बली सिंह का आलेख 'ओमप्रकाश बाल्मीकि : व्यापक सामाजिकता के पक्षधर'

ओमप्रकाश बाल्मीकि दलित लेखन की जब भी बात आती है ओमप्रकाश वाल्मिकी का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वे ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने अपने लेखन में दलित वर्ग की व्यथाओं को मुखरित हो कर प्रस्तुत किया। उनकी आत्मकथा 'जूठन' को पाठकों का अपार प्यार मिला। अपनी बातें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहीं, बिना इसकी परवाह करते हुए कि इस पर कोई और क्या सोचेगा या कोई हो-हल्ला मचेगा। ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन पर सूक्ष्म दृष्टि डाली है बली सिंह ने। बली सिंह अपने आलेख में उचित ही लिखते हैं कि ‘नार्मलिटी’ के भीतर छिपी ‘एब-नार्मलिटी’ का उदघाटन जिन साहित्यकारों ने किया है उनमें ओमप्रकाश बाल्मीकि प्रमुख हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है कि दलित-समुदाय के लोगों के साथ मनुष्यों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? यानी उनको मनुष्यों की श्रेणी में ही नहीं गिना जाता। आज उनकी पुण्य तिथि पर हम उनकी स्मृति को नमन करते हैं। बली सिंह का यह आलेख अरसा पहले हमें कवि मित्र शंभू यादव ने उपलब्ध कराया था जो तब किसी वजह से प्रकाशित नहीं हो पाया था। तब से यह आलेख ब्लॉग के ड्राफ्ट में ही सुरक्षित था...