विजय बहादुर सिंह का संस्मरणनात्मक आलेख 'सीदी मौला याद आते हैं नीलकांत में'

नीलकांत नीलकांत हमारे समय के ऐसे लेखक थे जो तमाम लोगों के लिए तमाम तरह की असुविधाएं पैदा करते थे। अपनी बेबाक बयानी के लिए प्रख्यात थे। इसीलिए तमाम लेखक उनसे बचने की कोशिश की। मार्कण्डेय जी अक्सर कहा करते थे जिस लेखक को हताहत करना हो उसकी किताब नीलकांत को थमा दो। लेखकीय तौर पर उन्हें सन्तुष्ट कर पाना कठिन था। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके लेखकीय सन्दर्भ और प्रतिमान व्यापक थे। कलम का इतिहास लेखन पर जो अंक उन्होंने लगभग तीन दशक पहले निकाले वे आज भी एक चुनौती की तरह हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि नीलकांत असुविधाजिवी लेखक थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के टॉपर होने के बावजूद उन्होंने एक लेखक और एक्टिविस्ट के तौर पर जीने का असुविधाजनक निर्णय लिया। जीवन के अन्तिम वर्षों में उन्हें तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। विजय बहादुर सिंह उनकी स्मृति को याद करते हुए उचित ही लिखते हैं 'नीलकांत भी भविष्य के एक समाज के सपने को देखते रहे हैं। एक ऐसा समाज जिसमें श्रमपरायण मनुष्यता अपने स्वाभिमान के साथ जीने का लोकतांत्रिक अधिकार पा सके। ...