केतन यादव की कविताएं
केतन यादव |
परिचय
नाम : केतन यादव
निवास स्थान : गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
जन्म तिथि: 18 - 06 - 2002
शिक्षा : हिंदी से एम ए एवं नेट, वर्तमान में शोध के लिए तैयारी।
प्रकाशन : जानकीपुल, इंद्रधनुष, कृतिबहुमत, जनसंदेश टाइम्स, समकाल पत्रिका, हिंदुस्तान, अमर उजाला आदि।
तकनीक और प्रौद्योगिकी ने इस दुनिया को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। इस बदलाव की सबसे ज्यादा शिकार हुई है प्रकृति। प्रकृति यानी पर्यावरण के विनाश ने पृथिवी के अस्तित्व तक पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। यही नहीं इस बदलाव ने मनुष्य की प्रकृति, प्रवृत्ति और परिवेश को भी काफी हद तक प्रभावित किया है। हम अब कुछ कम मनुष्य रह गए हैं। परिवेश की बात करें तो हमारे घर से अब आंगन गायब होने लगे हैं। वह आंगन जो गौरैया की चहचहाहट से गुलजार रहता था, वह आंगन जहां तुलसीचौरा पर स्त्रियां घर परिवार की मंगलकामना के लिए प्रार्थना किया करती थीं, वह आंगन जहां बेटी बहनों के शादी ब्याह के मड़वे बनते थे, अब खुद अस्तित्वहीन हो गया है। युवा कवि केतन यादव की बारीक नजरें इन बदलावों से रू ब रू हैं। केतन की भाषा प्रवाहपूर्ण है। वे अपने अलग शिल्प से सहज ही ध्यान आकृष्ट करते हैं। उनका यह शिल्प अर्जित शिल्प है जिसे उन्होंने जीवन से प्राप्त किया है। अनुभव को शब्दबद्घ करने की हड़बड़ी नहीं, बल्कि एक धैर्य उनमें नजर आता है, जो कवियों की पांत में उन्हें अलग खड़ा करता है। पहली बार पर इस युवा कवि का स्वागत करते हुए हम इस संभावनाशील कवि के बेहतर रचनात्मक जीवन की कामना करते हैं। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं केतन यादव की कविताएं।
केतन यादव की कविताएं
वर्जित नगर
स्कूल के स्टोर रूम, खेत-खलिहान और नींद-सनी सड़कों किनारे
पसरी हुई हैं हमारे मिलने की जोखिम-भरी यादें
किसी के आने की भ्रमित आहट पर तुम
भीजें हुए हाथों में गड़ा दी थी नाखून, बीच में ही काट लिए थे होठ
और दबा दी थी अपने पैर से मेरे पैर की कानी उँगली
मुँहजब़ानी मन की स्मृतियों में ताजा थी
एक दूसरे के हाथों की नमी, साँसों की गति और पसीने की गंध।
बिन कहे जान लेते थे देख कर चेहरा
कि आज मिलने के लिए कितनी मुश्किलों को लाँघे हैं।
फूट कर रोए थे हम दोनों जब पहले पहल पता चला था
विवाह के प्रमाण पत्र की तालिका में सर्वोपरि हैं वर्ण, जाति, कुल, गोत्र के अकाट्य नियम कानून,
‘कटाई से पहले की धान-गेहूँ की बालियों जैसे
पक कर निखरा था हमारा कच्ची उमर का प्रेम।’
लँगड़ी कूदने वाले खेल की लकीरों को मिटाया गया -
पुराने खानदानी जूते से,
कई बार झकझोर के जगाया गया ताकि न देखें हम भोर का सपना
पर कहाँ थमता है;
तूफान भँवर में, नदी आवेग में, प्रेम विछोह की कोशिशों में।
साथ कसमें खाई हमनें उस बूढ़े पीपल तले
जिसकी भुजाओं में कई प्रेमी युगलों के फंदे लटके थे,
खाप पंचायत की बैठकी वाली जमीन की रेत उड़ाते चले पाँव से
मुट्ठी में भर कर निकले कई वर्जनाओं की राख,
‘गाँव में वसंत उगता था केवल प्रेम में बहकाने के लिए
जिससे आहत होती रहती थी कई पारंपरिक सुगंधें।’
चमरौटी के मनहूस खंडहर में चूमी थी हमनें एक दूसरे की नग्न देह
जहाँ एक कुजाति प्रेमी को पीट पीट कर मारा गया था,
उस दिन आख़िरी बार मिले थे हम जब-
लिफाफे में ले आयी थी तुम जलेबियाँ
जिसमें छपी थी किसी प्रेमिका की अधजली ब्लर तस्वीर
चाशनी में डर की खबर का नमक घुला हुआ था।
एक दिन हहा कर खून पीने लगी थी आग
पेट्रोल स्नान में जल रहे थे हमारे सपने
अपनी प्रतिबद्धताओं को स्वाहा कर रहे थे खुद आप
देह न फूंकी जाए इसलिए अपना प्रेम फूँक आए थे हम
डर नहीं था समाज से बस डर था एक दूसरे की देह का
बचा लिया हमने एक दूसरे की देह
मार कर आत्मा को
हम दोनों की आत्मा दफनाई मिल जाएगी उसी पीपल के तले
जहाँ फिर प्रेमी जोड़े बैठने लगे हैं आजकल।
आस्था
ईश्वर पर
अटूट आस्था रखने के लिए
हमें उन हिस्सों को
करना होगा खारिज
जिन हिस्सों में
वह सुन नहीं सकता।
दुःख प्रेम का पारितोषिक है
इस भीषण समय में
न किसी का कंधा खाली है
न किसी का दिल
दिमाग भी भरा हुआ है
किसिम-किसिम के फ्यूचर प्लान से
जिसमें नहीं खाली है कोई सीट
न किसी का समय खाली है
न किसी के कान
और न ही खाली है इनबॉक्स
एक समय के बाद
अदृश्य हो जाती है सारी डीपी
अजनबी हो जाती हैं
संवाद की सभी मित्र प्रोफाइलें
ब्लॉक हो जाती हैं उँगलियाँ
‘सुनने की क्षमता बहुत कम हुई है
हमारी सदी में’
सुनने के लिए इतने मशीन होने के बावजूद
कितनी व्यथित पुकारें अनुसनी रह जाती यहाँ ।
बहुत मासूम और कच्ची होती हैं
दुख की पहली भीगीं आँखें
दिखता है जब कोई
पहले प्रेम में टूटा हुआ
लगता है मुझे ‘कुछ सृजन होगा’
नम मिट्टी में अंकुर फूटते
गीले बादल से बारिश।
‘दुःख महसूसने वाला हृदय
दुनिया का सबसे पवित्रतम हृदय होता है’
दुख टटोलने वाली आँखें महानेत्र
दुख बाँटने वाला हृदय महाबुद्ध।
सुख अपने चरम में उन्माद होता है
दुःख अपने चरम में करुणा
सुख में बिसर जाता है अक्सर सबसे सगा
दुःख में पड़ोस की हर आह सुनाई देती है
‘दुखी आदमी समझता है संसार भर का दुःख’
जो दुःख रिसता है आत्मा की कलसी से
वह बूँद-बूँद भी जुटा लो
इस जल संग्रह से ही बचेगी मनुष्यता,
कोई तो समझेगा दुःख के क्षतिपूर्ति सिद्धांत को।
दुःख प्रेम का पारितोषिक है
प्रेम का दुख बढ़ाता है कलेजे में प्रेम
जो प्रेम में टूटते हैं
जोड़ लेते हैं वे दुनिया का तार-तार।
प्रेम विवाह
समूह ने निगल लिया व्यक्ति को
डकार भी नहीं आई,
दो अजनबियों के हाथ में हाथ दे कर कहा–
'प्रेम से रहो।'
एक प्रेमी ने प्रेमिका के पिता को
मनाने के लिए लगाये घर के सात सौ चक्कर
प्रेमिका उन्हें ही फेरे मानकर और विदा हो चली
पिता का मानना था ‘पूजहिं विप्र सकल गुणहीना'
अपनी डाली पर
सोनजुही और मोगरे की लाश लटकी देख कर
चंपा कलि ने स्थगित कर दिया भ्रूण,
पास में पासी जाति के लोगों ने
चमार जाति का बकरा हलाल कर दिया था।
प्रेमी तानाशाह ने बेंत के अट्ठारह कोड़े मार कर
चीख कर पूछा ‘हुआ प्रेम?'
जी साहब! हम बहुत प्यार करते हैं...
एक सुंदर लड़की नहीं बनी गर्लफ्रैंड
सौवाँ मैसेज नकारते ही आशिक ने चलाया कामबाण
प्रेमिका का चेहरा झुलस चुका था।
पुलिस के हंटर पर बोला वह
मैं उससे करता था बहुत प्यार
पास में टेबल पर रखा था अखबार
लिखा था प्रेमिका को बचाने के लिए प्रेमी डूब गया पानी में
तर-बतर हो गया था प्रेम।
× × × × × × × × × × × ×
मैं और तुम
क्या पर्याप्त नहीं हैं?
गौर से देखो पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा
साक्षी रहे जो हमारे प्यार के,
मेरे आस-पास रहा वसंत
मैंने जब-जब कहा
कि मैं तुमसे करता हूँ प्यार।
जीवन की आपाधापी में
मिला ही नहीं समय
कि तुम्हारे काँधे पर सिर टिकाए
चोर नजरों से झाँकूँ संसार।
निर्विकल्प रहा जो
(परिणति जिसकी रही आलिंगन भर)
देखते ही रह गये एक दूसरे को आजन्म
बिन-ब्याही आँखें भी
थीं कितनी प्रतिबद्ध; अपलक, निष्कम्प
नहीं दिया जा सका था जिसे विवाह का नाम
प्रेम की नज़रों में सबसे अधिक वैधानिक था वह।
हील स्टेशन का संगीत
उदासी और मुस्कान
एक साथ
अब ऐसा ही है
जैसे बारिश भी और धूप भी।
तुम्हारा बिखरे बालों से ढ़का धुँधलाता चेहरा
जैसे कोई पुराने फिल्म का प्रिय गीत
जिसे आधुनिक संगीत
चाहकर भी लील नहीं पाता कभी।
तुम्हारी याद
जैसे हील स्टेशन का संगीत
जिसे वहीं किसी खाई में
छोड़कर लौटना था वापस।
स्विच ऑफ
मेरी उँगलियाँ उस भीगे लकड़ी की तरह सिकुड़ी थीं
जिसे चुरा कर कहीं से ले आई थी चौराहे वाली बुढ़िया
मेरे बाल रोंगटे की तरह तने थे
जैसे देर रात कोई नौकर तना रहता है एक और आख़िरी काम को
मेरी त्वचा टाइट और जवान हो गयी थी
जैसे किसी गरीब की कड़कड़ाती ठंडी पड़ी सप्ताह भर की लाश
मैं महसूस कर रहा था सीलन
जैसे वह मजदूर कपकपा रहा था दीवार तरी करते हुए,
उस अँकड़े हुए दिहाड़ी वाले की तरह भरी शीतलहरी में
एक और कुदाल चलाने जैसी हिम्मत ले कर
करने ही वाला था तुम्हे मैसेज,
इससे पहले कि मैं ऑनलाइन आ कर तुम्हारे इंतजार को पुचकारता
तुमने कमरे के बाहर के तापमान, तापमान में तापहीन ठिठुरे लोगों
और लोगों में अगल अपने प्रेमी के लास्टसीन को अनसीन करते हुए
कर दिया अपना मोबाइल स्विच ऑफ।
गौरैया आती थी
दुछत्ती और तुलसीचौरा
कभी तुम्हारा स्थाई वास होता था
बालपन में सूप के जाल से
तुम्हें पकड़ कर रख लेना चाहता था मन
पर तुम छूट गयी किसी बाल-कथा में।
बोगनवेलिया और अपरिजिता की झाड़ियों में
लगे तुम्हारे घोसले वसंत के मंगल प्रतीक थे,
बंद खिड़की और कमरे अभिशप्त हैं
तुम्हारे आगमन को नन्ही चिरई।
बनते हुए शहर के अनगिन कोलाहल में
तुम्हारी आवाज़ खो गयी,
यह समूचा शहर कब्रगाह है
न जाने तुम्हारे कितने पूर्वजों का
बिजली की नंगी तारों के कारण
टीवी में डिस्कवरी चैनल पर
देख सकते तुम्हें
पर सामने नहीं,
यह विडंबना बनेगी किसी
गौरैया संरक्षण का गीत?
न जाने कितने फुदुक में तुमनें नापा था आँगन
और ओझल हो गयी फुदुक में,
न आज घर में आँगन बचा न तुम
कितना भयावह है यह कहना -
कि एक समय आँगन में गौरैया आती थी।
दूर बहुत दूर
आदमी चला जाता है
छोड़ कर खूँटी पर कमीज़
कमीज़ में छोड़ कर गंध
गंध में छोड़ कर अपनी साँस
आदमी चला जाता है
छोड़ कर कागज़ पर कविता
कविता में जीवन का गीत
गीत में आत्मा का छंद
चला जाता है आदमी इतनी दूर
कि दूरी धीरे-धीर
संज्ञा से विशेषण हो जाती
और पुन: धीरे-धीर
विशेषण से संज्ञा हो जाती
दूरी का अंदाजा शायद आदमी लगा पाता है
कमीज़ गंध साँस कागज कविता गीत छंद
सबसे दूर बहुत दूर
चला जाता है आदमी जब।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं)
सम्पर्क
मोबाइल : 8840450668
खूबसूरत कविताएं🥰
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे कहन में संवेदनाओं का सागर भरती कविताएँ!
जवाब देंहटाएंपहली दो कविताओं ने बहुत प्रभावित किया।
नरेश कुमार खजूरिया
बहुत सुन्दर कविताएँ. केतन की भावनात्मक गहराई ने इन कविताओं को और भी बेहतर बना दिया है.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत लेखन हैं ❣️❣️
जवाब देंहटाएंसुंदर कविताएँ। सहज सुर्ख भाव कल्पना लोक में हृदय को धड़कन दे रहे हैं।। तारतम्यता सुंदर है।।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।।