्मा की बाल कविताएं। सुनील कुमार शर्मा की बाल कविताएं अगर मैं जादूगर होता तो  अगर मैं जादूगर होता तो  बादल रंगों से भर देता  छड़ी घुमा कर एक मिनट में  सूरज को ठंडा कर देता  नदी उड़ाता आसमान में  बर्फ़ गिराता मैं रेतों पर  बारिश करवा देता कुल्फी   चॉकलेट की भी खेतों पर  डांस करा देता पेड़ों से  फूलों से मैं गीत सुनात...

सुनील कुमार शर्मा का आलेख 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'

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  केशव तिवारी नब्बे के दशक के जिन कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से पाठकों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है उनमें केशव तिवारी का नाम प्रमुख है। केशव ने कविता की अपनी खुद की भाषा गढ़ी है। यह भाषा लोक की भाषा है। इसमें लोक धुन का समावेश है। इसमें उस लोक की चिंताएं और दुख दर्द दर्ज हैं जो प्रायः उपेक्षित रह जाया करते हैं। हाल ही में केशव तिवारी का एक कविता संग्रह 'नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा'   हिन्द युग्म से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह को केन्द्र में रख कर कवि-विचारक सुनील कुमार शर्मा ने एक आलेख लिखा है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुनील कुमार शर्मा का आलेख 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'। 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'   सुनील कुमार शर्मा “यह वक़्त ही एक अजीब अजनबीपन में जीने  पहचान खोने का है  पर ऐसा भी तो हुआ है  जब-जब अपनी पहचान को खड़ी हुई हैं कौमें  दुनिया को बदलना पड़ा है  अपना खेल” केशव तिवारी की कविताएँ मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ का ऐसा ताना-बाना बुनती हैं, जो गहन वैचारिकता और संवेदनशीलता को अभिव...

भरत प्रसाद के उपन्यास पर सुनील कुमार शर्मा की समीक्षा 'छात्र राजनीति की निस्सारता'

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  कम रचनाकार ही ऐसे होते हैं जो एक साथ साहित्य की विविध विधाओं में एक साथ साधिकार लेखन करते हैं। भरत प्रसाद ऐसे ही रचनाकार हैं जिन्होंने की विविध विधाओं में स्तरीय लेखन किया है। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण जैसी विधाओं में वे लगातार आवाजाही करते रहे हैं। हाल ही में उनका एक नया उपन्यास 'काकुलम' प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास की एक समीक्षा लिखी है कवि आलोचक सुनील कुमार शर्मा ने। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं भरत प्रसाद के उपन्यास काकुलम पर सुनील कुमार शर्मा द्वारा लिखी गई  समीक्षा 'छात्र राजनीति की निस्सारता' । 'छात्र राजनीति की निस्सारता'                                                             सुनील कुमार शर्मा                           कोई भी साहित्यिक कृति सामजिक जीवन से अलग हो कर सार्थक नहीं बन सकती। साहित्यकार की निजी विचारधारा सामाजिक परिव...

कालूलाल कुलमी की समीक्षा 'जला दो शाखों पर दीये अब चाँद पर एतबार खोने लगा है'

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  कविता जीवन से गहरे तौर पर जुड़ी होती है। इसीलिए अनुभव इसके मूल में होते हैं। यह अनुभव अपने आस पास के वातावरण, परिस्थितियों, व्यक्ति, विचार आदि से जुड़ा होता है इसलिए इसका संदर्भ व्यापक होता है। इसी क्रम में आपबीती जगबीती में तब्दील हो जाती है। कवि सुनील कुमार शर्मा का काव्य सन्दर्भ व्यापक है। हाल ही में इनका पहला कविता कविता संग्रह 'हद या अनहद' वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की एक समीक्षा की है युवा आलोचक कालूलाल कुलमी ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  कवि सुनील कुमार शर्मा के कविता संग्रह 'हद या अनहद' पर कालू लाल कुलमी की समीक्षा 'जला दो शाखों पर दीए अब चांद पर एतबार खोने लगा है'। 'जला दो शाखों पर दीये अब चाँद पर एतबार खोने लगा है'                                                             कालूलाल कुलमी  कोई भी अच्छा कवि किसी भी आलोचक की गिरफ़्त में पूरा नहीं आता।    ...

सुनील कुमार शर्मा की कविताएं।

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    संक्षिप्त परिचय   सुनील कुमार शर्मा   जन्म : 1975     शिक्षा : बी . ई . , एम . टेक . , पी - एच . डी .   लेखन :   कविताएं , कहानी , लेख , नाटक और शोध पत्र।                  100 से अधिक रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।                      सम्प्रति : मुख्य रोलिंग स्टॉक इंजीनियर ( फ्रेट ) , दक्षिण पूर्व रेलवे , कोलकाता -43.         हर स्त्री के जीवन में शादी-व्याह एक टर्निंग प्वाईंट की तरह होता है। जहाँ वह ज़िंदगी जी होती है , वह शादी के बाद मायके में तब्दील हो जाता है। जहाँ उसकी ज़िंदगी नये तरह से रोप दी जाती है वह उसकी ससुराल हो जाती है। और फिर वह इन दोनों के बीच आजीवन एक सामंजस्य बनाती रह जाती है। इन दोनों जगहों पर उसका जाना और लौटना वह जाना और लौटना नहीं रह जाता जो शादी...