संजीव बख्शी की कहानी 'डॉ. मिश्रा'

संजीव बख्शी आम जीवन में एक सामान्य व्यक्ति को कई तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। उसे सामना करना पड़ता है उस संवेदनहीन प्रशासनिक मशीनरी का जो अपनी तरह से ही सोचने और काम करने के लिए अभ्यस्त है। डॉ मिश्रा नामक इस कहानी में संजीव बख्शी ने इसी प्रशासनिक संवेदनहीनता को उभारने का सफल यत्न किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं संजीव बख्शी की कहानी ' डॉ. मिश्रा ' । डाक्टर मिश्रा संजीव बख्शी चैतू राम , इस बार बहुत दिन में आए क्या बात हैॽ सब ठीक तो हैंॽ डॉ. मिश्रा ने चैतू राम से पूछा। चैतू राम अक्सर रविवार शाम को बाजार की खरीदारी के बाद मिलने , डॉ. मिश्रा के अस्पताल में आ जाया करता था पर आज तो रविवार भी नहीं था और आज चैतू राम सुबह – सुबह ही अस्पताल में आ गया था सो डॉ. मिश्रा का पूछना वाजिब था। क्या बताऊँ साब , दाई कल से उल्टी – दस्त से परेशान रहिस हे , आज सुबह – सुबह बेहोश हो गे हे। मैं हा दौड़त आय हौं साब। अभी मोर साथ चलो डाक्टर साब , मैं ले जाए बर आए हौं। चैतू राम ने एक ही साँस में पूरी बात कह दी। ...