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परांस -2 : कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं

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  कमल जीत चौधरी  बोलने की कला मनुष्य को सारे जीवधारियों में अलग खड़ा कर देती है। अभिव्यक्ति के इस माध्यम ने मनुष्य को सशक्त बनाया। सामूहिकता की भावना के विकास में बोलने की इस कला का महत्त्वपूर्ण अवदान है। लेकिन अभिव्यक्ति का यह सशक्त माध्यम तब खतरे में पड़ जाता है जब दुनिया का कोई शासक अपनी गद्दी के बारे में सोचने लगता है। जर्मन कवि फादर पास्टर निमोलर की मशहूर कविता First they came... की याद आ रही है। निमोलर जर्मनी में नाजी शासन के विरोधी और खासकर अपनी तीखी कविता के लिए जाने जाते हैं। कविता इस तरह है : 'पहले वे आये कम्युनिस्टों के लिए/ और मैं कुछ नहीं बोला/ क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।/ फिर वे आये ट्रेड यूनियन वालों के लिए/ और मैं कुछ नहीं बोला/ क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था।/ फिर वे आये यहूदियों के लिए/ और मैं कुछ नहीं बोला/ क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।/ फिर वे मेरे लिए आये/ और तब तक कोई नहीं बचा था/ जो मेरे लिए बोलता।' कुमार कृष्ण शर्मा की कविता 'क्या करना था क्या किया' इसी अंदाज की बेहतरीन कविता है।  युद्ध और युद्ध की इन स्थितियों के इस भयाव...

कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं

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  कुमार कृष्ण शर्मा हालांकि मनुष्य ने अपने विकास के क्रम में शुरुआती दौर में अपनी संतुष्टि के लिए कला का आश्रय लिया लेकिन जल्द ही कला का उद्देश्य या कहें लक्ष्य यह बन गया कि मनुष्यता ही सर्वोपरि है। नफरत और घृणा के वातावरण का उन्मूलन कर एक बेहतर समाज की स्थापना करनी है। अलग बात है कि कला का यह संघर्ष आज भी अनवरत जारी है। शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान गंगा जमुनी तहजीब के तरफदार थे। जीवन की अन्तिम सांस तक वे कबीर की परम्परा को मजबूत करने के लिए बनारस में साधनारत रहे। सही मायनों में कहा जाए तो वे कलाकार के वास्तविक लक्ष्य को ले कर अपनी लड़ाई आजीवन लड़ते रहे। आज जब समय और परिस्थितियां बदल गई हैं ऐसे में बिस्मिल्लाह खान की याद आना स्वाभाविक है। जम्मू के कवि कुमार कृष्ण शर्मा ने अरसा पहले उनका एक साक्षात्कार बतौर पत्रकार लिया था। उसी की बिना पर एक उम्दा कविता उन्होंने लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं। कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं शहनाई का दुःख  बनारस के गंगा घाट पर वजू कर मंदिर के बाहर शहनाई बजाने वाला किंवदंती बन चुका बुजुर्ग कहता है- बेटा, अभ...

शैलेंद्र चौहान द्वारा लिखी गई समीक्षा 'घिरे हैं हम सवाल से... हमें जवाब चाहिए'

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कुमार कृष्ण शर्मा जम्मू के सुपरिचित कवि हैं। उनकी कविताओं में जम्मू का परिवेश तो है ही, साथ ही वह मनुष्यता भी है जिससे कोई इंसान कवि बनता है। कुमार कृष्ण समाज में व्याप्त विसंगतियों को करीने से उभारते हैं। अपनी कविता आलू में वे लिखते हैं ' आलू खेतों में पैदा नहीं होते/ कुछ के लिए आलू फैक्ट्रियो में बनते हैं/ कुछ के लिए तोंदों में/ मेरे लिए पीठों पर उगते हैं आलू'। हाल ही में कवि का पहला संग्रह 'लहू में लोहा' नाम से प्रकाशित हुआ है। इसकी समीक्षा लिखी है चर्चित कवि एवम आलोचक शैलेन्द्र चौहान ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  कुमार कृष्ण शर्मा के पहले कविता संग्रह 'लहू में लोहा'  पर शैलेन्द्र चौहान की समीक्षा  'घिरे हैं हम सवाल से... हमें जवाब चाहिए'। 'घिरे हैं हम सवाल से... हमें जवाब चाहिए' शैलेंद्र चौहान हिंदी में कविताएं लगातार लिखी जा रही हैं। अन्य भाषाओं में भी लिखी जा रही होंगी लेकिन कविताओं के पाठक अत्यल्प  हैं। जो कविताएं इधर रची जा रही हैं, कुछेक दशकों से वे आम पाठक को पठनीय नहीं लगती। उसके पाठक पढ़े लिखे साहित्यिक रुचि रखने वाले पाठक ह...