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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कमलेश्वर की मशहूर कहानी कस्बे का आदमी'

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  इधर हमने पहली बार पर हिन्दी साहित्य की कुछ कालजयी रचनाओं को प्रस्तुत करना आरम्भ किया है। इस कड़ी में पिछले कुछ महीनों में हमने कुछ प्रस्तुतिकरण किए हैं। आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं  कमलेश्वर की मशहूर कहानी 'कस्बे का आदमी'। नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख स्तम्भ कमलेश्वर की कहानियां पढ़ते हुए अपने आस पास का परिदृश्य दिखाई पड़ता है। यह कहानी उस मानवीय संवेदना को उभारती है जिसमें पालतू पक्षियों और जीव जंतुओं को भी परिवार का हिस्सा माना जाता था। इस कहानी में छोटे महाराज का जुड़ाव अपने तोते के साथ है। वे अपने अन्तिम समय में तोते से ईश्वर का नाम सुनना चाहते हैं। यह एक सामान्य हिन्दू विश्वास है जिसमें कोई भी हिन्दू अपने अन्तिम समय में अपने परिजनों के मार्फत यह अपेक्षा करता है। हालांकि वे तोते को अपने निकटस्थ शिवराज को सौंप चुके थे लेकिन वहां असुरक्षित जान कर रुग्ण अवस्था में भी अपने घर वापस लाते हैं। ऐसा स्नेह और ममत्व दुर्लभ है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं कमलेश्वर की चर्चित कहानी 'कस्बे का आदमी'। 'कस्बे का आदमी' कमलेश्वर सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने एक क

कुछ चर्चित विदेशी कवियों की कविताएं, हिंदी अनुवाद---पंखुरी सिन्हा

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  कुछ चर्चित विदेशी कवियों की कविताएं   हिंदी अनुवाद---पंखुरी सिन्हा हमारे आस-पास तमाम ऐसी वनस्पतियां हैं जो किसी न किसी रूप में हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं। सबका अपना-अपना उपयोग है। एक किंवदंति याद आ रही है। विख्यात वैद्य चरक ने परीक्षण के क्रम में अपने दो शिष्यों को ऐसी वनस्पति खोज लाने को कहा जिसका कोई उपयोग न हो। एक शिष्य अन्ततः खाली हाथ लौटा। उसने कहा गुरुदेव जंगल में ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली जिसका कोई न कोई उपयोग न हो। अन्ततः चरक ने उसी शिष्य को अपने परीक्षण में उत्तीर्ण किया। कवि की नजर अपने आस-पास उन सूक्ष्म चीजों पर भी रहती है, जो प्रायः उपेक्षित से रहते हैं। यही तो बेहतरीन कवि का हुनर है कि वह उपेक्षित को भी अपनी कविता का केंद्रीय विषय बना देता है। चर्चित आइरिश कवि डेरेक कॉयल की कविता  'सिंहपर्णी' ऐसी ही एक उम्दा कविता है। डेरेक कॉयल के साथ साथ चर्चित वेल्स कवि डोमिनिक विलियम्स, चर्चित आइरिश-स्वीडिश-स्पैनिश कवि कोलम ओ कियेरनान, चर्चित क्यूबन- स्वीडिश कवि अलीसा रिबाल्टा गुज़मैन और चर्चित वेल्स कवि स्टीफेन त्रेहान की अनुवादित कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। इन कविताओं का उ

अलका सरावगी के ताजातरीन उपन्यास पर यतीश कुमार की समीक्षा 'गाँधी और सरला देवी चौधरानी : सवाल उठाता उपन्यास'

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  अलका सरावगी हिन्दी की चर्चित रचनाकार हैं। कहन की उनकी शैली ऐसी प्रवाहपूर्ण होती है कि पाठक रचना के आगोश में बंधता चला जाता है। पाठक की तंद्रा तभी टूटती है जब वह रचना की आखिरी पंक्ति से रू ब रू होता है। फ्लैश बैक की शैली का अलका जी अनूठा इस्तेमाल करती हैं। उनकी रचनाओं में गल्प होते हुए भी समय और उसके दस्तावेज अपनी कहानी कह रहे होते हैं। गाँधी और सरला देवी चौधरानी इतिहास के जीवन्त पात्र हैं। इन्हें उपन्यास के विषय के रूप में उठाना जितना आसान दिखता है, उतना आसान वह था नहीं। लेकिन यह तो अलका जी का हुनर है, जो इसे बड़ी खूबसूरती से निभा ले गई हैं। कवि यतीश कुमार की नजर से भला यह उपन्यास कैसे बचा रह सकता था। वे जबरदस्त पढ़ाकू हैं और यही बात उन्हें औरों से अलग खड़ा कर देती है। रचना से रू ब रू होते हुए यतीश 'बिटवीन द लाइंस' जाते हैं और कृति की ऐसी समीक्षा करते हैं कि पाठक का जी ललचा जाए रचना पढ़ने के लिए। एक पाठक के रूप में मेरे साथ भी कई बार ऐसा ही हुआ है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अलका सरावगी के ताजातरीन उपन्यास 'गाँधी और सरला देवी चौधरानी : बारह अध्याय' पर यतीश कुमार

नितेश व्यास की काव्यात्मक समीक्षा वग़रना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

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  जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। जहां संघर्ष नहीं, वहां जीवन नहीं। इस संघर्ष में जो खुद को श्रेष्ठतम साबित करता है, वही बच पाता है। यह बचना ही रचना है। यह बचना अस्तित्व का बचना है। यह हकीकत या सच्चाई से बचना नहीं है। बल्कि यह बचना खुद से एक मुठभेड़ है। इस सन्दर्भ में कवि श्रीकांत वर्मा की पंक्तियां याद आ रही हैं 'चाहता तो बच सकता था/ मगर कैसे बच सकता था/ जो बचेगा / कैसे रचेगा।' अभिनेता पीयूष मिश्रा ने सिने संसार में, आज जो अपनी पहचान बनाई है, वह संघर्ष के दम पर ही बनाई है। हाल ही में उनकी एक किताब आई है 'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा'। इस किताब की एक काव्यात्मक समीक्षा की है नितेश व्यास ने। अपनी इस काव्यात्मक समीक्षा में नितेश कई जगह मौलिक नजर आते हैं। रचना पर केन्द्रित होते हुए भी स्वतन्त्र अस्तित्व लिए हुए सघन बनावट वाली कविता नितेश रच डालते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नितेश व्यास की काव्यात्मक समीक्षा  'सन्ताप के भीतर काव्य-सरित्'। वग़रना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है? नितेश व्यास जीवन के पास अपना तराजू है हमारी औकात मापने का, हर मनुष्य के पास है