लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविताएँ
लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता |
दुनिया में कुछ भी यूं ही नहीं निर्मित होता। किसी भी निर्मिति के पीछे कई एक लोगों, कई एक तत्त्वों, कई एक परिस्थितियों का हाथ होता है। हालांकि ये सहभागिताएँ सामान्य तौर पर दृश्य नहीं होतीं। इन्हें देखने महसूसने के लिए अंतर्दृष्टि होनी चाहिए। यह कहने की बात नहीं कि रचनाकार या कवि संवेदनशील होता है। वह महसूस करता है कि उसकी निर्मितियाँ कई एक रेशों से निर्मित हुई हैं। परिजनों और दोस्तों का ही नहीं उन दुश्मनों का भी निर्मिति में बड़ा हाथ होता है जिन्हें हम आम तौर पर देखना तक महसूस नहीं करते। पशु, पक्षी, पेड़ पौधे, फल फूल ही नहीं अहसास कराने वाले हर व्यक्ति, काम करने वाले हर हाथ के अंश का योगदान होता है हमारे होने में। लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविताएँ हमारे समय का साक्षात्कार हैं। हमारे समय के व्यक्तित्व और परिस्थितियों का यथारूप चित्रांकन हैं। हमारे जमाने की विद्रूपताओं का दस्तावेज हैं। शोर शराबे से दूर लक्ष्मण चुपचाप अपनी उस रचनाधर्मिता में लगे हुए हैं जो है जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविताएँ।
लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविताएँ
नई सदी का मनुष्य
बहुत-सी तारीख़ें
बिसर गईं हमारी स्मृतियों से
बहुत-सी घटनाओं के चित्र
नहीं नाचते आँखों के आगे
बहुत-सी चीखें
हम तक पहुँचीं और अनसुनी हो गईं
जो हूक कभी सीने में उठी थी
उसे भी हमने दबा दी
अपनी ज़रूरतों के भार तले
हम ऐसा ही करते हुए
साबूत मनुष्य बने रहने की
किसी अमिट चिह्न की तरह बचे रहने की
अटूट आकांक्षाओं से घिरे रहे
हमने रेत पर खेलते बच्चों के
घरौंदें को बनते-बिगड़ते देखा
उसकी रचनात्मकता में नहीं ढूँढ़ी
किसी बेहतर दुनिया की सूरतें
अपनी समझदारी और ढर्रेपन पर
इतराते हुए
बहुत ठोस बुनियाद पर खड़ी की
पाँच पूसतों वाली इमारत
जिसमें नहीं छोड़ी एक खिड़की भर की जगह
जहाँ से आ सके खुली हवा
जहाँ से दिखाई पड़े
संसार का दुःख
हम गौतम की तरह
निकल भी नहीं पाए
किसी दुःख की तलाश में
किसी दुःख की चिंता में
हम पत्थरों की दीवारों के बीच
अनवरत होते रहे पत्थर
नई सदी के मनुष्य हैं हम
जिसने हमेशा ही ख़ुद को पिछली सदी से
मुकम्मल और बेहतर कहने में
कोई कसर नहीं छोड़ी
जबकि हम भूलते रहे
कि भविष्य पत्थरों में भी
उन्हीं को बचाता है,
जिन पर नहीं होती कोई नक़्क़ाशी!
हत्या
हमारे जन्म के समय
आदमी की हत्या
पहले होती थी
फिर हत्या से जुड़े तथ्यों की हत्या
जिसे बचाने में
अख़बारनवीस हो जाते थे
हत्या के शिकार
संवाददाताओं की कलमें ही नहीं टूटती थीं
हड्डियाँ भी टूट जाती थीं
वाद के पन्नों तक
नहीं पहुंच पाता था संवाद
इस तरह हत्यारा
बेगुनाह निकलता था
भरी अदालत से
मूछों पर ताव देता हुआ
अगली हत्या के लिए!
हमारे समय में
आदमी की हत्या से
पहले ही हो जाती है
तथ्यों की हत्या
जिसमें शामिल होते हैं
कार्पोरेट घरानों के
हाई सेंसेक्स वाली टी आर पी थामे
चमकदार न्यूज चैनल
अब संवाददाताओं की माइकें
वही सुनती हैं
जो तथ्य को पलट सके
वाद को बेबुनियाद कर सके
संवाददाताओं को पता है
इस समय सत्य को बचाने से ज़्यादा ज़रूरी है
नौकरी को बचाये रखना
इस तरह हत्यारा साबूत बच निकलता है
अदालत की सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले ही!
हत्या
हमारे जन्म के समय भी होती थी
हत्या
हमारे समय में भी होती है
दोनों में एक ही बात
बिल्कुल मिलती-जुलती है
हत्यारा
दोनों ही स्थितियों में
बच निकलता है
अगली हत्या के लिए!
जीवन और मृत्यु
जीवन कितना हल्का होता है
किसी आदमी को
अंक में भर कर देखो,
देखो उल्लास में उठा कर;
मृत्यु कितनी भारी होती है,
महसूस करो
किसी को देते हुए कंधा,
रखते हुए चिता पर
ख़ामोश हुई देह!
हर किसी का इतना तो योग है मुझमें
यह जो देह है
जो कि अब तक आबाद है
कितना मेरा है
शत-प्रतिशत का कौन-सा हिस्सा स्वीकार करूँ
बहुत मुश्किल होगी तय करने में
एक प्रतिशत भी बच पाऊंगा
इसमें संदेह है
जिसने मुझे जन्मा
वह अपना हिस्सा मांगेगा
जिसने चिकुटी काट कर चेतना बख्शी
उसे भी तो कुछ देना ही पड़ेगा
कतरन से बनाये गये जिस सुग्गे ने मनमोहा
उस सुग्गे के निर्माता का भी हिस्सा रखना होगा
उन मिट्टी और लकड़ियों के खिलौने
कम सच्चे थोड़े थे उन दिनों
कुछ उनके मालिकों को भी देना चाहिए
उस हर गोद, हर दुलार, हर चुम्बन का हिस्सा भी तय करूँ
जिसने अपने जिगर के टुकड़े-सा प्यार बरसाया
मुझे सलामत रखने के लिए
जहाँ-जहाँ, जिसके-जिसके पास दौड़ी थी
मुझे ले कर मेरी दादी
जिसके बाद मैं हमेशा ही कुछ हरा हो उठा था
कुछ तो हो उन गुमनाम फ़रिश्तों का भी हिस्सा
उस बगीचे के हर उस पेड़ का हिस्सा तय हो
जिसने अपनी ऊँची डाली पर बैठा कर
पहली बार यह बताया
कि ऊंचाई पर होना बहुत अच्छी बात नहीं
गिरने का डर बराबर बना रहता है
जिसने बताया कि चढ़ने से कहीं मुश्किल है उतरना
चढ़ो तो याद रखो कि लौटना होगा ज़मीन की ओर
और साथ ही उस बगीचे के मालिक खान साहब का भी हिस्सा अलग करूँ
जिसने पके फलों पर चलते ढेलों को देख कर भी
कभी गालियां नहीं दीं
नहीं तोड़े किसी के हाथ पैर
उन पक्षियों के लिए भी कुछ तय करूँ
जिनका नकलची रहा मैं
आवाज़ और उड़ान दोनों में
जिसने, मुझे इंसान बनाये रखने में
सबसे ज़्यादा योग दिया
उस उस्ताद के लिए कितना हिस्सा तय करूँ
यह मुश्किल भी सामने है
मैं जिस गाँव में पला-बढ़ा
वो जितना हिन्दुओं का है, उतना ही मुसलमानों का भी
मैंने सालों रहमतुल्ला खां के सीले कपड़ों से
अपने बदन को ढका
अमज़द अली की मिल से
पैसा न होते हुए भी
पिसा लाया गेहूँ
कूटा लाया धान
बगैर उनका हिस्सा तय किये
मैं अपने होने की गवाही कैसा दे सकता हूँ
जब किसी बीमारी या ज़रूरत पे
जब भी किसी संपन्न द्वार पे गये दादा
किसी ने सूद ले कर तो किसी ने
बगैर सूद के भी उस बुरे वक़्त में साथ दिया
जब मैंने दाखिला लिया
देश के बड़े विश्वविद्यालय में
कई लोगों ने मदद के हाथ बढ़ाये
किसी ने उतना ही लिया, जितना दिया था
किसी ने कभी लिया ही नहीं
यह कहते हुए कि तुमने गाँव-जवार का नाम किया है
इन सबों के हिस्से भी तय करूँ और देखूँ
कुछ बचा भी है या नहीं
जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया
जिन्होंने बताया कि घृणा क्या होती है
जिन्होंने किसी भी तरह से मेरा नाम लिया
मुझे गिराया तब भी
उठाया तब भी
मेरा विस्तार ही किया
मुझे भीरु बनाने के बजाय साहसी बनाया
उनके लिए भी कुछ तय करना होगा
यह जो देह है
इसे बनाने में
सात राज्यों की मिट्टी और संसाधन का योग है
योग है कई-कई भाषाओं का
हज़ार-हज़ार लोगों का
लाख-लाख वनस्पतियों का
करोड़ों-करोड़ दानों का
अनगिन श्रमशील भुजाओं का
मैं कहाँ से लाऊंगा ऐसी देह
जिसमें सबके लिए कुछ न कुछ हो
दे सकूँ सबको कुछ न कुछ
आज, जो भी मैं लौटा पा रहा हूँ
वह भी लौटाना कहाँ है
उसमें भी पाना ही है
जिन्हें, मैं पढ़ाता हूँ
या कहूँ कि जिनके साथ पढ़ता हूँ
जो मेरे साथ जीते हैं,
जिनके साथ मैं जीता हूँ
जितना देता हूँ, उससे बढ़ कर पाता हूँ
वो सब बचा लेते हैं मुझे भोथरा होने से
उन सबकी बदौलत मेरी चमक है
मैं, बहुत कम जानता हूँ
उनके घर-बार के बारे में
उनके सुख के बारे में
जाति और रंग से नहीं, मैं उन्हें
उनके दुःख और परेशानियों से जानता हूँ
और आगे भी जानना चाहूँगा
ताकि तय कर सकूँ इनका भी हिस्सा
श्रम करते हुए इसी जनम में!
मेरे समय में
मेरे समय में
जब तापमान के बढ़ने भर से
जल रहा हो सारा का सारा जंगल
जल रहे हो अभी अभी जन्मे छौने
मेरे समय में
जब तापमान के घटने भर से
पत्थर हो जाती हों नदियाँ
ज़मीन बन जाती हो कब्र
मेरे आसपास के लोग
नागरिक बने रहने का ख़्वाब देखते हैं
मेरे द्वारा चुनी गई सरकार
अपनी उदारता का डंका पीट रही होती है
एक रंग जिसे देखा है सदियों से
मेरे पुरखों की आँखों ने
जिसकी अंतिम निशानी
मैं अपने साथ लिए जाऊँगा मिट्टी में
पिछली रात मिटा दी गई
और रोते रहे चौराहे पर कुत्ते
मेरे पड़ोस के एक तरफ़
बहती है गंगा
जबकि दूसरी तरफ़
बहती है यमुना
मेरी बेटी कहती है
'इस ओर के घर
उस ओर के घर से
बिल्कुल मिलते-जुलते हैं
हम थहाते हुए पानी के बीच से
करेंगे आवाजाही
हम पुल के सहारे नहीं
एक-दूसरे तक पहुँचेंगे
अपने-अपने पाँवों के सहारे
रेत और नमी को महसूसते हुए'
यह सब सुनते हुए मैं जैसे नींद में हूँ
जब आँखें खुलेंगी
सामने वही लंबा पुल दिखाई देगा
मेरे जन्म के ठीक बाद
बटवारे की दीवार ने
चलाई थी कुल्हाड़ी एक फलदार वृक्ष पर
कि जिसके बाद हर मौसम में
बिलखते रहे बच्चे
और उदास होती रही दोपहरी
मेरे होश सँभालते ही
आरी से रेत दिया गया था
पड़ोस का पीपल
कि जिसके बाद हमने सुग्गे को
हमेशा पिंजरे में ही देखा
बाकी बचे पक्षी किधर गये
आज तक नहीं जान पाया
मुझे हमेशा लगता रहा
कि किसी रोज़ सूरज उगेगा
मेरा समय में
जब कि मैं दिन भर सोया था
यह सूरज के उगने का नहीं
डूबने का समय था
मेरे समय में !
गवाही देने आयेगा डूबा हुआ सूरज
जो कुछ भी हो रहा है
वह बिला जायेगा
हमारी आँखों से
यहाँ तक कि हमारे कैमरों से भी
बहुत ख़ामोश हो जायेंगी
मासूमों की चींखें
हृदय की तलहटी में
हम हर साँस के साथ अटा लेंगे
दिल में कुछ और ही
छोड़ते हुए हर ज़रूरी साँस
रात की बेचैनी को महसूस सकने के वास्ते
नहीं छोड़ेंगे कमरों में एक भी खुली खिड़की
और रौशनदान तो बंद कर दिये थे हमने
पिछली ही सदी में अपने घरों के
हम खर्राटों भरी नींद से जागेंगे
नहीं, नहीं, उठेंगे
चेतना का गला रेतते हुए
जी, हुज़ूरी में निकल जायेंगे
लौटते हुए अपनी देह पर
लादे हुए अपनी ही लाश
जीवित होने का झूठा प्रमाण-पत्र बाटेंगे
हम से मिलने वाले भी
हम से बतियाने वाले भी
बहुत कुछ ऐसा ही कर रहे होंगे
हम एक-दूसरे की विवशता को समझेंगे
दबी हुई हँसी से करेंगे स्वागत
ताकि बरक़रार रहे अपनापा
हम निर्मम होते हुए भी
अति सहृदय होने का स्वांग रचेंगे
शायद, स्वांग नहीं - जीवन कहूँ
जीने को अभिशप्त होंगे
हर दिन घट रही घटनाओं का
हम नहीं रख पायेंगे कोई हिसाब
त्रासदियों का तो बिल्कुल भी नहीं
भले ही वे हम पर ही क्यों न घटी हों
दुनिया के इस निर्मम सत्य का
किससे माँगेंगे सबूत
कोई नहीं देगा
सभी घरों में सुरक्षित होंगे
जब ईमान की अदालत में शुरू होगी कार्यवाही
कोई नहीं आयेगा
सभी देख रहे होंगे सपने
फिर भी तुम निराश न होना
मेरे बच्चो
कठघरे में गवाही देने
आयेगा डूबा हुआ सूरज
उसी रंग में
जिस रंग में डूबा था
मासूमों के ख़ून के छींटों से
लहुलूहान हो कर!
वह तोड़ना जानती है
जब भी घर में
कहीं कुछ भी टूटने की
आती है आवाज़
हम समझ जाते हैं
इसमें शामिल होगी वह
वह जो मेरी नन्हीं बेटी है
छन-सी आवाज़ के साथ ही आती है
उसकी मुस्कुराहट
जो उसके डर से
कहीं ज़्यादा चमकदार होती है
हमारे डाँटने से बेफिक्र वह
हमें यूँ देखती है-जैसे कह रही हो
'आपकी बनी-बनाई यह दुनिया
जो कि बहुत बेढब है
मुझे हुबहू क़बूल नहीं
इसी तरह तोड़ते-तोड़ते
एक दिन मैं तोड़ दूँगी
दुनिया की सारी उठी हुईं दीवारें'
तोड़ना इतना सकारात्मक है
उस नन्हीं-सी लड़की के साथ रहते हुए
मैंने पहली बार जाना है !
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं.)
संपर्क-
पता-
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उ. प्र.
मो - 6306659027
ई-मेल-lakshman.ahasas@gmail.com
सुन्दर अभिअव्यक्तियां।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बड़े भैया बधाई हो
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसंतोष चतुर्वेदी जी ने बिल्कुल सही शब्दों में कवि परिचय दिया ― निश्चय ही कवि लक्ष्मण भैया की कविताएँ हमारे समय के व्यक्तित्व और परिस्थितियों का यथारूप चित्रांकन हैं। हमारे चारो तरफ के दृश्यों को जिस तरह से चबा कर लिखते हैं और अपनी कविताओं व गजलों की शक्ल में उन्हें जीवंत रखते हैं और हमे उनमें खींचकर यथार्थ से अवगत कराते हैं, वह अद्भुत है। बेहतरीन कविताएँ। बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविताएँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गुरुजी
जवाब देंहटाएंसर आपकी कविताएं मुझे बहुत अच्छी लगी आप का विद्यार्थी 🙏👍👍
जवाब देंहटाएंआपकी कविताएँ जीवन और समाज के विभिन्न पक्षों को बड़ी ही सलीके से उद्घाटित करती हैं.. एक तरफ उनमें समाजिक संघर्ष की अनुगूँज होती है, तो दूसरी तरफ प्यार- मुहब्बत की पींगे भी, कहीं प्रकृति के विभिन्न जीवों से घनिष्टता को बचाये रखने का आग्रह है तो कहीं नयेपन को सृजने का ललक भी! बहरहाल शानदार कविताएँ... कवि को हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएं🙏🙏
जवाब देंहटाएं