शशि भूषण मिश्र का आलेख ‘दृष्टिबोध का उर्वर धरातल.’

मनीषा कुलश्रेष्ठ युवा आलोचक शशि भूषण मिश्र इधर के कहानीकारों की कहानियों पर एक गंभीर काम में जुटे हुए हैं. इस क्रम में यह पहला आलेख चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों पर केन्द्रित है. शशि भूषण ने आलोचना की भाषा को एक नए तेवर के साथ-साथ नया स्वर भी प्रदान किया है. आलोचक के लिए यह एक चुनौती होता है कि वह किस तरह पीछे की लीक से अलग हट कर अपनी एक नयी राह बनाए. शशि भूषण में यह क्षमता स्पष्ट रूप से देखी महसूस की जा सकती है. यह आलेख पहल के हालिया अंक में छपा है. आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं शशि भूषण मिश्र का आलेख ‘दृष्टिबोध का उर्वर धरातल.’ दृष्टिबोध का उर्वर धरातल शशि भूषण मिश्र हिन्दी कहानी एक सदी की अनुभव-संपन्न यात्रा तय कर नयी सदी में दाख़िल हो चुकी है। नयी सदी के इन दो दशकों को ' कथा के ऊर्जावान स्त्री-स्वर ’ के रूप में रेखांकित किया जा सकता है। आज इतनी बड़ी तादाद में महिला कथाकार न केवल रचनाशील हैं वरन कथा के भूगोल में ' नए आनुभूतिक प्रस्थान ’ निर्मित कर रही हैं। इन दो दशकों में...