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मृदुला शुक्ला की कविताएँ

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मृदुला शुक्ला प्रेम की नयी परिभाषा गढ़ने वाली कवियित्री हैं. इनका मानना है कि प्रेम तो बस प्रेम ही है. सबसे अलहदा. सबसे निश्चिंत लेकिन दुश्वारियों से भरा हुआ.  इसलिए बदलते समय को धता बताते हुए वे एक कवि मूल्य स्थापित करते हुए कहती हैं " 'प्रेम में भी' पात्रता से ज्यादा/ न लिया जाता है /'और न ही'/ दिया जाता है.  दरअसल कवि तो वही होता है जो कल्पना आकाश में पूरी उड़ान भरे लेकिन अपने यथार्थ के धरातल को कत्तई न छोड़े. तो आईए आज पढ़ते हैं कुछ इसी तरह के आस्वाद वाली मृदुला की कविताएँ जहाँ आपको शोर नहीं मिलेगा बल्कि आहिस्तगी के साथ मिलेंगी गहरे तक घर करने वाली संवेदनाएं.    मृदुला शुक्ला पतंग पतंगों ने जब उड़ने की सोची बिना पंखों के, गले में बंधी डोर भी साथ लिए उड़ने लगी, तमाम पतंगे निकल आई अपने घरों से भर गया आसमान हवा में कलाबाजियां खाती रंग बिरंगी पतंगों से ये ऊँचाइयों का भरम था, या सुख भूल बैठी वो, अब भी उनकी डोर थाम रखी है लटाइयों ने ये जो उनकी उड़ान है महज ढील भर है लटाइयों की लहराती बलखाती, गर्वोन्मत्त, काटने लगी एक दूसरे को ही लटाइयों ने ढील देनी जारी रखी है अगले ...