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गायत्री प्रियदर्शिनी की कविताएँ

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चाँद हमेशा से कवियों के लिए आकर्षण का एक केन्द्र रहा है. नया से नया कवि भी इस चाँद पर अपनी कलम जरुर चलाता है. इसी चाँद और चाँदनी को ले कर गायत्री प्रियदर्शनी ने कुछ कविताएँ   लिखी हैं जो हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. गायत्री की कविताएँ आप पहले भी इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. तो प्रस्तुत है गायत्री प्रियदर्शनी की कविताएँ              चाँद और चाँदनी                    गायत्री प्रियदर्शनी (1) शान्त नीले समुद्र पर आलोक बरसाती हुई पीतवर्णी चाँदनी निश्शब्द झरती हुई उजियाली रात नभ में तैरता हुआ आधा चाँद होता है आभास थम गए हों सभी बाँटने के लिए साथ-साथ बीतते अहसासों के क्षण कोमल हमारे तुम्हारे साथ मौन मुखर भाव से                      ...

गायत्री प्रियदर्शिनी

गायत्री प्रियदर्शिनी का जन्म 30 जून 1973 को उत्तर प्रदे श के बदायूं में हुआ। एम. ए. करने के पश्चात प्रियदर्शिनी ने भीष्म साहनी के साहित्य में जनजीवन की अभिव्यक्ति विषय पर अपना शो ध कार्य पूरा किया। सम्प्रति आजकल बदायॅू के ही एन. एम. एस. एन. दास पी. जी. कॉलेज के हिन्दी विभाग में अस्थायी प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य कर रही हैं। कथ्यरूप, कल के लिए, वागर्थ आदि पत्रिकाओं में समय-समय पर कविताएं प्रका शित हुई हैं। गायत्री प्रियदर्शिनी की छोटी-छोटी कविताओं में भावों की गझिन अभिव्यक्ति सहज ही दिखायी पड़ती है। आज के जमाने के मोबायली इण्टरनेटी युग में नगर पालिका की टोंटी में बहते पतले से पतले होते जा रहे प्यार के खूबसूरत से बिम्ब में गायत्री ने जैसे बहुत कुछ कह डाला है। हमारे पास और सब कुछ के लिए समय तो है लेकिन जीवन के लिए जरूरी प्यार के लिए वक्त नहीं है। जीवन के लिए एक और जरूरी जरूरत आग को अलाव कविता में बेहतरीन ढंग से व्यक्त किया है जिसमें चूल्हे पर फदक रही दाल है। दिसम्बर की ठण्ड में जिन्दगी अनायास ही अलाव के पास अपने मैले कुचैले हाथों को सेकने के लिए चली आती है। संभावनाओं के...