आशीष सिंह का आलेख 'जीवन की खातिर लगातार जीवन से संघर्ष करती कहानी'

अमरकांत समाज मनुष्य की मूलभूत जरूरत है। हर मनुष्य इससे जुड़ कर ही आगे का रास्ता तय करता है। लेकिन समाज उसी मनुष्य को तवज्जो देता है जो उसके लिए विशिष्ट होता है। सामान्य मनुष्य की उपयोगिता जब तक बनी रहती है, समाज के लिए वह उपादेय बना रहता है। जैसे ही वह व्यक्ति अनुपयोगी दिखाई पड़ने लगता है, समाज उसे अकेला मरने के लिए छोड़ देता है। लेकिन मौत पर भी चाहतों का वश कहां होता है। 'जिन्दगी और जोंक' अमरकांत की ऐसी यादगार कहानी है जो अपने लिखे जाने के सत्तर साल बाद भी प्रासंगिक बनी हुई है। अपने आलोचनात्मक आलेख में आशीष सिंह अमरकांत के आत्मकथ्य के हवाले से लिखते हैं ' सदियों से उसे इतिहास ने इतना ही दिया है और उसी पूंजी को कलेजे से चिपकाये वह जीवित रहने का ढंग सीख गया है। समाज में ऐसा भयंकर अन्तर्विरोध क्यों है। रजुआ सपना देख सकता है। वह उसे रोज देख सकता है। घंटों उसके बारे में सोचता अपने अन्दर दूर-दूर तक देखता और चारों ओर कष्ट घोर अन्धकार में एक रोशनी टिमटिमाती नजर आती है। कैसी रोशनी थी वह! उसके अन्दर परिवर्तन की प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी थी। वर्षों वह प्रक्रिया चलती रही.. ....