संदेश

सूरज पालीवाल लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सूरज पालीवाल का आलेख 'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'

चित्र
जवाहर लाल नेहरू केवल भारत के पहले प्रधान मंत्री ही नहीं थे बल्कि उनके अन्दर एक साहित्यकार इतिहासकार का हृदय भी था। राजनीति उनका पैतृक व्यवसाय नहीं था बल्कि इसे उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा और जाना था। भारत की बहुवर्णी संस्कृति और परम्परा को देखते हुए उन्होंने तय किया कि आजादी के बाद का भारत धर्मनिरपेक्ष भारत होगा। बंटवारा होने के पश्चात धर्म की राह पर चलना उनके लिए सुविधाजनक था। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलने का उनका यह निर्णय आसान नहीं बल्कि आग के दरिया पर चलने जैसा था। सूरज पालीवाल ने सही लिखा है कि धर्मनिरपेक्षता को कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। आज जब भारत का सत्ताधारी दल धर्म की राह पर चल पड़ा है और पानी पी पी कर जवाहर लाल को कोसा जा रहा है ऐसे में तब के मुश्किल दौर में उनका यह निर्णय कम साहसिक नहीं था। आज जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं सूरज पालीवाल का आलेख  'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'। यह आलेख उदभावना के हाल में ही प्रकाशित नेहरू विशेषांक से साभार लिया गया है। 'नेहरू जी राजनीति म...

सूरज पालीवाल की कहानी 'रावण टोला'

चित्र
  रामलीला भारतीय संस्कृति से नाभिनालबद्ध है। और साथ ही इसके सभी पात्र जन जन में सुपरिचित हैं। दशहरा आते ही चारो तरफ रामलीला की आज भी धूम मच जाती है। रामलीला के साथ उसके पात्र सामायिक तौर पर स्थानीय रूप से उसमें बहुत कुछ जोड़ते घटाते रहते हैं जो प्रतीकात्मक रूप से हमारे समाज से जुड़ा होता है। आलोचक सूरज पालीवाल की एक कहानी है  'रावण टोला' । 1980 के आसपास लिखी गई इस कहानी में सूरज जी जिन बातों को रेखांकित करते हैं वह आगे चल कर सामाजिक यथार्थ में बदलते हुए दिखाई पड़ते हैं। आज सूरज जी का आज जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सूरज पालीवाल की कहानी 'रावण टोला'। 'रावण टोला' सूरज पालीवाल रामलीला समाप्त होने में अभी पाँच दिन बाकी थे। शहर में   पढ़ने वाले लड़के भी रामलीला का बहाना लगा कर गाँव में ऐश   कर रहे थे। लाल छींट की साड़ी जैसे तहमद की फैशन चल   पड़ी थी - इस बार गाँव में। बाल भी बाजने के मोहन कट नहीं, . कहते थे, 'बस एक ही नाई है अलीगढ़ में, जो ऐसे बाल काटता   है। और मालूम है - तीन रुपया लेता...

सूरज पालीवाल का संस्मरण 'ज्ञानरंजन होने के मायने'

चित्र
  ज्ञानरंजन हिन्दी साहित्य में कुछ ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते हैं। ज्ञानरंजन ने लेखन से कभी समझौता नहीं किया। कम लिख कर भी हिन्दी कहानी की दुनिया में उन्होंने अपना समादृत स्थान बनाया है। यह स्थान उन्होंने खुद अपने दम पर हासिल किया। प्रख्यात रचनाकार श्री रामनाथ सुमन जी के पुत्र होने के बावजूद उन्होंने लेखकीय संघर्ष किया और अपनी दुनिया खुद बनाई। उन्होंने देश की बेहतरीन हिन्दी पत्रिका पहल का सम्पादन किया जिसमें छपना हर छोटे बड़े लेखक का सपना हुआ करता था। यही नहीं उन्होंने हर जेनुइन लेखक को प्रोत्साहित करने का काम भी किया। उनका कद आज भी  ऊंचा है। किन्तु परन्तु का सामना उन्हें भी करना पड़ा फिर भी यह कहा जा सकता है कि वे हिन्दी साहित्य के निर्विवाद लेखक हैं। कथाकार योगेंद्र आहूजा तो ज्ञान जी को ‘हिंदी कहानी का आखिरी उस्ताद’ घोषित करने से नहीं चूकते हैं।’ आलोचक सूरज पालीवाल ने ज्ञान जी के विविध पक्षों को उजागर करते हुए एक बेजोड़ संस्मरण लिखा है। यह आलेख धरती के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सूरज पालीवाल का स...