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ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! 

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                     व्यंग्य ऐसी विधा है जो सरस भाषा में होते हुए भी गहरे तौर पर अपना काम कर जाता है। रोजमर्रा की बातों, घटनाओं में से ही व्यंग्यकार अपनी बातें खोज लेता है। इस क्रम में वह दूर की कौड़ी नहीं लाता बल्कि घर की कौड़ी लाता है। इस क्रम में सटीक बातें और प्रहार करता है।  व्यंग्य एक तरफ जहां गुदगुदाता है वहीं दूसरी तरफ अंतस को झकझोर डालता है।  ललन चतुर्वेदी उम्दा कविताओं के साथ-साथ धारदार  व्यंग्य भी लिखते हैं।  आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं  ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं!  कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं!                                                                                                                      ललन चतुर्वेदी                                                            सुबह जब सैर के लिए निकला तो गलियों में कुत्ते नदारद थे। मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। मैंने अगल-बगल की गलियों के भी चक्कर लगाए पर कुत्ते वहाँ भी नहीं मिले। ऐसा नहीं कि मैं कुत्ते को खोज रहा था पर कुत्तों के बिना गलियों की उदासी को जरूर पढ़ रहा था। गलियों में

अशोक मित्रन की तमिल कहानी 'दो मिनट' हिंदी अनुवाद - श्रीविलास सिंह।

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  अशोक मित्रन     अशोक मित्रन का जन्म 22 सितंबर, 1931 को सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनका मूल नाम  त्यागराजन था।   21 साल की उम्र में, वह अपने पिता की मृत्यु के बाद वे चेन्नई चले गए, जहाँ उन्होंने एक दशक तक जेमिनी स्टूडियो में काम किया।   बाद में 1966 में वे पूर्णकालिक लेखक बन गए।   उन्होंने "अशोक मित्रन" का छद्म नाम लिया। 1980 और बाद में, उनके कई कार्यों का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनके सरल शब्दों और विचारों को स्पष्टता में व्यक्त करते हुए उन्हें सबसे प्रभावशाली तमिल लेखकों में से एक के रूप में रखा गया। वर्तमान समय।  अशोकमित्रन" जब उन्होंने लिखना शुरू किया।  1980 और उसके बाद के दौरान, उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।  उनके सरल शब्दों और विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करते हुए उन्हें वर्तमान समय के सबसे प्रभावशाली तमिल लेखकों में से एक के रूप में स्थापित किया। उन्होंने लिखने के लिए  अशोकमित्रन" का छद्म नाम अपनाया।  1980 और उसके बाद के दौरान, उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।  उनक

रमेश ऋतंभर की कविताएं

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  रमेश ऋतंभर   रमेश ऋतंभर का संक्षिप्‍त परिचय   जन्‍म : 2 अक्टूबर , 1970 जन्‍म स्‍थान- नरकटियागंज , पश्चिम चंपारण (बिहार) शिक्षा : एम. ए. , पी-एच. डी. पुस्‍तकें : दो आलोचनात्‍क पुस्‍तकें प्रकाशित –‘’ रचना का समकालीन परिदृश्य ’’ और ‘’ सृजन के सरोकार ’’ । एक कविता संग्रह : ‘’ ईश्‍वर किस चिड़िया का नाम है ’’ प्रकाशनाधीन।      सम्मान , पुरस्‍कार : चम्पारण रत्‍न सम्मान , बिहार राष्‍ट्रभाषा परिषद का युवा साहित्यकार सम्‍मान , कवि कन्हैया सम्मान , कवि शैलेंद्र स्मृति सम्मान। सम्प्रति : बिहार विश्वविद्यालय के आरडीएस कॉलेज , मुजफ्फरपुर में हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्यरत।   जिंदगी दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है। केवल जिंदा रहना और जिंदा रहते हुए सब कुछ सहते सुनते रहना वास्तविक जिंदगी जिंदगी नहीं होती। जिंदगी वह होती है जो अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने समय और समाज के लिए जी जाती है। विचारक राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था 'जिंदा कौमें पांच साल का इंतजार नहीं करतीं।' हालांकि लोहिया का यह वक्तव्य राजनैतिक था लेकिन अगर इस वक्तव्य की तह में उतर कर देखा जाय तो यह जिंदगी जीने के तरीके को सही