अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानी 'पुल पर बैठा बूढ़ा'

Ernest Hemingway इतिहास गवाह है कि युद्ध किसी भी समस्या का निदान नहीं निकाल सकते। युद्ध केवल बर्बादी का सबब बनते हैं। इसका दंश उस आम जनता को व्यापक तौर पर पर झेलना होता है जिसका युद्ध से कोई सरोकार ही नहीं होता। आमतौर पर सरकारें ही अपनी सुविधानुसार युद्ध का फैसला करती हैं। अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने युद्ध को नजदीक से देखा और जिया था। इसी क्रम में युद्ध के अपने सघन अनुभव को अपनी रचना में ढालते हुए उन्होंने 1929 ई० में केवल 30 वर्ष की उम्र में अपनी विख्यात औपन्यासिक कृति 'ए फेयरवेल टू आर्म्स' लिखी और प्रकाशित कराई, जिससे हेमिंग्वे को दुनिया भर में एक रचनाकार के रूप में ख्याति मिली। हेमिंग्वे का शुरुआती जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण था। संघर्ष के इन दिनों में आजीविका के लिए उन्हें मछुआरे का जीवन जीना पड़ा। अपने इस अनुभव का भी उन्होंने खूबसूरती से रचनात्मक उपयोग किया। और अपनी प्रख्यात कृति 'दि ओल्ड मैन एंड द सी' लिखी जो 1954 में प्रकाशित हुई। इसी रचना पर उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। हेमिंग्वे की इस रचना के नायक बूढ़े मछुआरे का जो संघर्ष है और इस ...