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अखिलेश के संस्मरण 'अक्स' पर यतीश कुमार की समीक्षा 'चालीस साल की अनकही'।

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  लेखक का अपना जीवन और उस जीवन से जुड़ी हुई बातें, जब संस्मरण के रूप में सामने आती हैं, तो जैसे समय जीवंत हो उठता है। इस समय के हवाले से हम समाज, संस्कृति और उससे जुड़ी हुई गतिविधियों को तफ्सील से जान पाते हैं। निर्मल वर्मा, शेखर जोशी, रवीन्द्र कालिया, काशी नाथ सिंह ने हिन्दी साहित्य जगत को यादगार  संस्मरण दिए हैं। इसी कड़ी में एक और नया नाम जुड़ता है अखिलेश का। अखिलेश हमारे समय के ख्यातनाम कहानीकार हैं। अपनी पत्रिका 'तद्भव' के माध्यम से भी उन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता को एक नया आयाम प्रदान किया है। उन्होंने अपने समय में इलाहाबाद की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखा ही नहीं है बल्कि शिद्दत के साथ जिया और महसूस किया है। उन्होंने अपने हिस्से की अनकही को संस्मरण रूप में शब्दबद्ध किया है जो 'अक्स' नाम से प्रकाशित हुआ है। कवि यतीश कुमार ने इस अक्स की एक पाठकीय पड़ताल की है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अखिलेश के संस्मरण 'अक्स' पर यतीश कुमार की समीक्षा 'चालीस साल की अनकही'। चालीस साल की अनकही यतीश कुमार  अक्स के इस आख्यान में समय और समय की स्मृति का अक्स

अनामिका अनु की किताब यारेख़ की रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा 'यारेख : प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा'

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  दुनिया में कौन ऐसा होगा जिसने प्यार नहीं किया होगा। इस रास्ते से प्रायः सभी गुजरते हैं। इस अहसास को प्रायः सभी जीते हैं। कुछ इसे अभिव्यक्त कर पाते हैं जबकि कुछ इसे अपने मन में रखते हुए ही जीवन गुजार देते हैं। किसी का प्रेम भलीभांति फलता फूलता है जबकि किसी का प्रेम परवान ही नहीं चढ़ पाता और वह एकतरफा ही रह जाता है। प्रेम हो और प्रेम पत्र न लिखे जाएं यह असम्भव ही है। दुनिया के तमाम कलाकारों, रचनाकारों ने अपनी प्रेमिकाओं को प्रेम पत्र लिखे, जो पीढ़ियों के लिए एक दस्तावेज की तरह है। प्रेम पुरातन होते हुए भी इतना नूतन है कि कवि आज भी प्रेम कविताएं लिख रहे हैं। कवयित्री अनामिका अनु ने इन प्रेम पत्रों को यारेख नाम से पुस्तकाकार किया है। इस किताब की समीक्षा लिखी है रुचि बहुगुणा उनियाल ने, जो स्वयं भी एक उम्दा कवयित्री हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अनामिका अनु की किताब यारेख़ की रुचि बहुगुणा उनियाल द्वारा की गई समीक्षा 'यारेख : प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा'। यारेख - प्रेम की पीठ पर हौले से एक धप्पा रुचि बहुगुणा उनियाल        मैं स्वयं प्रेम लिखती हूँ और प्रेम में हूँ इसल

सुरेन्द्र कुमार की कविताएं

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प्रेम जीवन की सबसे खूबसूरत अनुभूति है। प्रेम जोड़ता है। और जुड़ने पर सारी कायनात जैसे बदल सी जाती है। प्रेम एक तरफ सौन्दर्य का सृजन करता है, तो दूसरी तरफ यह साहस का बल भी देता है। प्रेम विद्रोह करना सिखाता है। विद्रोह उन जड़ीभूत मान्यताओं से, जो हमें लकीर का फकीर बनाने के लिए सन्नद्ध रहते हैं। प्रेम चलना सिखाता है। प्रेम परवाह करना सिखाता है। सुरेन्द्र कुमार इन दिनों प्रेम में हैं। उन्होंने प्रेम की गहनतम अनुभूतियों को शब्दबद्ध किया है। इसीलिए ये कविताएं कुछ अलग किस्म की कविताएं हैं। देखने में सहजतम लेकिन मर्म में अंतस को झकझोरने वाली। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुरेन्द्र कुमार की कुछ नई कविताएं। सुरेन्द्र कुमार की कविताएं आपसे निवेदन है मैंने सुबह सुबह गुस्से का दरवाज़ा खटखटाया देखा महाराज जी चाय पी रहे हैं कैसे आना हुआ सब ठीक-ठाक तुम्हारे होते कहां हो पाता है पूरा घर लाल पीला हो रहा है बीवी से बात करो वो मुंह फुलाए बैठी है बच्चे इधर उधर सामान फेंक रहे हैं सब कुछ अस्त व्यस्त हो रहा है आपसे निवेदन है हमारे घर मत आया करो तुमने कितनी ही बार मुझसे दोस्ती करनी चाही याद है मैंने इंकार

रुचि उनियाल का संस्मरण 'घुघूती-बासूती'

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  रुचि बहुगुणा उनियाल  पारम्परिक तौर पर हमारा समाज स्त्रियों से घर को संभालने और चलाने की अपेक्षा करता है। यह अलग बात है कि इन अपेक्षाओं के बोझ तले वे खुद का जीवन जी ही नहीं पाती। पूरे घर की खुशियों का बोझ उनके ऊपर ही होता है। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने खुशियों की बलि देनी पड़ती है। पहली बार पर हरेक महीने के तीसरे रविवार का दिन रुचि उनियाल के संस्मरणों का दिन होता है। रुचि ने अपनी सासू मां के संस्मरण के हवाले से स्त्रियों की उन पीड़ाओं को अभिव्यक्त करने की सफल कोशिश की है जो प्रायः अनकही या अनदेखी रह जाती है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं रुचि बहुगुणा उनियाल का संस्मरण  "घुघूती-बासूती"। 'घुघूती-बासूती' रुचि उनियाल "घुघूती-बासूती… क्या खांदी?  दुधु-भाती!  मैं भी दे…..  जुठू छ कैकू?  मेरू!  तेरी ब्वै कख?  ग्वोठ जायीं। क्या कर्न?  दूधु द्धेवणा!  ग्वोठ को छ?  गाय-बाछी।  बाछी कन कदी?  म्हाँ कदी!  गाय क्या देंदी?  दूध देंदी!  दूध कु पेंदु?  मैं पिंदु!"  मैं प्राप्ति को दोनों पैरों में बिठा कर और उसके दोनों हाथ थाम कर ये लोक/बालगीत या यूँ कहूँ कि दुधबोली सिख

सुप्रिया पाठक का आलेख 'स्त्री प्रश्नों की अहिंसक दृष्टि'

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           सुप्रिया पाठक  समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद स्त्रियां एक लम्बे समय तक उपेक्षा का शिकार रहीं। आजादी की लड़ाई के क्रम में गांधी जी ने स्त्री प्रश्नों को अहमियत ही नहीं प्रदान किया अपितु उन्हें पुरुषों के बराबर का स्थान दिया। यही वजह थी कि स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई स्त्रियों की भूमिका अहम दिखाई पड़ती है। इसी क्रम में जीवन के विविध क्षेत्रों में स्त्रियों की सक्रियता बढ़ी। सुप्रिया पाठक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के क्षेत्रीय केन्द्र प्रयागराज में स्त्री अध्ययन विभाग में प्राध्यापक हैं। स्त्री अध्ययन के सन्दर्भ में उनका काम प्रशंसनीय है। 'भारतीय स्त्रियों का अहिंसक प्रतिरोध' उनका शोधपरक काम है। इस पुस्तक का एक आलेख हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुप्रिया पाठक का आलेख 'स्त्री प्रश्नों की अहिंसक दृष्टि'।      'स्त्री प्रश्नों की अहिंसक दृष्टि'   सुप्रिया पाठक   राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारत में महिलाओं से जुड़े प्रश्न एक राजनीतिक प्रश्न के रूप में ठीक उसी प्रकार उ