कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं

 

कुमार कृष्ण शर्मा



हालांकि मनुष्य ने अपने विकास के क्रम में शुरुआती दौर में अपनी संतुष्टि के लिए कला का आश्रय लिया लेकिन जल्द ही कला का उद्देश्य या कहें लक्ष्य यह बन गया कि मनुष्यता ही सर्वोपरि है। नफरत और घृणा के वातावरण का उन्मूलन कर एक बेहतर समाज की स्थापना करनी है। अलग बात है कि कला का यह संघर्ष आज भी अनवरत जारी है। शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान गंगा जमुनी तहजीब के तरफदार थे। जीवन की अन्तिम सांस तक वे कबीर की परम्परा को मजबूत करने के लिए बनारस में साधनारत रहे। सही मायनों में कहा जाए तो वे कलाकार के वास्तविक लक्ष्य को ले कर अपनी लड़ाई आजीवन लड़ते रहे। आज जब समय और परिस्थितियां बदल गई हैं ऐसे में बिस्मिल्लाह खान की याद आना स्वाभाविक है। जम्मू के कवि कुमार कृष्ण शर्मा ने अरसा पहले उनका एक साक्षात्कार बतौर पत्रकार लिया था। उसी की बिना पर एक उम्दा कविता उन्होंने लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं।



कुमार कृष्ण शर्मा की कविताएं



शहनाई का दुःख 


बनारस के गंगा घाट पर

वजू कर

मंदिर के बाहर शहनाई बजाने वाला

किंवदंती बन चुका बुजुर्ग कहता है-


बेटा, अभी तलाश रहा हूं ऐसा सुर

जिसको सुन


दुश्मन की तरफ मुंह किए तोप का गोला

पिघल जाए बीच नाल में ही

और बाहर निकले बु्द्ध की शक्ल ले कर


सागर की छाती को चीरता पोत

मोती बन समा जाए सीप के गर्भ में

और वह सीप मिले किसी प्रेमी को


हवा में गर्जना करता जंगी जहाज

बदल जाए झाग के बुलबुले में

और फूटे

बच्चे की पेंसिल की नोक और कॉपी के बीच आ कर


हल्की दाढ़ी लिए अस्त होता सूरज

मेरे को पास बिठा बोलता है-

बेटा इस उम्र में भी 

एक ही दुःख सालता है मुझे

अभी तक नहीं ढूंढ पाया हूं वह सुर

जिसको शहनाई पर बजाऊं

तो सीमाएं बेचैन हो उठें

और कर लें आलिंगन एक दूसरे का


दुश्मन की आंखों को घूरती लाल आंखें

बंदूक छोड़ लौट जाएं वापस

और घर पहुंच देखें 

बेटी की आंखों में कैसे नाचता है बसंत


नफरत का पहाड़ा याद करने वाला

यह जान जाए कि सबसे आसान होता है

प्रेम का गणित

और इसमें दो दूनी पांच रटने वाला भी

आता है परीक्षा में प्रथम


बात को थोड़ा आगे बढ़ाते 

उस्ताद जी कहते हैं-

वह चाहे जीवन हो या संगीत

सुर में रहना बहुत जरूरी है

बेसुरा होना

शहनाई का सबसे बड़ा दुःख है

शहनाई का सबसे बड़ा दुःख है।


(भारत रत्न बिस्मिल्ला खान से सन 2005 में जम्मू के पहले और आखिरी दौरे के दौरान हिंदी दैनिक 'अमर उजाला' के लिए उनका साक्षात्कार करने का मौका मिला था। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए।)



पहाड़-मेरे तुम्हारे


तुम्हारे लिए पहाड़ 

पत्थर हैं 

रेत मिट्टी हैं

बेकार हैं


मेरे लिए 

हाड़ हैं 

लाड़ हैं 

अक्ल वाली दाढ़ हैं 


पहाड़ तुम्हारे लिए 

लकड़ी हैं 

पर्यटन है 

पछाड़ हैं


मेरे लिए

आषाढ़ हैं

दहाड़ हैं 

जीवन की भूमि का 'स्याड'* हैं


तुम्हारे लिए पहाड़

मुनाफे का पहाड़ा हैं

पहाड़ मेरे लिए 

जीने का सहारा हैं


*स्याड - हल रेखा






अफस्पा लगे शहर की लड़की


मेरी सांसों से आएगी बारूद की गंध

होठों पर मिलेगा खून का खारापन

जब कभी करोगे स्पर्श 

मेरे उभारों के जख्मों में रेंगते मिलेंगे नाखून

टांगों के बीच रिसता मिलेगा कुछ...


प्रिय

अफस्पा लगे शहर में रहने वाली मुझ लड़की को

तुम्हारे देह का नमक नहीं

रूह की कपास चाहिए



हाय, मैं प्रेम में कितना कच्चा निकला


उससे बिछड़े 

अट्ठारह साल हो गए

सूरत देखना तो दूर 

आवाज तक नहीं सुनी

 

एकांत में बैठा 

यह सब सोच रहा हूं...


...मोबाइल पर आई 

अननोन नंबर की कॉल उठाता हूं 

बोलता हूं- कौन

उधर से 

आवाज आती है 


मैं बोल रही हूं...






अश्‍लीलता


मां सवाल करती है...


बेटा कहीं तू

ऑफिस के काम से

किसानों की बस्‍ती की 

तंग गलियों में से

कार पर सवार हो कर तो नहीं गुजरता


मां ने समझाया

बेटा हमेशा पैदल गुजरना उन गलियों से...


चौपाल पर बैठने के लिए

नहीं मंगवाना कोई कुर्सी

बैठ जाना नीचे जमीन पर…


मां पूछती है

जब किसान नंगे बदन

जुटे होते हैं खेत में

तो कहीं मैं उनके बीच

ब्रांडेडड कपड़ों पर इत्र लगा

काला चश्‍मा पहन तो नहीं पहुंच जाता...


उनके बच्‍चों की फटी एड़ियों के बीच

कहीं करता तो नहीं महंगे जूतों की नुमाइश...


मां पास आ कर

सिर पर हाथ फेर समझाती है

मेरे बच्‍चे

अश्‍लीलता से जितना हो सके

बच कर रहो 



क्या करना था क्या किया


मैंने उसे समय 

भीड़ की सुनी 

जब अकेले में कोई 

कुछ सुनना चाहता था 

मैं उसे समय 

अकेले की सुनने पहुंचा

जब भीड़ उसे

सब कुछ सुना चुकी थी 


मैंने उसे समय 

तालियां थालियां पीटी

जब छाती पीटने का समय था 

मैंने उस समय 

छाती पीटी

जब छाती 

चौड़ी करनी थी


मैं उस समय

चिल्लाया 

जब मुझे खामोश रहना था मैं अब 

उस समय खामोश हूं 

जब बोलना सबसे ज्यादा जरूरी है



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)



सम्पर्क


मोबाइल : 09419184412

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