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हृषिकेश सुलभ के उपन्यास पर केतन यादव की समीक्षा 'दातापीर : कब्रिस्तान से झाँकता एक नया संसार'

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  अत्याधुनिक तकनीकी दौर में अब किताबों के पढ़ने की संस्कृति पर खतरे मंडराने लगे हैं। इस बात को स्वीकार कर पाना हमारे लिए आज भी कठिन है लेकिन सच को भला कैसे झुठलाया जा सकता है। बहरहाल ऐसे दौर में ही जब कोई ऐसा उपन्यास आता है जो पाठकों को सहज ही अपनी तरफ आकर्षित करता है, तो यह आश्वस्त करता है कि किताबों के पढ़ने की संस्कृति जिंदा रहेगी। हृषिकेश सुलभ का नया उपन्यास 'दातापीर' ऐसा ही उपन्यास है जो ऐसे वर्ग पर लिखा गया है जो अल्पसंख्यक होने के साथ साथ उपेक्षित भी रहा है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि राजनीतिक दुनिया में अल्पसंख्यक वर्ग एक ऐसे हथियार की तरह होते हैं जिनका उपयोग राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए किया करते हैं। लेकिन साहित्यकार के लिए यह मुद्दा संवेदनशील होता है। बहरहाल जैसे पत्थरों के बीच हरियाली पनप आया करती है वैसे ही विकट परिस्थितियों के बीच ही प्रेम पनप आता है। सुलभ जैसे सामर्थ्यवान रचनाकार ने इसे अपनी दास्तानगोई के बीच ही संभव कर दिखाया है। युवा कवि केतन यादव ने 'दातापीर' उपन्यास को डूब कर पढ़ा है और इस पर को लिखा है उसे खुद वे 'एक पाठक के नोट्स भर' कहते है...

हृषिकेष सुलभ के 'दातापीर' उपन्यास पर यतीश कुमार की समीक्षा 'फकीरों वाली रूहानियत का रोचक आख्यान'

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बहु संस्कृतियों, बहु धर्मों, बहु बोलियों और भाषाओं वाला अपना यह बहु देश है भारत। अपने आप में एक महाद्वीप को समेटे इस देश का अंदाज ही अलबेला है। एक साथ फकीरी भी और अमीरी भी। हिन्दू और मुसलमान एक साथ हजारों सालों से जीते, रहते आ रहे हैं। इनमें झगड़े भी होते हैं और प्यार भरा अपनापन भी होता है। हृषिकेष सुलभ साहित्य और फिल्म की दुनिया में जाना माना नाम है। उन्होंने अतीत में पटना के जिस दौर को देखा, महसूसा और जिया है, उसे अपने रोचक उपन्यास 'दातापीर' में सहज तरीके से ढाल दिया है। राजकमल प्रकाशन से छपा यह उपन्यास अपनी ढब का है, जिसे सरसरी तौर पर नहीं, बल्कि थम कर पढ़ना पड़ता है। आज हृषिकेश सुलभ का जन्म दिन है। उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं 'दातापीर' उपन्यास पर  यतीश कुमार की  समीक्षा 'फकीरों वाली रूहानियत का रोचक आख्यान'। दाता पीर : फकीरों वाली रूहानियत का रोचक आख्यान यतीश कुमार  मुजाविरों की दुनिया और वो भी आज की! फ़क़ीरों और उनके इर्द-गिर्द घुमती ज़िंदगी से रूबरू होना हो तो इस किताब को उठा लीजिए। मैयतों का राग-विराग है, हज़रत दा...