हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताओं पर आशीष सिंह का आलेख "दरअसल कविताएं नहीं हैं ये, ये नगण्यता के पक्ष में जारी अपीलें हैं"
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हरीश चन्द्र पाण्डे ऐसे कवि हैं जो अपनी कविताओं में जो अपने समय की शिनाख़्त शिद्दत से करते हैं। ऐसे समय जबकि प्रतिबद्धता की बात करना बेमानी लगने लगा है , हरीश जी उस मनुष्यता के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं जो इस समूचे विश्व को एक परिवार जैसे देखने में यकीन करती है। इस प्रतिबद्धता के साथ साथ एक निष्पक्षता उनके यहाँ बराबर दिखायी पड़ती है। हरीश पाण्डे की कविताओं पर एक आलेख लिखा है युवा आलोचक आशीष सिंह ने। आशीष समूची विनम्रता के साथ इसे एक टिप्पणी भर कहते हैं जबकि अपने आप में यह एक मुकम्मल आलेख है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताओं पर आशीष सिंह का आलेख "दरअसल कविताएं नहीं हैं ये , ये नगण्यता के पक्ष में जारी अपीलें हैं"। " दरअसल कविताएं नहीं हैं ये , ये नगण्यता के पक्ष में जारी अपीलें हैं।" आशीष सिंह (1) '' रचना देखत बिसर इ रचनाकार '' जनकवि त्रिलोचन के बरवै की यह पंक्ति अक्सर परेशानी में डालती रही है , खासकर तब जब हम हमारी मुलाकात तमाम एक ऐसी कविताओं से होती है जिनसे गुजरते हुए