मंगलेश डबराल की कविताएं
मंगलेश डबराल मंगलेश डबराल की कविताएँ अपने समय का साक्षात्कार हैं। उनका सपना एक बेहतर दुनिया है, जिसे वही रच सकता है जिसमें इंसानियत हो। लेकिन जैसे पक्ष का प्रति पक्ष होता है वैसे ही कुछ ऐसी ताकतें भी होती हैं जो सब कुछ अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती हैं। ये दरअसल मनुष्य और मनुष्यता के शत्रु होते हैं। समय के साथ यह शत्रु भी अपने पैंतरे बदलता है। पहले जैसे अब वह खुल कर सामने नहीं आता बल्कि आपका अनन्यतम बन कर आपको चोट पहुंचाता है। कल मंगलेश जी का जन्मदिन था। इस अवसर पर कवि की स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं कवि मंगलेश डबराल की कविताएँ। मंगलेश डबराल की कविताएँ नए युग में शत्रु अंततः हमारा शत्रु भी एक नए युग में प्रवेश करता है अपने जूतों कपड़ों और मोबाइलों के साथ वह एक सदी का दरवाज़ा खटखटाता है और उसके तहख़ाने में चला जाता है जो इस सदी और सहस्राब्दी की ही तरह अथाह और अज्ञात है वह जीत कर आया है और जानता है कि उसकी लड़ाइयाँ बची हुई हैं हमारा शत्रु किसी एक जगह नहीं रहता लेकिन हम जहाँ भी जाते हैं पता चलता है वह और कहीं रह रहा है अपनी पहचान को उसने हर जगह अ