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अरुणाकर पाण्डेय का ललित निबन्ध 'हमारा सौन्दर्य बोध'

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अरुणाकर पाण्डेय दो वर्ष हो गए उस वीभत्स घटना को घटे जिसने समूचे भारतीय जनमानस को हिला कर रख दिया था । उस घटना को हम ‘निर्भया काण्ड’ के नाम से जानते हैं। लेकिन अफ़सोस आज भी हम जहाँ के तहाँ खड़े हैं। राजधानी दिल्ली तक में स्त्रियाँ जब सुरक्षित नहीं हैं तो और जगह तो उनकी स्थिति की कल्पना कर के ही सिहरन होती है। इसी को केन्द्रित कर युवा कवि अरुणाकर पाण्डेय ने एक ललित निबन्ध लिखा है जिसे हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। सचमुच ऐसा लगता है कि कुल मिला कर मामला हमारे सौन्दर्य-बोध का ही है। जब तक हमारे इस मानस में परिवर्तन नहीं आता स्थितियों में बदलाव की बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती। तो आइए पढ़ते हैं अरुणाकर का ललित निबन्ध ' हमारा सौन्दर्य बोध' जिसमें आप काव्यात्मक प्रवाह सहज ही महसूस कर सकते हैं।            हमारा सौन्दर्य बोध अरुणाकर पाण्डेय निर्भया एक लगातार कुरूप होते समाज की पहचान है। यदि किसी समाज या सभ्यता के सौन्दर्य अथवा कुरूपता को जानना-समझना हो तो कैसे विचार किया जा सकता है। अगर वह समाज सौन्दर्य का अर्थ समझता है तो...

'व्योमकेश दरवेश' पर अरुणाकर पाण्डेय की समीक्षा 'हमन को होसियारी क्या!'

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हमारे समय के अनूठे और बेजोड़ लेखक-आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी को व्योमकेश दरवेश के लिए 'व्यास सम्मान' प्रदान किया गया है. आदरणीय विश्वनाथ जी को बधाई देते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं इस किताब की एक समीक्षा, जिसे हमारे अनुरोध पर लिखा है मित्र कवि अरुणाकर पाण्डेय ने.   एक लेखक की ताकत का  इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधाएँ भी भ्रम में पड़ जाएँ कि आखिर यह है क्या? विश्वनाथ त्रिपाठी हमारे समय के ऐसे ही विलक्षण लेखक हैं जिन्होंने अपनी कृति 'व्योमकेश  दरवेश' में यह कर दिखाया है. हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन को केन्द्र में रख कर लिखी गयी यह पुस्तक अपने आप में बेजोड़ बन पड़ी है.  तो आईये पढ़ते हैं इस पुस्तक पर लिखी गयी यह समीक्षा।       व्योमकेश दरवेश – हमन को होसियारी क्या! अरुणाकर पाण्डेय लगभग तीस वर्षों के अंतराल पर आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के जीवन और उनकी दृष्टियों पर केन्द्रित यह पुस्तक उनके अन्तरंग शिष्य और हिन्दी के प्रतिष्ठित अध्यापक और रचनाकार डॉ.विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा लिखी गयी है। इससे पहले नामवर जी की उन्ही पर केन्द्रित पुस्तक ...

अरुणाकर पाण्डेय की कविताएँ

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  जन्म : तीन नवम्बर उन्नीस सौ उन्यासी, बनारस शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से "हिन्दी की साप्ताहिक पत्रिकाओं में सांस्कृतिक-विमर्श (१९९० के बाद )" विषय पर पीएच.डी.            तथा वहीँ से "हिन्दी की कार्टून पत्रकारिता के राजनीतिक-सामाजिक सरोकार" विषय पर एम्.फिल. प्रकाशित रचनाएँ : 'वाक्','अनभै-साँचा','अपेक्षा','युद्धरत आम आदमी' तथा अन्य पत्रिकाओं में रचनाएँ-आलेख प्रकाशित                           तथा अन्य पत्रिकाओं और पुस्तकों में भी प्रकाशानाधीन                           प्रसाद साहित्य पर एक पुस्तक का सम्पादन शीघ्र प्रकाश्य                       ...