राजेश जोशी की पुस्तकं 'किस्सा कोताह' की पल्लव द्वारा समीक्षा

राजेश जोशी जितने उम्दा कवि हैं उतने ही उम्दा गद्यकार. उनकी गपोड़ी की डायरी से तो आप सब परिचित ही होंगे. राजेश जी की ये सारी गप्पें (जो विशुद्ध गप्प भी नहीं है) अब एक किताब 'किस्सा कोताह' के रूप में आ गयी है, इस किताब की एक समीक्षा लिखी है युवा आलोचक पल्लव ने. तो आइए पढ़ते हैं यह समीक्षा. एक बनारस ही नहीं इस कायनात में उर्फ़ एक भोपाली का बर्रूकाट गद्य पल्लव अगर काशी का अस्सी, बना रहे बनारस और बहती गंगा जैसी किताबें न होतीं तो क्या हम बनारस को जान पाते? हम यानी वह पाठक समाज जो बनारस नहीं गया है, बनारस में नहीं रहता। कवि राजेश जोशी ने अभी एक किताब लिखी है - 'किस्सा कोताह', और यहाँ भोपाल जिस तरह किताब में आया है उसे देख.पढ़ कर आपको भोपाल में बसने का मन करने लगे ...हाय हम भोपाल में क्यों नहीं हुए। इसका मतलब यह है कि उस स्थान के बारे में लेखक ने जिस तरह लिखा है वह सचमुच अनूठा और मर्मस्पर्शी है। राजेश जोशी की यह किताब उनके बचपन से जवानी के बीच आये स्थानों पर लिखी गई है और यह न शहरनामा है न आत्मकथा। संस्मरण और रिपोर्ताज बिल्कुल भी नहीं। किताब के पहले ही पेज पर व...