सूरज पालीवाल का आलेख 'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'

जवाहर लाल नेहरू केवल भारत के पहले प्रधान मंत्री ही नहीं थे बल्कि उनके अन्दर एक साहित्यकार इतिहासकार का हृदय भी था। राजनीति उनका पैतृक व्यवसाय नहीं था बल्कि इसे उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा और जाना था। भारत की बहुवर्णी संस्कृति और परम्परा को देखते हुए उन्होंने तय किया कि आजादी के बाद का भारत धर्मनिरपेक्ष भारत होगा। बंटवारा होने के पश्चात धर्म की राह पर चलना उनके लिए सुविधाजनक था। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलने का उनका यह निर्णय आसान नहीं बल्कि आग के दरिया पर चलने जैसा था। सूरज पालीवाल ने सही लिखा है कि धर्मनिरपेक्षता को कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। आज जब भारत का सत्ताधारी दल धर्म की राह पर चल पड़ा है और पानी पी पी कर जवाहर लाल को कोसा जा रहा है ऐसे में तब के मुश्किल दौर में उनका यह निर्णय कम साहसिक नहीं था। आज जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं सूरज पालीवाल का आलेख 'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'। यह आलेख उदभावना के हाल में ही प्रकाशित नेहरू विशेषांक से साभार लिया गया है। 'नेहरू जी राजनीति म...