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सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'धनंजय वर्मा की मनो-भूमि और रचना-भूमि'

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  धनंजय वर्मा अपने अलग अंदाज़ के लिए ख्यात आलोचक प्रोफेसर धनंजय वर्मा का बीते 28 जनवरी 2024 को निधन हो गया। आज के समय में जबकि धुंध लगातार बढ़ती जा रही है, विचारों को हास्यास्पद बनाने की कोशिशें हो रही हैं, धनंजय जी अपने बातों और विचारों पर अडिग रहे। निर्भीकता और कर्मठता जैसे उनके स्वभाव में थी। सेवाराम त्रिपाठी के शब्दों में कहें तो 'धनंजय वर्मा का सम्बन्ध  मार्क्सवाद की उस धारा से है जो सीधे संकीर्णताओं अंधविश्वासो, रूढ़ियों, विकृतियों, विरूपताओं से लगातार टकराती है। उनका विरोध रूढ़ और जड़ मार्क्सवाद से भी अक्सर हुआ करता था। दक्षिणपंथी सोच की उन्होंने हमेशा बखिया उधेड़ी है। उनका लेखकीय तेज़ अपने आप में आलोकित होता है।उनकी लिखावट साफ़ सुथरी होती थी। एकदम तराशी हुई सी। विचार और शैली का ऐसा मेल कम ही दिखाई देता है। उनका अक्खड़ स्वभाव जाहिर है।' पहली बार की तरफ से धनंजय वर्मा को हार्दिक श्रद्धांजलि और सादर नमन। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'धनंजय वर्मा की मनो-भूमि और रचना-भूमि'। 'धनंजय वर्मा की मनो-भूमि और रचना-भूमि' सेवाराम त्रिपाठी  ...