जानकीवल्लभ शास्त्री के गीत

जानकीवल्लभ शास्त्री कवि सुभद्रा कुमारी चौहान के कहने पर एक युवा कवि ने निराला की अमर रचना ’वर दे वीणावादिनी’ को राग भीमपलाशी में गा कर सुनाया। उसके बाद कवि हरिवंशराय बच्चन और कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी-अपनी कविताएँ पढ़ीं। फिर उसी युवा कवि ने अपनी एक कविता ’किसने बांसुरी बजाई’ को राग केदार में सुनाया तो महाकवि निराला ने ’मनोहरा स्वर्णपदक’, जो उनके लिए सुरक्षित था, उस युवा कवि को देने की घोषणा कर दी और बच्चन जी ने कहा - तुम्हारा गला काट लेने लायक है। वह कोई और नहीं, हिन्दी और संस्कृत के उद्भट विद्वान और रचनाकार आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री थे। जानकीवल्लभ शास्त्री ने अपने घर में अपने पिता का मन्दिर बना रखा था, जिसमें अपने पिता की मूर्त्ति लगा रखी थी। अपनी मृत्यु से एक दिन पहले तक छियानवे वर्षीय आचार्य ने सुबह उठ कर सबसे पहले अपने पिता की वन्दना की थी। क्या आपने कहीं और पिता का मन्दिर देखा है? ’पहली बार’ के पाठकों के लिए आज पेश हैं, उन्हीं आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के कुछ गीत। प्रस्तुति कवि अनिल जनविजय की है। जानकीवल्लभ शास्त्री के गीत ज़िन्दगी की कहानी ज़ि...