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बटरोही जी का आलेख ‘औरतें नहीं हो सकतीं हिंदी-रसोई की शेफ़’

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बटरोही   लेखन ऐसा क्षेत्र है जिसमें हर किसी को अपने लेखन के जरिए ही साबित करना होता है । यहाँ कोई भी जोड-तोड काम नहीं आता । कोई लेखक अपने जीवन में जोड-तोड कर के ख्याति बटोर तो सकता है , लोकप्रिय नहीं हो सकता । ऐसे लोग समय बीतने के साथ ही बीत जाते हैं । हिंदी लेखन में स्त्रियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर अपने को साबित किया है । इन स्त्री लेखिकाओं ने उस मिथक को तोडा है जो अभी तक हमारे समाज की मान्यता हुआ करती थी कि औरतें ही हिंदी - रसोई की शेफ़ हो सकतीं हैं । शिवरानी देवी , शिवानी , कृष्णा सोबती , मन्नू भंडारी , ममता कालिया , मृदुला गर्ग , मधु कांकरिया आदि अनेक ऐसे नाम हैं जिनके बारे में यह कहा जा सकता है कि उन्होंने उम्दा लेखन किया है । बटरोही जी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक हैं। अपने एक आलेख में हिंदी की बड़ी लेखिकाओं – शिवरानी देवी प्रेमचंद , शिवानी , मन्नू भंडारी , मृदुला गर्ग और मधु कांकरिया के संपर्क को याद करते हुए उन्होंने महत्त्वपूर्ण बातें रखी हैं। आइए आज पहली बार पर पढते हैं बटरोही जी का आलेख ‘ औरतें नहीं हो सकतीं हिंदी - रसोई ...