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प्रेम कुमार मणि का आलेख 'जवाहर और जेपी'

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  कुछ व्यक्तियों के बारे में हमारे समाज में ऐसी अफवाहें गढ़ दी जाती हैं जो उनके चरित्र के साथ चस्पा हो जाता है। जवाहर लाल नेहरू का व्यक्तित्व ऐसा ही था। गांधी जी के बाद सम्भवतः नेहरू जी ही ऐसे नेता थे जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। उनके बारे में उनके विरोधियों ने यह अफवाह यह गढ़ दी कि उनके कपड़े धुलने के लिए पेरिस जाते हैं। स्वयं नेहरू जी इस अफवाह से परिचित थे और उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा भी है कि असहयोग आन्दोलन के दौरान पिता द्वारा वकालत छोड़ दिए जाने के बाद उनका परिवार आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा था। ऐसे में कपड़ा धुलने के लिए पेरिस भेजने की बात हास्यास्पद ही नहीं बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है। प्रेम कुमार मणि ने अपने एक आलेख 'जवाहर और जेपी' में लिखा है 'उन दिनों कांग्रेस मुख्यालय वहीं होता था, जहाँ अध्यक्ष होता था। इस नाते यह इलाहाबाद में था। जेपी ने अपना ठिकाना इलाहाबाद में बनाया। उन्होंने साठ रुपये प्रतिमाह किराये का एक मकान लिया। 16 रुपये के किराये पर फर्नीचर। एक  रोज जवाहर लाल उनके डेरे पर आये। ताम-झाम देख कर पूछा - 'ये फर्नीचर कहाँ से लाये?' फिर प्यार भरे...

सूरज पालीवाल का आलेख 'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'

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जवाहर लाल नेहरू केवल भारत के पहले प्रधान मंत्री ही नहीं थे बल्कि उनके अन्दर एक साहित्यकार इतिहासकार का हृदय भी था। राजनीति उनका पैतृक व्यवसाय नहीं था बल्कि इसे उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा और जाना था। भारत की बहुवर्णी संस्कृति और परम्परा को देखते हुए उन्होंने तय किया कि आजादी के बाद का भारत धर्मनिरपेक्ष भारत होगा। बंटवारा होने के पश्चात धर्म की राह पर चलना उनके लिए सुविधाजनक था। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलने का उनका यह निर्णय आसान नहीं बल्कि आग के दरिया पर चलने जैसा था। सूरज पालीवाल ने सही लिखा है कि धर्मनिरपेक्षता को कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। आज जब भारत का सत्ताधारी दल धर्म की राह पर चल पड़ा है और पानी पी पी कर जवाहर लाल को कोसा जा रहा है ऐसे में तब के मुश्किल दौर में उनका यह निर्णय कम साहसिक नहीं था। आज जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं सूरज पालीवाल का आलेख  'नेहरू जी राजनीति में संत, कवि और दृष्टा थे'। यह आलेख उदभावना के हाल में ही प्रकाशित नेहरू विशेषांक से साभार लिया गया है। 'नेहरू जी राजनीति म...

पीयूष बबेले की पुस्तक ‘नेहरू : मिथक और सत्य’ की प्रकर्ष मालवीय ‘विपुल’ द्वारा की गयी समीक्षा

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  ‘ नेहरू : मिथक और सत्य ’ एक समीक्षा प्रकर्ष मालवीय ‘ विपुल ’ आज राष्ट्र अपने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की ५६वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है. लेकिन तभी प्रश्न यह भी खड़ा हो जाता है कि राष्ट्र उन्हें क्यों याद करे ? क्या सिर्फ़ इसलिए कि वे हमारे प्रथम प्रधानमंत्री थे ? हालाँकि यह भी पर्याप्त महत्वपूर्ण कारण है उन्हें याद करने का. लेकिन तब यह सिर्फ़ रस्म अदायगी भर हो कर रह जाएगी और जैसी कि आजकल हमारे यहाँ परंपरा हो गई है कि नायकों के जयंती या पुण्यतिथि पर प्रशासन भारी भरकम तामझाम में इतना मशरूफ हो जाता है कि किसी नायक को याद करने की मूल वजह नेपथ्य में चली जाती है और उक्त समारोह आज के समय के अमुक विशिष्ट जन (सत्ताधीश वर्ग) का सम्मान समारोह अधिक प्रतीत होने लगता है.   या हम उन्हें इसलिए याद करें कि उन्हें याद करना एक सच्चे देशभक्त को याद करना है , जिसने इस देश के लोगों , सम्पदा और संस्कृति से बेइम्तिहाँ मोहब्बत की , जिसके मन में इस देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने की बेचैनी थी और जिसके लिए हो रहे स्...