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विजय प्रताप सिंह की कविताएँ एवम बलभद्र की टिप्पणी

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विजय प्रताप सिंह अरसा पहले हमने 'वाचन-पुनर्वासन' नाम से एक श्रृंखला का आरंभ किया था इस श्रृंखला में एक कवि की कविताओं पर दूसरा कवि अपनी टिप्पणी लिखता था। बीच में कुछ व्यवधान की वजह से हम इस श्रृंखला को निरंतर जारी नहीं रख पाए अब एक बार फिर से हम वाचन पुनर्वासन श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं। हाल ही में विजय प्रताप को 'बेकल उत्साही सम्मान' प्रदान किया गया है। विजय की बधाई देते हुए 'वाचन-पुनर्वाचन' श्रृंखला में आज विजय प्रताप सिंह की कविताओं पर प्रस्तुत है बलभद्र की टिप्पणी। विजय प्रताप सिंह की कविताएँ एवम बलभद्र की टिप्पणी कामगार दरबार -ए-ख़ास में  कभी शामिल नहीं रहे तुम चर्चा नहीं रही कभी  तुम्हारी दरबार - ए आम में भी ख़तरे का वक़्त है ये  मुल्क पर अभी अभी डर है आदमी को आदमी से अभी डर है  हवाओं से भी तुम अपने डर  अपने दुख अपने पास रखो फ़िलहाल तुम अपने बच्चे अपना सामान अपना आंसू अपने पास रखो ज़रुरत के नियम के  मुताबिक़ अभी कोई ज़रुरत नहीं तुम्हारी प्रशासन अभी मुस्तैद है आसन्न ख़तरे के समक्ष अपनी पूरी संवेदना के साथ उसकी संवेदना में  खलल ना डालो जा सकते हो तुम तुम

पाब्लो नेरुदा की छह कविताएँ

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पाब्लो नेरुदा का जन्म दक्षिण अमरीकी देश चिली के एक छोटे से कस्बे पराल में 12 जुलाई 1904 को हुआ था। नेरुदा  का मूल नाम नेफ्ताली रिकार्दो रेइस बासोल्ता था। ।नेरुदा का  पहला काव्य संग्रह 'ट्वेंटी लव पोयम्स एंड ए साँग ऑफ़ डिस्पेयर' बीस साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था।  उनकी कविताओं में राजनीतिक चेतना के साथ साथ उदात्त प्रेम उनके कवित्व को उस समग्र मानवीय चेतना से भर देता है, जो मनुष्यता का हमेशा पक्षधर रहा है। नेरुदा की कविताओं में लोक का स्वर है। लोक का सुख दुःख और लोक की अनुभूतियाँ हैं। इसी बिना पर उन्हें लोकधर्मी कवि माना जाता है। नेरुदा सिर्फ कवि ही नहीं थे, बल्कि वे एक्टिविस्ट भी थे। इसीलिए अपने देश के तानाशाहों के खिलाफ आवाज उठाने में वे कभी हिचके नहीं।  'माच्चु पिच्चु के शिखर' और 'कैंटो जनरल' जैसी रचनाओं ने नेरुदा को विश्व स्तरीय ख्याति दिलाई। नेरुदा ने अपनी रचनाओं से कई पीढ़ियों के कवियों को प्रभावित किया। चिली के साम्यवादी शासक  अलेंदे ने नेरुदा को सन 1971 में  फ्रांस  में चिली का राजदूत  नियुक्त कर दिया। इसी वर्ष उन्हें साहि

जितेंद्र श्रीवास्तव से चैनसिंह मीना की बातचीत

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  जितेंद्र श्रीवास्तव       हिंदी कविता : कल और आज- प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव     परिचय : प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव कविता संग्रह: ‘ इन दिनों हालचाल ’, ‘ अनभै कथा ’, ‘ असुंदर सुंदर ’, ‘ बिल्कुल तुम्हारी तरह ’, ‘ कायांतरण ’, ‘ कवि ने कहा ’, ‘ बेटियाँ ’, ‘ उजास ’, ‘ सूरज को अँगूठा ’ । आपकी कविताएँ विविध भाषाओं यथा अंग्रेजी , उर्दू , मराठी , उड़िया और पंजाबी में अनुदित हैं। आलोचनात्मक पुस्तकें: ‘ शब्दों में समय ’, ‘ आलोचना का मानुष-मर्म ’, ‘ भारतीय समाज , राष्ट्रवाद और प्रेमचंद ’, ‘ सर्जक का स्वप्न ’, ‘ विचार धारा , नए विमर्श और समकालीन कविता ’, ‘ उपन्यास की परिधि ’ ‘ रचना का जीवदृव्य ', ‘ कहानी का क्षितिज ’ आदि।    आप अभी तक भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार , देवीशंकर अवस्थी सम्मान , कृति सम्मान , रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार , विजयदेव नारायण साही पुरस्कार , डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान , परंपरा ऋतुराज सम्मान , भारतीय भाषा परिषद कोलकाता का युवा सम्मान आदि पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं।   प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव वर्तमान में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्