प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पेशेवर गायक'

 

प्रचण्ड प्रवीर 



किसी भी काम में पेशेवर होना आज सफलता के लिए जरूरी है। लेकिन यह तो जरूरी नहीं कि इस क्रम में सभी पेशेवर हो जाएं। ऐसे तमाम लोग हैं जो परम्परागत तरीके से अपना जीवन जीते हैं और काम को अंजाम देते हैं। आज तमाम प्लेटफॉर्म्स हैं जिन पर लोगों को उनके हुनर के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है लेकिन इसकी कीमत भी वसूली जाती है। यह आजकल धड़ल्ले से किया जा रहा है। लेकिन वहां पर भी स्वतन्त्र हो कर अपना काम करने की गुंजाइश नहीं। बल्कि एक दायरे के अन्तर्गत ही काम करना होता है। और हां, राष्ट्र के बारे में कोई भी आलोचना आपको देशद्रोही बना देगी। तो इसकी गुंजाइश तो कतई नहीं है। प्रचण्ड प्रवीर अपनी कहानी पेशेवर गायक में लिखते हैं  “पेशेवर का मतलब ही यही होता है कि पैसा ले कर वो करो जो कहा जाए।"  आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'पेशेवर गायक'।


कल की बात – २७८

'पेशेवर गायक'


प्रचण्ड प्रवीर



कल की बात है। जैसे ही मैँने दफ्तर से बाहर कदम रखा, सामने से सतीश शाण्डिल्य लम्बे-लम्बे डग भरता मेरी तरफ लपकता हुआ आया। एक तो मैँ उसकी लम्बाई से कुछ डरता हूँ और कुछ उसकी सङ्गीतज्ञ जैसी लम्बी जुल्फोँ से। सतीश शाण्डिल्य बेहद दुबले पतले किन्तु छह फीट तीन इंच लम्बे पेशेवर आदमी हैँ। उनका मानना है कि आदमी वही सफल होता है जो पेशेवर तरीके से काम करता है। दफ्तर का मतलब तगड़े अनुशासन मेँ एकाग्रता से काम करना और शाम ६ बजने के बाद कोई मीटिङ् नहीँ। मजाल है जो कोई सतीश शाण्डिल्य के काम मेँ नुक्स निकाल ले। सतीश का मानना था कि जिन्दगी मेँ मेरी असफलता का मुख्य कारण मेरा गैर-पेशेवरना व्यवहार था। मेरे बारे मेँ उसका पसन्दीदा जुमला था, “कब तक डरोगे? कब तक जी चुराओगे? कभी तो ढङ्ग से कमाओगे? मेरी बात मानोगे तो बड़े बन जाओगे। लेकिन हम बड़े आदमी न बन सके। अब डर यह था कि सतीश शाण्डिल्य आज भी कोई जुमला हम पर थोप देते।

            

सतीश शाण्डिल्य ने मुझे रोक कर कहा, “सुनो बन्धु, तुम्हारी आज हमेँ आवश्यकता आन पड़ी है। हमारे पूछने से पहले उन्होँने बड़ी बेतकल्लुफी से कहा, “तुम्हेँ तो हमने पहले बताया ही था कि हमेँ बचपन से ही गाने-बजाने का शौक है। हालात मेँ इजाफा इस तरह हुआ कि हम अब पेशेवर गायक बनने वाले हैँ।

            

समाचार अच्छा था अतः हमने आगे पूछा, “तुम सोसाइटी मेँ कुछ गाना-वाना गा रहे थे। अब ये नौकरी छोड़ कर गायक बनने वाले हो?” सतीश ने डपटा, “नौकरी कौन छोड़ रहा है? यह साइड इनकम होने वाली है। ‘कैसे’ पूछने पर सतीश शाण्डिल्य ने कहा, “सोशल मीडिया पर ‘गाते रहो’ नाम का ग्रुप सक्रिय है। उसका प्रचार आया था कि यदि आपकी उम्र पैँतीस पार कर चुकी है और आपमेँ गाने का जज्बा है, यदि आप अब तक किसी सुनहरे अवसर की तलाश मेँ थे, तब घबराइए नहीँ ‘गाते चलो’ ग्रुप आपके लिए ले कर आया है सुनहरा मौका। आप अपने गाने हमेँ भेजिए और हम आपको वह मञ्च देँगे कि याद रखेगी दुनिया।

            

हमने सतीश शाण्डिल्य का हौसला बढ़ाते हुए कहा, “फिर देर किस बात की है?” सतीश शाण्डिल्य ने मेरे कन्धे पर हाथ रख कर कहा, “ये ‘गाते रहो’ ग्रुप वाले हमेँ ठीक नहीँ लग रहे हैँ। हमने उनको अपनी तीन गाने की विडियो भेजे। इसके बाद उन्होँने हमसे फोन करके रजिस्ट्रेशन करने को कहा और उसके दो हजार रूपए माँगे। मैँने उनसे कहा कि मैडम, यह क्या बात हुई? आपको मेरे गाने पसन्द आए, इसका मतलब है कि मेरे अन्दर टैलेण्ट है। आपको इतना अच्छा टैलेण्ट मिल रहा है, अब आपका काम इतना ही रह गया कि आप दुनिया के सामने मुझे पेश कीजिए। या तो आपको अपनी खोज पर शक है या फिर आप सभी बेसुरे, सरफिरे से दो हजार रुपए ले कर अपनी जेब भर रहे हैँ। वह कहने लगी कि सर, एक गाना रिकॉर्ड करने मेँ, स्टूडियो बुक करने मेँ दस हजार तक का खर्च आता है। मैँ कुछ सुनने को तैय्यार ही नहीँ था।

            

“अब क्या चाहते हैँ आप?” मैँने सतीश शाण्डिल्य से पूछा। हम दोनोँ पार्किङ् मेँ पहुँच चुके थे। सतीश ने अपनी गाड़ी मेँ बिठाया और गाड़ी चालू करते हुए कहा, “देखो, ‘गाते रहो’ ग्रुप गान रेकॉर्ड करवा के अपने जजोँ को सुनाएगा। उसके बाद एकदम नए गाने पर गाना गवाएगा। अपने यूट्यूब चैनल पर मौका देगा। अब तुमको तो मालूम ही है कि सङ्गीत और गीत-छन्द की हम महीन जानकारी रखते हैँ। मेरे रहते कोई और गीत लिखे? कोई और सङ्गीत दे? यह आइडिया ही गड़बड़ है। हमने विचार किया है कि इतनी बातेँ फोन पर समझाई नहीँ जा सकती। इसलिए हमने उनसे शाम का समय ले लिया है। अभी अपन दोनोँ उनके स्टूडियो चल रहे हैँ। थोड़ा तुम भी मेरी तरफ से समझा देना। वैसे भी आज शुक्रवार है, तुम मेरे साथ चल ही सकते हो। दस-ग्यारह बजते-बजते तुम्हेँ तुम्हारे घर छोड़ दूँगा।


सतीश शाण्डिल्य

            

सतीश शाण्डिल्य के इतना अपनापन देख कर मुझसे कुछ कहते न बना। इधर-उधर की बातेँ करते हुए हम दोनोँ ‘गाते रहो’ के दफ्तर पहुँच गए। वहाँ काली साड़ी पहनी कशिश मैडम ने सतीश शाण्डिल्य से मिल कर कहा, “सर, मैँने आपको पहले भी बताया था कि पिछले साल मशहूर रियलटी सिङ्गिङ् शो का विजेता हमारे यहाँ से ही निकल कर गया था। आप अच्छा गाते हैँ, लेकिन कम्पनी के नियमोँ के मुताबिक हम बिना रजिस्ट्रेशन के आगे नहीँ बढ़ सकते। सतीश शाण्डिल्य ने अपने अरमान जाहिर किए, “देखिए मैडम, आपको मालूम होना चाहिए कि आपको एक मल्टी-टैलेण्टेड पर्सनलिटी मिल रही है। आप अन्त मेँ गाना बनाएँगे, उसके सङ्गीत और बोल मैँ ही दूँगा। अब बताइए, आपका इतना खर्च बचने वाला है। आपको सोचना चाहिए। मैँने कशिश मैडम से कहा, “मैडम, एक मिनट जरा आप मुझसे अकेले मेँ बात कर सकती हैँ?” सतीश शाण्डिल्य ने हैरानी से मुझे देखा। मैँने उसे आश्वस्त किया, “तुम चिन्ता न करो बन्धु। मैँ सब सँभाल लूँगा। कशिश मैडम के साथ एक पारदर्शी मीटिङ् रूम मेँ बन्द हो कर कुर्सी पर विराजमान होते हुए मैँने कहा, “बताइए कहाँ करना है रजिस्ट्रेशन। इनके दो हजार बचाने के चक्कर मेँ दुनिया ऐसे मल्टी टैलेण्ट से मरहूम क्योँ रहे? यह पुण्य का काम मैँ कर देता हूँ। कशिश मैडम को क्या चाहिए था, दो हजार रूपए। सो वह उन्हेँ मिल गए और उनका ‘सेल्स टारगेट’ कुछ कम हुआ।

            

स्टुडियो मेँ सतीश शाण्डिल्य इस कशमकश मेँ था कि कजरारी आँखोँ वाली कशिश मैडम को किस कशिश के साथ क्या कमाल किस्सा सुनाया गया कि वे किसी भी किस्म की कव्वाली तक सुनने को कमर कस कर कमरे मेँ बैठ गयी। इस बार हमने सतीश की पीठ थपथपायी और कानोँ मेँ फुसफुसा कर कहा, “जरा पेशेवर रूख से कुछ करामात दिखाओ।“ सतीश शाण्डिल्य ने कशिश मैडम से कहा, “आपने मेरा रेकॉर्डेड गाना तो सुन ही रखा है। कौन सा गीत गाऊँ?” कशिश मैडम ने कटीली मुस्कान के साथ चुनौती देते हुए कहा, “कोई ऐसा गीत सुनाइए जो मशहूर भी हो और किसी ने सुना भी न हो।“ सतीश शाण्डिल्य ने मुस्कुरा कर मुझे देखा, फिर कशिश मैडम की तरफ देख कर कहा, “मैँ पेशेवेर गायक हूँ। किसी किस्म की फरमाइश पूरा कर सकता हूँ। चलिए आपको एक गाना सुनाता हूँ जो मशहूर है। उसी का एक अन्तरा गाऊँगा जो आपने कभी सुना ना होगा। यह अन्तरा फ़िल्म मेँ है ही नहीँ।“ सतीश शाण्डिल्य ने अपने मोबाइल से करोके चला कर जैक साउण्ड सिस्टम मेँ गाने लगा:-


           कोई मिले जो रोक ले पुकार के १

           यूँ ज़रा बढ़ा के हाथ प्यार से

           इधर भी फेँक दे अदा की इक कली

           गुजर चले हैँ दिन यूँ ही बहार के

           पुकारता चला हूँ मैँ, गली-गली बहार की

          बस एक छाँव ज़ुल्फ़ की, 

           बस एक निग़ाह प्यार की

            

सतीश शाण्डिल्य ने इस गाने पर बड़ी मेहनत कर रखी थी। बड़ा सुरीला गा रहा था। कशिश मैडम उसकी तारीफ किए बिना नहीँ रह सकी। गाना खत्म होने के बाद उसने कहा, “आपका यह गाना मैँ जजोँ को भेज दूँगी। इसके बाद यदि आपके पक्ष मेँ निर्णय आया तो आपको ऑनलाइन मीटिङ् मेँ उनको गाना सुनाना पड़ेगा। आप बता रहे थे कि आप सङ्गीत भी देते हैँ और गीत भी लिखते हैँ। लेकिन...” मैँने पूछा, “लेकिन क्या?” कशिश मैडम ने कहा, “दरअसल यह बड़ा मौका होगा लेकिन दिक्कत यह है कि लोग पेशेवर नहीँ होते। न जाने क्योँ पेशेवर गायक रॉक स्टार बनके अपने मन का सङ्गीत और अपने मन के बोल लिखने लग जाते हैँ। मैँने कहा, “आप चिन्ता मत कीजिए। सतीश पूरे पेशेवर हैँ।

            

सतीश शाण्डिल्य को न जाने क्या हुआ। उसने साफ-साफ कहा, “मैँ कहे देता हूँ कि बन्दा पेशेवर गायक जरूर है पर पेशेवर गीतकार या पेशेवर सङ्गीतकार नहीँ। कशिश मैडम कुछ असहज हो गयी। उन्होँने कहा, “कुछ अपना लिखा गा कर सुनाइए। सतीश शाण्डिल्य हारमोनियम ले कर वहीँ बैठ गए और गाना सुनाने लगे, “यह देश है धूर्त जुआरियोँ का, पियक्कड़ोँ का कबाबियोँ का, इस देश का यारोँ क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना...।” कशिश मैडम की त्योरियाँ चढ़ गयीँ। उन्होँने कहा, “आप हमारे देश को गाली दे रहे हैँ? आप विदेशी हैँ क्या?” सतीश शाण्डिल्य ने कहा, “नहीँ, एकदम खालिस हिन्दुस्तानी हूँ। देखिए सच है कि नहीँ? हिन्दुस्तान की एक तिहाई से ज्यादा आबादी ऑनलाइन जुआ खेलती है। तीस से चालीस प्रतिशत लोग शराब के लिए अपनी चालीस प्रतिशत आमदनी खर्च करती है। हम हिन्दुस्तानी कुत्तोँ से बहुत प्यार करते हैँ, लेकिन उससे ज्यादा प्यार मोटे मुर्गोँ और पुष्ट बकरोँ से करते हैँ कि उन्हेँ चाव से खा जाया करते हैँ। क्या हम इन सबको सेलिब्रेट नहीँ कर सकते? क्या पेशेवर हो कर मैँ सच नहीँ बोल सकता?”

            

कशिश मैडम ने कहा, “पेशेवर का मतलब ही यही होता है कि पैसा ले कर वो करो जो कहा जाए। आप पेशेवर गायक तक ही ठीक हैँ, इसके आगे आपका कोई भविष्य नहीँ है। सतीश शाण्डिल्य ने मुझे देख कर कहा, “ज़िन्दगी मेँ असफलता का मुख्य कारण गैर-पेशेवर होना होता है। कशिश जी से कह दो, मैँ तैय्यार हूँ।“

            

ये थी कल की बात!


दिनाङ्क:   ३०/०८/२०२५



सन्दर्भ:    


१. गीतकार –  मजरूह सुलतानपुरी, चित्रपट : मेरे सनम (१९६५)

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