अरुणाकर पाण्डेय का ललित निबन्ध 'हमारा सौन्दर्य बोध'

अरुणाकर पाण्डेय दो वर्ष हो गए उस वीभत्स घटना को घटे जिसने समूचे भारतीय जनमानस को हिला कर रख दिया था । उस घटना को हम ‘निर्भया काण्ड’ के नाम से जानते हैं। लेकिन अफ़सोस आज भी हम जहाँ के तहाँ खड़े हैं। राजधानी दिल्ली तक में स्त्रियाँ जब सुरक्षित नहीं हैं तो और जगह तो उनकी स्थिति की कल्पना कर के ही सिहरन होती है। इसी को केन्द्रित कर युवा कवि अरुणाकर पाण्डेय ने एक ललित निबन्ध लिखा है जिसे हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। सचमुच ऐसा लगता है कि कुल मिला कर मामला हमारे सौन्दर्य-बोध का ही है। जब तक हमारे इस मानस में परिवर्तन नहीं आता स्थितियों में बदलाव की बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती। तो आइए पढ़ते हैं अरुणाकर का ललित निबन्ध ' हमारा सौन्दर्य बोध' जिसमें आप काव्यात्मक प्रवाह सहज ही महसूस कर सकते हैं। हमारा सौन्दर्य बोध अरुणाकर पाण्डेय निर्भया एक लगातार कुरूप होते समाज की पहचान है। यदि किसी समाज या सभ्यता के सौन्दर्य अथवा कुरूपता को जानना-समझना हो तो कैसे विचार किया जा सकता है। अगर वह समाज सौन्दर्य का अर्थ समझता है तो...