संदेश

फ़रवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विनीता बाडमेरा की कहानी “जाड़े के दिन”

चित्र
  विनीता बाडमेरा कहानी या कविता खालिस कल्पना की उड़ान नहीं होती। उसके पीछे रचनाकार की गहन अनुभूतियां होती हैं। रोजमर्रा का जीवन हो, या प्राकृतिक घटनाएं रचनाकार अपने हुनर से उसे एक कहानी का रूप दे देता है। विनीता बाडमेरा ऐसी ही कथाकार हैं जो अनुभूतियों को कहानी में सफलतापूर्वक ढालने में सक्षम हैं। कहानी पढ़ कर ताज्जुब होता है कि क्या ऐसी भी साधारण घटना कहानी का कथ्य बन सकती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विनीता बाडमेरा की कहानी “जाड़े के दिन”। “जाड़े के दिन” विनीता बाडमेरा इस बार का जाड़ा उनके लिए हैरान करने वाला है। हाथ कांप नहीं रहे हैं और तो और वर्षों से हर जाड़े में फटने वाली एड़ियों ने इस बार उन्हें जरा भी कष्ट नहीं पहुंचाया यह उनके लिए आश्चर्य की बात है लेकिन इस आश्चर्य की उन्हें जरा भी प्रसन्नता नहीं हो रही है। “क्या तुम घर में अब भी अलाव जलाते हो?” वे अक्सर फ़ोन लगा कर अपने मित्रों से पूछते। “अलाव तो नहीं, समय बदल गया है इसलिए। पर हां, हीटर ज़रुर उपयोग में लेते हैं क्योंकि हमारे बनारस में तो  ठंड बहुत बढ़ गयी हैं।” दूसरी ओर से ज़वाब आता। उनका मायूस मन और मायूस हो जाता।  “सब

सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'लेखक की दुनिया'

चित्र
  सेवाराम त्रिपाठी आम तौर पर कोई भी व्यक्ति लेखक बनने का निर्णय और व्यवसायों की तरह सोच कर नहीं करता। यह समय, परिस्थिति और संवेदनाएं होती हैं जिसके चलते लेखन की दुनिया में कोई भी व्यक्ति प्रवेश करता है। इस लेखक की अपनी एक सोच होती है। अपनी एक दुनिया होती है। लेखक को अपना रास्ता खुद चुनना पड़ता है। उसकी सोच स्पष्ट होनी चाहिए। उसे मनुष्यता में विश्वास होना चाहिए। लिखने के अपने खतरे भी होते हैं उन खतरों को उठाने के लिए तैयार भी रहना होता है। इस लेखक की दुनिया को ले कर एक महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है आलोचक सेवाराम त्रिपाठी ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'लेखक की दुनिया'। 'लेखक की दुनिया'   सेवाराम त्रिपाठी  “जिन्होंने नफ़रत फैलाई, क़त्ल  किए और खुद  ख़त्म हो गए नफ़रत से याद किए जाते हैं जिन्होंने मुहब्बत का सबक दिया और क़दम बढ़ाए वो ज़िंदा हैं मुहब्बत से याद किए जाते हैं..  रास्ते अलग-अलग और साफ़ हैं तुम्हें चुनना होगा नफ़रत, शक और मुहब्बत के बीच तुम्हारी आवाज़ बुलंद और साफ़  होनी चाहिए  और क़दम सही दिशा में”  बेर्टोल्ट ब्रेष्ट लेखक का रास्ता क

प्रीता माथुर ठाकुर से प्रतुल जोशी की बातचीत

चित्र
  प्रीता माथुर ठाकुर भारत के नामचीन और पुराने थियेटर ग्रुप में मुम्बई के 'अंक' थियेटर ग्रुप का स्थान अग्रणी है। इसकी स्थापना दिनेश ठाकुर ने 1976 में की थी। प्रीता माथुर विख्यात थियेटर अभिनेत्री हैं। पहले पहल उन्होंने इप्टा से जुड़ कर अभिनय की बारीकियां सीखी। आगे चल कर अंक थियेटर ग्रुप से जुड़ाव के पश्चात नीता जी ने दिनेश ठाकुर के साथ काम किया। बाद में नीता जी ने दिनेश ठाकुर के साथ शादी कर ली। थियेटर, थियेटर से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों को ले कर नीता माथुर ठाकुर से एक खास बातचीत की है प्रतुल जोशी ने। यह विस्तृत बातचीत नीता जी के आवास पर सम्पन्न हुई। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  मुम्बई के "अंक" थियेटर की ग्रुप की प्रमुख एवं प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता स्व. दिनेश ठाकुर की पत्नी  श्रीमती प्रीता माथुर ठाकुर से प्रतुल जोशी की एक खास बातचीत। श्रीमती प्रीता माथुर ठाकुर से प्रतुल जोशी की बातचीत प्रतुल - प्रीता जी, शुरू में आप ए. सी. सी. सीमेंट के वित्त विभाग से जुड़ी थीं। तो आप जब बम्बई में आयीं उस वक्त एक स्ट्रगलर के तौर पर नहीं, बल्कि एक कंपनी के साथ काम करते हुए आपने समय नि