विनीता परमार की कहानी 'आल्टिट्यूड'

विनीता परमार आमतौर पर हमारे यहां जो शिक्षा पद्धति है वह बच्चों का बहुआयामी विकास न कर एकरैखिक विकास करती है। बच्चों का एकमात्र लक्ष्य नौकरी पाना होता है। इसके लिए वे अधिकाधिक मेहनत कर बेहतर अंक या ग्रेड लाने की कोशिशों में दिन रात जुटे रहते हैं। अन्ततः वे जो चाहते हैं बन भी जाते हैं लेकिन एक सहज, सरल इंसान नहीं बन पाते जिसकी आज कहीं ज्यादा आवश्यकता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक प्रायः उन बच्चों को ही ज्यादा प्रोत्साहित करते हैं जो मेधावी या तेज तर्रार होते हैं। कमजोर बच्चों को प्रायः उपेक्षित कर दिया जाता है। ऐसे बच्चों की समस्या की तह में जाने का समय प्रायः शिक्षकों के पास नहीं होता। विनीता परमार ने अपनी कहानी 'आल्टिट्यूड' में इस समस्या के मूल में जाते हुए इसे अलग तरह से देखने की कोशिश की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विनीता परमार की कहानी 'आल्टिट्यूड'। 'आल्टिट्यूड' विनीता परमार (1) हाल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लोगों की लंबाई बढ़ रही है और दूसरी तरफ भारत में वयस्क पुरुषों और महिलाओं की लंबाई में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। इस र...