विजय प्रताप सिंह की कविताएँ एवम बलभद्र की टिप्पणी
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विजय प्रताप सिंह अरसा पहले हमने 'वाचन-पुनर्वासन' नाम से एक श्रृंखला का आरंभ किया था इस श्रृंखला में एक कवि की कविताओं पर दूसरा कवि अपनी टिप्पणी लिखता था। बीच में कुछ व्यवधान की वजह से हम इस श्रृंखला को निरंतर जारी नहीं रख पाए अब एक बार फिर से हम वाचन पुनर्वासन श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं। हाल ही में विजय प्रताप को 'बेकल उत्साही सम्मान' प्रदान किया गया है। विजय की बधाई देते हुए 'वाचन-पुनर्वाचन' श्रृंखला में आज विजय प्रताप सिंह की कविताओं पर प्रस्तुत है बलभद्र की टिप्पणी। विजय प्रताप सिंह की कविताएँ एवम बलभद्र की टिप्पणी कामगार दरबार -ए-ख़ास में कभी शामिल नहीं रहे तुम चर्चा नहीं रही कभी तुम्हारी दरबार - ए आम में भी ख़तरे का वक़्त है ये मुल्क पर अभी अभी डर है आदमी को आदमी से अभी डर है हवाओं से भी तुम अपने डर अपने दुख अपने पास रखो फ़िलहाल तुम अपने बच्चे अपना सामान अपना आंसू अपने पास रखो ज़रुरत के नियम के मुताबिक़ अभी कोई ज़रुरत नहीं तुम्हारी प्रशासन अभी मुस्तैद है आसन्न ख़तरे के समक्ष अपनी पूरी संवेदना के साथ उसकी संवेदना में खलल ना डालो जा सकते हो तुम तुम