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दुर्गेंद्र अकारी पर केन्द्रित सुधीर सुमन का आलेख 'हम कुछ और बनेंगे'

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  जनकवि दुर्गेन्द्र अकारी Photo by Nicolas Jaoul रचनाकार केवल केवल शब्दों से ही वास्ता नहीं रखता बल्कि वह जनता के साथ रह कर उसके हकों हुकूक के लिए संघर्ष भी करता है। ऐसे अनेक रचनाकार रहे हैं जिन्होंने एक्टिविस्ट रचनाकार की भूमिका निभाई। नागार्जुन हों या महाश्वेता देवी इनकी जन प्रतिबद्धता जगजाहिर है। भोजपुरी के एक ऐसे ही कवि हुए हैं दुर्गेंद्र अकारी। अकारी जी पढ़े लिखे नहीं थे। वे खुद को 'एल एल पी पी' यानी 'लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर' कहा करते थे। आज यानी 5 नवम्बर का दिन अकारी जी का स्मृति दिवस है। उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं सुधीर सुमन का एक संस्मरणात्मक आलेख 'हम कुछ और बनेंगे'। हम कुछ और बनेंगे सुधीर सुमन पिछली गर्मियों में आरा पहुँचने पर मालूम हुआ कि जनकवि दुर्गेंद्र अकारी जी की तबीयत आजकल कुछ ठीक नहीं रह रही है। साथी सुनील से बात की, तो वे झट बोले कि उनके गांव चला जाए। उनकी बाइक से हम जून माह की बेहद तीखी धूप में अकारी जी के गांव पहुंचे। लोगों से पूछ कर झोपड़ीनुमा दलान में हम पहुंचे, जिसकी दीवारें मिट्टी की थीं और छप्पर बांस-पुआल और फूस से ...