दारियो फ़ो की मृत्यु पर उनके कलाकार लेखक पुत्र जकोपो फ़ो का वक्तव्य (अनुवाद : यादवेन्द्र)

दारियो फ़ो 1997 के साहित्य नोबेल पुरस्कार विजेता महान इतालवी नाटककार और वामपंथी सांस्कृतिक ऐक्टिविस्ट दारियो फ़ो का इटली के मिलान में 13 अक्टूबर 2016 को निधन हो गया। जीवन की विसंगतियों पर वे जिस तरह से व्यंग्य करते थे वह अपने आप में बेजोड़ होता था। दारियो फ़ो ने चालीस से ज्यादा नाटक लिखे जो मंचित होने के साथ-साथ दुनिया भर में काफी लोकप्रिय भी हुए। “ एन एक्सीडेन्टल डेथ ऑफ़ एन एनार्किस्ट ” , ‘कैन नाट पे? वुड नाट पे’ (चुकाएँगे नहीं), “ ए मैड हाउस फॉर द सेन ” , “ मिस्तेरो बुफ़ो ” , ‘ पैशन प्ले ’ , “ टू हेडेड एनोमली ” ( ‘ दो मस्तिष्कों की अनियमितताएँ ’ ) , ‘ फर्स्ट मिरेकल ऑफ इन्फैंट जीसस ’ (‘ शिशु यीशु का पहला चमत्कार ’) , ‘ पोप एंड द विच ’ , ‘ द पीपुल्स वार इन चिली ’ जैसे नाटकों ने फ़ो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलायी । दारियो फ़ो को अपने लेखन की कीमत भी चुकानी पड़ी और उनके खिलाफ पैतालीस से ज्यादा मुकदमे दायर किये गए। इसी क्रम में वे पुलिसिया बर्बरता के शिकार बने और जेल भी गए। मसखरेपन को फ़ो ने अपने लेखन का आधार बनाया, यह जानते हुए भी कि ऐसा करना उन के लिए खतरनाक साबित ...