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माननीया मातृ देवी की कहानी 'कुम्भ में छोटी बहू'

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  बंग महिला  बंग महिला को हिन्दी की पहली महिला कथाकार माना जाता है। यह राजेन्द्र बाला घोष का छद्म नाम था। हिन्दी नवजागरण के दौर में कहानी लिखने वाली वे पहली महिला थीं। उनका परिवार वाराणसी का एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार था। आपके पूर्वज बंगाल से आकर वाराणसी में बस गए थे। 1904 से 1917 तक बंग महिला की रचनाएँ विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इसी बीच अपने दो बच्चों के असमय निधन और 1916 में पति के देहान्त से वे बुरी तरह टूट गईं। इन आघातों के कारण उनका लेखन भी बन्द हो गया। नारियों को रूढ़ तथा जड़ परम्पराओं के शिकंजे में कसने वाली शास्त्रीय व्यवस्थाओ को नकारती हुई बंग महिला ने स्त्री-शिक्षा का नया माहौल बनाया। उन्होंने नारियों के लिए स्वेच्छया पति का चुनाव करने, तलाक देने और यहाँ तक कि ‘पत्यन्तर’ करने के अधिकार की माँगें पुरजोर कीं। उनके लेखन में नया युग नई करवटें लेने लगा। बंग महिला के जीवन और कृतित्व में समकालीन नारी-लेखन के तमाम-तमाम मुद्दे अन्तर्भूत हैं। बंग महिला ने 1910 में 'कुसुम संग्रह' नामक पुस्तक का सम्पादन किया जिसमें अपनी कहानियों के साथ-साथ कु...