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पीयूष कुमार का आलेख 'लोहे से बुनी तरल कामनाओं का कवि'

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  रजत कृष्ण  हमारे देश का किसान आज भी अपनी खेती के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति ने साथ दिया तो जीवन जैसे तैसे साल भर चल जाता है। लेकिन प्रकृति ने कभी अपनी त्यौरियाँ चढ़ा लीं तो उनका जीवन कष्टकारी हो जाता है। सीधे सादे किसान सत्ताओं के आसान शिकार होते हैं। सभी उसे नोचने खसोटने में लगे रहते हैं। इसीलिए बतौर पीयूष कुमार ' रजत कृष्ण की जनपदीय चेतना में कुव्यवस्था के विरुद्ध धीमी सुलगती आग हैं। इस आग में तप कर उनकी कविताएँ कुंदन होने की यात्रा करती हैं। वे बहुस्तरीय और बहुआयमी जीवन की जटिलता को देख पाने और जाहिर कर सकने वाले कवि हैं। रजत कृष्ण की विशेषता है कि वे छोटी संवेदना का एकत्रीकरण कर विराट संदर्भों को पकड़ते हैं। उनकी कविताएँ महानगरीय भावबोध और जीवन से इतर लोक की सुदीर्घ यात्रा का प्रतिफल हैं। उनकी सभी कविताओं में लोक, जंगल और आम आदमी की व्यथा सरल सहज रूप में व्यंजित हुई हैं।' आज रजत कृष्ण का जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं। आइए इस अवसर पर हम पहली बार पर पढ़ते हैं रजत कृष्ण पर केन्द्रित  पीयूष कुमार का आलेख 'लोहे ...

रजत कृष्ण की कविताएँ

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  रजत कृष्ण एक अजीब सी विडम्बना है कि अन्न उपजा कर  देश दुनिया को जीवन देने वाले किसान खुद कर्ज के ऐसे जंजाल में उलझ जाते हैं कि उन्हें आत्महत्या की राह चुननी पड़ती है। इन किसानों के सामने ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर दी जाती हैं कि उनके सामने कोई विकल्प ही नहीं बचता। मौसम की मार से जूझने वाले, टिड्डी दलों के हमलों का सामना करने वाले, आवारा पशुओं की आवारगी सहन करने वाले किसान सूदाखोरों और दलालों के आगे बेवश नजर आते हैं। अब तो माफियाओं, ठेकेदारों और दलालों की नजरें किसानों की जमीनों पर हैं। किसानों से बीघे के भाव जमीन खरीद कर प्लाटिंग कर रहे हैं और वही जमीन ये दलाल वर्ग फुट और वर्ग मीटर में बेच कर बेहिसाब लाभ कमा रहे हैं। किसान बस देखता रह जाता है। कवि रजत कृष्ण किसान किया स्थिति से भलीभांति अवगत हैं और उसे अपनी कविताओं में दर्ज करते करते हैं।  आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं रजत कृष्ण की कुछ बिल्कुल नई कविताएँ। रजत कृष्ण की कविताएँ दिवाली में दौआ राम  धनतेरस के दो दिन पहले ही  सोने-चांदी की दुकान में  मिल गया दौआ राम! पास के ही गाँव सोनापुटी से  ...