अमीर चन्द वैश्य

गीतकार सुभाष वशिष्ठ का अभी हाल ही में एक नवगीत संकलन बना रह ज़ख्म तू ताजा आया है। वरिष्ठ आलोचक अमीर चन्द्र वैश्य ने इस संकलन पर एक समीक्षा लिखी है जिसे हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। निजी अनुभूतियों का साधारणीकरण मेरे सामने एक नवगीत संकलन है। ‘ बना रह ज़ख्म तू ताजा ‘। गीतकार हैं सुभाष वसिष्ठ । मेरे अंतरंग मित्र और परम आत्मीय। पारिवारिक सम्बन्धों से जुड़े हुए। अपने नाम के अनुरूप मधुर भाषी और निर्भीक वक्ता। महान् नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के समान। अपना जीवन-पथ स्वयं निर्मित करने वाले। ऐसे सुभाष वसिष्ठ से मेरा मौन साक्षात्कार सन् 1974 में हुआ था, जब वह ने0मे0शि0 ना0 दास (पी0जी0) कालेज, बदायूँ में हिन्दी प्रवक्ता पद के लिए प्रत्याशी थे। उस समय विभाग में प्रवक्ता पद के लिए दो स्थान रिक्त थे। मैं भी प्रत्याशी था। विभिन्न वेश-भूषा में सजे हुए अनेक प्रत्याशी। मैं सबके चहरे पढ़ रहा था। उनकी बातें सुन रहा था। एक सुदर्शन युवक हँसमुख शैली में सभी से बतिया रहा था। बातें नई कहानी के बारे में हो रही थीं शायद। वह सुदर्शन युवक आकर्षक मु