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पंखुरी सिन्हा की कविताएं

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  आज जब दुनिया में नफ़रत और घृणा अपने चरम पर है, तब प्रेम ही वह भरोसा है जो हमें आश्वस्त करता है कि अन्ततः सब बेहतर होगा। ढाई आखर के इस प्रेम के विस्तार की सीमा नहीं है। यह असीम और अनन्त है। यह प्रेम ही है जिसके बारे में आमतौर पर यह कहा जाता है कि इसके बूते किसी से कोई भी काम कराया जा सकता है। प्रेम ही वह अनुभूति है जिसके लिए हम मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। अपनी एक अपेक्षाकृत लम्बी कविता अच्छी पार्टी और प्रेम में पंखुरी सिन्हा लिखती हैं 'प्रेम तो ऐसा होता है/ जिसमें कोई जान ले ले/ किसी की'। लेकिन दुर्भाग्यवश प्रेम भी इन दिनों एक जुमला बनता जा रहा है। जो प्रेम किसी भी बन्धन को स्वीकार नहीं करता, उसी को समाज के उद्धत लोग निर्धारित करने वाले ठेकेदार बनते जा रहे हैं। प्रेम को सीमाओं में बांधने का प्रयास किया जा रहा है। जो ऐसा कर रहे हैं वे नहीं जानते कि पहले भी प्रेम ने किसी तरह के अवरोध को स्वीकार नहीं किया और न ही वह आगे ऐसा करेगा। यही तो प्रेम की उदात्तता है। यही प्रेम की ताकत है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं पंखुरी सिन्हा की कविताएं। पंखुरी सिन्हा की...

पंखुरी सिन्हा की कविताएं

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  इतिहास के साथ एक बड़ी दिक्कत यह है कि यह हमें कई ऐसे अटपटे तथ्य बताता है, जो हमारे विरुद्ध ही खड़े हो जाते हैं और हमें मुंह चिढ़ाते हैं। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि हम लाख कोशिशें करें, अतीत को बदल नहीं सकते। (हां, उस पर विचार कर भविष्य को सुखद बनाने के लिए वैसी पुनरावृत्ति से जरूर बच सकते हैं जो हमें उलझनों में डाल सकती है।) खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में, जहां समय समय पर कई राजवंश स्थापित हुए, जहां अलग अलग तरह की शासन व्यवस्थाएं संचालित होती रहीं। लेकिन राजनीति मानती कहां है। वह अक्सर इतिहास के साथ उलझ जाती है। उसे बदलने की ताकीद करती है। आप बने बनाए ढांचे को तो तोड़ सकते हैं। आप तथ्यों को तो मरोड़ सकते हैं लेकिन तथ्यों को बदल नहीं सकते। किसी भी जागरूक कवि को अपने समय ही नहीं बल्कि अपने अतीत से भी टकराना पड़ता है। पंखुरी सिन्हा ने भी ताजमहल के हवाले से 'जब आंचल रात का लहराए' शीर्षक से महत्त्वपूर्ण कविता लिखी है जिसे वर्तमान परिस्थितियों के आलोक में पढ़ा और देखा जा सकता है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं पंखुरी सिन्हा की कुछ नई कविताएं। पंखुरी सिन्हा की कविताएं जब आंचल रात का ...

पंखुरी सिन्हा की कहानी 'बिरहन ओदी लाकड़ी'

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  पंखुरी सिन्हा  कोरोना काल की तल्ख स्मृतियां आज भी दिलो दिमाग में बसी हुई हैं। इस कोराेना महामारी ने न जाने कितने प्रियजनों को हमसे छीन लिया। पंखुरी सिन्हा की इस कहानी के मूल में कोरोना और उससे जुड़ी हुई तल्ख स्मृतियां हैं। कोरोना ने जैसे जिन्दगी को ही कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया। चारों तरफ मौत का ताण्डव। श्मशान में लाशों का अंबार लेकिन सुगना डोम को एक भी लाश नहीं मिलती जिसका क्रिया कर्म वह करा सके। ऐसी बीमारी जिसके होने पर अपने तलक बेगाने हो जाते। ऐसे में एक महिला की लाश पर स्वर्णाभूषण देख कर वह खुद को रोक नहीं पाया। इसके बाद उसके दिलो दिमाग पर तारी मौत के भय ने सुगना जैसे डोम को आतंकित कर दिया। कवि पंखुरी सिन्हा की यह कहानी इस मायने में भी उम्दा है कि इसमें सुगना की जद्दोजहद जैसे एक आम आदमी की जद्दोजहद में तब्दील हो जाती है। कहानी में अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। हम कहानी के प्रवाह में जैसे एकमेक हो जाते हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  पंखुरी सिन्हा की कहानी 'बिरहन ओदी लाकड़ी'। 'बिरहन ओदी लाकड़ी' पंखुरी सिन्हा  सड़कें लाशों से पटी हैं, लेकिन किसी को जलाने से म...

हिदेआकी इशिदा से पंखुरी सिन्हा की बातचीत

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                        हिदेआकी इशिदा के साथ पंखुरी सिन्हा  हिदेआकी  इशिदा का जन्म 20 सितंबर 1949,  क्योतो शहर, जापान में हुआ। टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज़ से हिंदी में एम. ए. करने के बाद, उन्होंने टोक्यो के डायटो बंका विश्वविद्यालय में 28 वर्षों तक अध्यापन किया। उनके अध्ययन के विषय आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य से जुड़े रहे हैं। उपन्यास, कहानी, कमज़ोर वर्ग पर लिखित रचनाओं में रुचि रही है. उनकी प्रकाशित कुछ पुस्तकें हैं, आलेख; उदय प्रकाश की कुछ रचनाओं का जापानी में अनुवाद, राही मासूम राजा के उपन्यासों में चित्रित मुसलमानों की समस्या। अभी पढ़ाई के दिनों से ही, वे दिल्ली विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग से जुड़े रहे हैं, और आज भी भारत आते जाते रहते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं जापानी हिन्दीविद  हिदेआकी इशिदा से पंखुरी सिन्हा की बातचीत। हिदेआकी इशिदा से पंखुरी सिन्हा की बातचीत 1 आप सबसे पहले हिन्दी की ओर कब और कैसे आकर्षित हुए?  जब मैं यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रहा था तब विषय के रूप में भारत को चुना था।...

असमिया के चर्चित कवि रंजीत दत्ता की कविताएं

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रंजीत दत्ता किसी भी मनुष्य की आधारभूत आवश्यकता होती है उसका घर। अपने घर पर वह सुकून महसूस करता है। घर से उसकी अनुभूतियां जुड़ी होती हैं। घर से उसके सपने और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। वह काम के लिए घर से बाहर निकलता है और फिर लौट आता है सुकून के कुछ पलों के लिए अपने घर। घर एक तरह से उसकी छोटी सी दुनिया हो जाती है। हालांकि आदमी जानता है कि एक दिन उसे बीत जाना है। और तब यह घर बेगाना हो जाएगा। फिर भी घर तो घर ही होता है। कवि कुंवर नारायण की एक कविता है 'घर रहेंगे'। कविता इस प्रकार है  : 'घर रहेंगे, हमीं उनमें रह न पाएँगे/ समय होगा, हम अचानक बीत जाएँगे/ अनर्गल ज़िंदगी ढोते किसी दिन हम/  एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जाएँगे।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं असमिया के चर्चित कवि रंजीत दत्ता की कविताएं। इन कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया है पंखुरी सिन्हा ने। रंजीत दत्ता की कविताएं (चर्चित असमिया कवि)  हिन्दी अनुवाद : पंखुरी सिन्हा घर   सजाया गया सावधानीपूर्वक एक घर  एक पागल चाहत खुशगवार रहन के लिए बन्द सुरक्षित  एक बार और दोबारा  हर कोना, हर चप्पा  सुसज्जित भल...