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मंगलेश डबराल की कविताएं

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  मंगलेश डबराल  मंगलेश डबराल की कविताएँ अपने समय का साक्षात्कार हैं। उनका सपना एक बेहतर दुनिया है, जिसे वही रच सकता है जिसमें इंसानियत हो। लेकिन जैसे पक्ष का प्रति पक्ष होता है वैसे ही कुछ ऐसी ताकतें भी होती हैं जो सब कुछ अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती हैं। ये दरअसल मनुष्य और मनुष्यता के शत्रु होते हैं। समय के साथ यह शत्रु भी अपने पैंतरे बदलता है। पहले जैसे अब वह खुल कर सामने नहीं आता बल्कि आपका अनन्यतम बन कर आपको चोट पहुंचाता है। कल  मंगलेश जी का जन्मदिन था। इस अवसर पर कवि की स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं कवि  मंगलेश डबराल  की कविताएँ। मंगलेश डबराल की कविताएँ  नए युग में शत्रु अंततः हमारा शत्रु भी एक नए युग में प्रवेश करता है  अपने जूतों कपड़ों और मोबाइलों के साथ  वह एक सदी का दरवाज़ा खटखटाता है  और उसके तहख़ाने में चला जाता है  जो इस सदी और सहस्राब्दी की ही तरह अथाह और अज्ञात है  वह जीत कर आया है और जानता है कि उसकी लड़ाइयाँ बची हुई हैं  हमारा शत्रु किसी एक जगह नहीं रहता  लेकिन हम जहाँ भी जाते हैं पता चलता है वह और कहीं रह रहा है  अपनी पहचान को उसने हर जगह अ

यतीश कुमार की किताब बोरसी भर आँच की उर्मिला शिरीष द्वारा की गई समीक्षा

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    जीवन की एक खुबसूरती यह है कि यहां पर संघर्ष है। संघर्ष के बिना जीवन की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती। संघर्ष जीवन को निखारने का काम करता है। कबीर याद आ रहे हैं। उनका एक दोहा है -  जिन खोजा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ।  मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ।। अनुभवों से निःसृत यह दोहा जीवन संघर्ष के बारे में सब कुछ बयां कर देता है। कवि यतीश कुमार का जीवन भी संघर्षमय रहा है। अपने इस संघर्ष को उन्होंने अपनी किताब 'बोरसी भर आंच' में कलमबद्ध किया है। उर्मिला शिरीष ने इस किताब की पड़ताल करते हुए एक समीक्षा लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं यतीश कुमार की किताब 'बोरसी भर आँच' की उर्मिला शिरीष द्वारा की गई समीक्षा ' अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भरे अतीत का सैरबीन'। अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भरे  अतीत का सैरबीन उर्मिला शिरीष लंबे अरसे बाद संस्मरण की एक ऐसी किताब पढ़ी, जिसको पढ़ने के बाद मन एक अनकही वेदना, बैचेनी और स्मृतियों से भर उठा है। सोचा ऐसा क्या है इस बोरसी भर आँच अतीत की सैरबीन में जो भीतर तक जा कर झनझना रहा है। कितने लोगों का बचपन विकट संकट

पौमिला ठाकुर के उपन्यास 'नायिका' की रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा

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  कविता, कहानी हो या उपन्यास जैसी कोई रचना, कल्पना की उड़ान होते हुए भी इनमें जीवन और समाज का वह सच दर्ज होता है जिसे इतिहास दर्ज करने से कहीं न कहीं चूक जाता है। यह एक कटु यथार्थ है कि आधी आबादी होने के बावजूद स्त्रियां जाने अंजाने कहीं न कहीं पुरुषों के उत्पीड़न का शिकार होती रही हैं। और बात पहाड़ी स्त्रियों की हो तब यह उत्पीड़न एक भयावह सच्चाई के रूप में सामने आता है। पौमिला ठाकुर ने अपने उपन्यास नायिका के माध्यम से पहाड़ी स्त्रियों के दर्द को दर्ज करने की सफल कोशिश की है। इस उपन्यास की एक समीक्षा लिखी है कवयित्री रुचि बहुगुणा उनियाल ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  पौमिला ठाकुर के उपन्यास 'नायिका' की  रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा  'पहाड़ी महिलाओं के पीड़ा की अकथ कहानी'। 'पहाड़ी महिलाओं के पीड़ा की अकथ कहानी' रुचि बहुगुणा उनियाल                               आप किताब पढ़ते हुए क्या चीज़ ढूँढते हैं, यही न कि शुद्ध रूप से साहित्य के साथ रोचकता भी भरपूर मिले, कि आप पढ़ना शुरू करें तो कहीं किसी तरह भी किताब रखने का मन न हो, कि पढ़ते हुए लगने लग

गोपेश्वर सिंह का आलेख 'तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से लड़ाई'

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  नन्द किशोर नवल नन्द किशोर नवल हिन्दी साहित्य में मार्क्सवादी चेतना सम्पन्न शीर्षस्थ आलोचकों में रहे हैं। उनके अध्ययन एवं लेखन का क्षेत्र व्यापक है। निराला एवं मुक्तिबोध पर उनका मुख्य काम है। इन दोनों कवियों पर उनका लेखन मानक महत्त्व रखने वाला सिद्ध हुआ है। अपने समकालीन लेखन में नये से नये कवियों पर भी लिखने वाले नवल जी ने तुलसीदास एवं सूरदास से लेकर रीतिकाव्य तक पर कलम चलायी है।  12 मई 2020 को उनके निधन के उपरांत गोपेश्वर सिंह ने यह संस्मरण लिखा था। जो पक्षधर वेब पत्रिका के साथ साथ कथादेश, परिंदे आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ। नवल जी की स्मृति को नमन करते हुए हम गोपेश्वर सिंह का यह आत्मीय संस्मरण प्रकाशित कर रहे हैं। 'तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से लड़ाई' (नंदकिशोर नवल का पुण्य स्मरण)   गोपेश्वर सिंह अजीब रिश्ता रहा नंदकिशोर नवल से। वे हमारे अध्यापक भी थे और वरिष्ठ सहकर्मी भी। उनसे वैचारिक-साहित्यिक हमारी लड़ाइयाँ  भी  ख़ूब हुईं और हमने एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत भी  की। लगभग चार दशकों के संग-साथ में अनेक चढ़ाव-उतार आए। हम एक-दूसरे को कभी पसंद, कभी नापसंद करते रहे। एक-दूसरे की र

चौथी राम यादव का आलेख 'अवतारवाद का समाजशास्त्र और लोकधर्म'

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  कल अचानक यह खबर मिली कि प्रोफेसर चौथी राम यादव नहीं रहे। यह खबर स्तब्ध कर देने वाली थी। उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर गांव जाने की तस्वीर लगाई थी। कौन जानता था कि उनकी यह अन्तिम यात्रा साबित होगी। वे जीवन के अंतिम पल तक सक्रिय रहे। उन का मुख्य काम हजारी प्रसाद द्विवेदी और छायावाद पर है। उनकी पुस्तक ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी समग्र पुनरावलोकन’ अपने विषय के सम्यक् मूल्यांकन में सक्षम है। उनकी पुस्तक ‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण और छायावादी काव्य’ शोध और आलोचना का मिश्रित रूप है। प्रो. चौथीराम यादव ने भारत के बहुसंख्यक समाज के हितों को ध्यान में रखकर दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श और बहुजन समाज के सामाजिक-साहित्यिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट पक्षधरता को प्रकट किया। भाषणों के अतिरिक्त इन चार पुस्तकों में उनके ऐसे विचारों को पढ़ा जा सकता है – ‘लोकधर्मी साहित्य की दूसरी धारा’, ‘उत्तरशती के विमर्श और हाशिए का समाज’, ‘लोक और वेद आमने-सामने’, ‘आधुनिकता का लोकपक्ष और साहित्य’. उत्पीड़ित समुदायों के प्रतिरोध को साहित्य, संस्कृति, धर्म और राजनीति में चिह्नित करती हुई ये पुस्तकें न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के