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बली सिंह का आलेख 'ओमप्रकाश बाल्मीकि : व्यापक सामाजिकता के पक्षधर'

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ओमप्रकाश बाल्मीकि        दलित लेखन की जब भी बात आती है ओमप्रकाश वाल्मिकी का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वे ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने अपने लेखन में दलित वर्ग की व्यथाओं को मुखरित हो कर प्रस्तुत किया। उनकी आत्मकथा 'जूठन' को पाठकों का अपार प्यार मिला। अपनी बातें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहीं, बिना इसकी परवाह करते हुए कि इस पर कोई और क्या सोचेगा या कोई हो-हल्ला मचेगा। ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन पर सूक्ष्म दृष्टि डाली है बली सिंह ने। बली सिंह अपने आलेख में उचित ही लिखते हैं कि ‘नार्मलिटी’ के भीतर छिपी ‘एब-नार्मलिटी’ का उदघाटन जिन साहित्यकारों ने किया है उनमें ओमप्रकाश बाल्मीकि प्रमुख हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है कि दलित-समुदाय के लोगों के साथ मनुष्यों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? यानी उनको मनुष्यों की श्रेणी में ही नहीं गिना जाता। आज उनकी पुण्य तिथि पर हम उनकी स्मृति को नमन करते हैं। बली सिंह का यह आलेख अरसा पहले हमें कवि मित्र शंभू यादव ने उपलब्ध कराया था जो तब किसी वजह से प्रकाशित नहीं हो पाया था। तब से यह आलेख ब्लॉग के ड्राफ्ट में ही सुरक्षित था...

मनीषा जैन के कविता संग्रह 'रोज गूंथती हूं पहाड़' पर बली सिंह की समीक्षा

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कवियित्री मनीषा जैन का बोधि प्रकाशन से हाल ही में एक संग्रह आया है 'रोज गूंथती हूं पहाड़.' अपने इस संग्रह में मनीषा जैन ने बिना किसी शोरोगुल के स्त्री जीवन के यथार्थ को सामने रखने का सफल प्रयत्न किया है. इसीलिए यह संग्रह और संग्रहों से कुछ अलग बन पड़ा है. इस संग्रह की एक समीक्षा लिखी है बली सिंह ने. तो आईए पढ़ते हैं यह समीक्षा.      स्त्री केंद्रित सौंदर्य बोध बली सिंह आज हम जिस दौर में जी रहें हैं , वह वास्तव में संक्रमण का दौर है। ऐसे समय में बहुत सारी चीजें एक साथ घटित होती हैं। अनेक अस्मिताएं उभरती हैं तो कई ख़त्म भी होती हैं। यह लोकरूपों के ख़त्म होते जाने का दौर है। एक तरफ़ विकास है जो कि हमारे समय का एक नया आख्यान है , तो दूसरी ओर बड़े पैमाने पर विस्थापन घटित हो रहा है। मनुष्य ही नहीं वरन् प्रकृति के अनेक रूप यानी पशु-पक्षी , पेड़-पौधे , नदी-नाले और पहाड़ भी विस्थापन की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं। यही नहीं , इस दौर में तमाम चीज़ों पर , चाहे पहले की हों या अब की , पुनरावलोकन किया जा रहा है , संबधों पर नये सिरे से सोचा जा रहा है। निजी इच्छाओं-आकांक्षाओं यान...