पंकज चौधरी की कविताएं
पंकज चौधरी |
जाति व्यवस्था भारतीय हिन्दू समाज की ऐसी देन है जिसने इस समाज का प्रायः अहित ही किया है। आजादी मिलने के बाद एक उम्मीद यह थी कि जाति प्रथा की जकड़न कम होगी या टूटेगी और एक समतामूलक समाज की स्थापना होगी जिसमें सभी लोग बराबरी की भावना के साथ अपना जीवन बिता सकेंगे। अफसोस हमारा लोकतंत्र ऐसा कर पाने में पूरी तरह विफल रहा और जातीय मानसिकता दिन ब दिन और फैलती ही गयी। हम अपनी अपनी अपनी जातियों की खोल में सिमटते जाने के लिए अभिशप्त हैं। कवि पंकज चौधरी ने अपनी कविताओं के जरिए इस तल्ख सच्चाई की परतें उभारने का सफल प्रयत्न किया है। पंकज ने इसी क्रम में उस सम्पूर्ण क्रान्ति की भी खबर ली है जो पिछड़े एवं निर्बल वर्गों को जीवन की सही राहों पर चलना सिखाने का दावा करती है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है पंकज चौधरी की कुछ नयी कविताएँ।
पंकज चौधरी की कविताएं
परचम बन रहीं जातियां
सन ऑफ मल्लाह
सन ऑफ कुम्हार
सन ऑफ कहार
सन ऑफ धानुक
सन ऑफ लुहार
सन ऑफ बिंद
सन ऑफ नोनिया
सन ऑफ बढई
सन ऑफ तांती
सन ऑफ रौनियार
सन ऑफ केवट
……………………..
सन ऑफ चमार
सन ऑफ दुसाध
सन ऑफ खटिक
सन ऑफ भंगी
सन ऑफ डोम
सन ऑफ हलखोर
सन ऑफ रजक
सन ऑफ पासी
सन ऑफ मुसहर
………………………..
सन ऑफ मुंडा
सन ऑफ किस्कू
सन ऑफ सोरेन
सन ऑफ भूरिया
सन ऑफ गोंड
सन ऑफ अलवा
सन ऑफ सोनवणे
सन ऑफ नेताम
सन ऑफ खाखा
………………………
इक्क्सवीं सदी की
शायद ये सबसे बड़ी गर्वोक्तियां हैं
सबसे बड़ी उदघोषणाएं
सबसे बड़ी हूंकार
सबसे बड़ी ललकार।
सबसे बड़ी जागरुकता।
जमाना कितना बदल रहा है
कल तक जो जातियां मुंह छिपाए फिरती थीं
आज वही परचम के रूप में लहरा रही हैं।
श्रद्धांजलि
ऋषियों, मुनियों, साधु, संतों
की परिभाषा है कि वे
इतने अहिंसक होते हैं कि
बाहर तो बाहर
अंदर के भी जीवाणुओं की चिंता करते हैं
वे इतने आत्महंता होते हैं कि
बिच्छुओं के डंक की भी परवाह नहीं करते
वे इतने दयालु और दयावान होते हैं कि
अपने हत्यारों को भी माफ कर देते हैं
और अपने कर्म, वचन और मन से भी
किसी का दिल नहीं दुखाते
लेकिन भारत में आदमी तो आदमी
मुनियों, ऋषियों, संतों, साधुओं
के अंतर्मन में भी
बहुजन के प्रति
दुर्गंधी घृणा
इस कदर आसन जमाए बैठी रहती है कि
वक्त आने पर वह निकल ही जाती है-
‘‘कौआ चले हंस की चाल’’
मुनि ने अपनी वाणी से
बहुजन तो बहुजन
कौआ को भी नहीं बख्शा।
(जैन मुनि तरुण सागर को, जिन्होंने बहुजन के लिए ‘कौआ चले हंस की चाल’ जैसे शब्दों का एकाधिक बार प्रयोग किया था।)
महामानव
महान हैं
तो उनकी बातें भी महान मानी जाती हैं
कालजयी कही जाती हैं
त्रिकाल सत्य हो जाती हैं।
महानता के बोझ से लदे महामानव
जिस-तिस को महानता के सर्टिफिकेट भी बांटते रहते हैं।
एक दिन किसी ने पूछ ही दिया,
आप तो महान बनाने की फैक्ट्री बनते जा रहे हैं,
महामानव ने भी छूटते ही जवाब दिया-
बोलने से कोई महान हो जाता है क्या?
फिर महामानव ने उसमें यह भी जोड़ा-
‘वचनम् किम् दरिद्रता’।
महामानव ने खुद
अपने तमाम लिखतन-वक्तन पर
सवालिया निशान लगा दिया था!
सामाजिक न्याय
कोयरी लड़ रहा यादव से
यादव लड़ रहा कुर्मी से
कुर्मी लड़ रहा केवट से
जाट लड़ रहा गुज्जर से
गुज्जर लड़ रहा माली से।
कलबार लड़ रहा चमडि़या से
चमडि़या लड़ रहा कलाल से
सुनार लड़ रहा तेली से
तेली लड़ रहा रौनियार से
रौनियार लड़ रहा हलवाई से
हलवाई लड़ रहा कानू से।
कुम्हार लड़ रहा कहार से
कहार लड़ रहा हज्जाम से
हज्जाम लड़ रहा बढ़ई से
बढई लड़ रहा लुहार से
लुहार लड़ रहा धानुक से
धानुक लड़ रहा गड़ेरिया से
गड़ेरिया लड़ रहा मल्लाह से।
चमार लड़ रहा खटिक से
खटिक लड़ रहा भंगी से
भंगी लड़ रहा दुसाध से
दुसाध लड़ रहा मांझी से
मांझी लड़ रहा धोबी से
धोबी लड़ रहा पासी से।
गोंड लड़ रहा मीना से
मीना लड़ रहा मुंडा से
मुंडा लड़ रहा सोरेन से
सोरेन लड़ रहा मरांडी से
मरांडी लड़ रहा हैम्ब्रम से
हैम्ब्रम लड़ रहा भूरिया से।
जुलाहा लड़ रहा ईंटाफरोश से
ईंटाफरोश लड़ रहा कादरी से
कादरी लड़ रहा अंसारी से
अंसारी लड़ रहा आलम से
आलम लड़ रहा मंसूरी से
मंसूरी लड़ रहा हुसैन से
हुसैन लड़ रहा अनवर से
अनवर लड़ रहा अली से।
कैसे मिलेगा सामाजिक न्याय?
कौन लेगा सामाजिक न्याय?
कब मिलेगा सामाजिक न्याय?
इस मुल्क से चलता कर दिया जाएगा सामाजिक न्याय!
प्रशांत महासागर
उसने प्रशांत महासागर को हिलकोर दिया
महासागर में सुप्त पड़े समस्त जीव-जंतुओं में
खलबली मच गई
यह खलबली बड़े जीव-जंतुओं में तो थी ही
लेकिन छोटे जीव-जंतुओं में
यह हड़कम्प के रूप में दाखिल हुई।
उन्हें अपने जीवन के नष्ट होने का अंदेशा सताने लगा
जिसको पहले ही
लगभग नष्टप्राय कर दिया गया था
फिर भी अपनी नामालूम-सी हैसियत को बचाने की फिक्र में
दुबले होने लगे वे।
दरअसल,
प्रशांत महासागर के इस कदर आदि हो चुके थे वे
कि पाने की चिंता कम
और विलुप्त हो चुके अस्तित्व की रक्षा की ही गरज उन्हें ज्यादा थी।
सत्ता और जाति
पहली बार
उन्होंने जब अपनी जाति को पुरस्कृत किया
लोगों का ध्यान नहीं गया।
दूसरी बार
उन्होंने जब अपनी जाति को पुरस्कृत किया
लोगों का ध्यान गया।
तीसरी बार भी
उन्होंने जब अपनी ही जाति को पुरस्कृत कर दिया
लोगों का दिमाग ठनका।
चौथी-पांचवीं बार भी
जाति ही पुरस्कृत हुई
अब लोगों ने अपना दिमाग लगाना बंद कर दिया था।
कैसे टूटेगी जाति?
कौन तोड़ेगा जाति?
ऐसे ही तो
मजबूत नहीं हुई जाति!
अपनी चाम की तरह प्यारी है जाति!
सभ्यता
जो चीजें ढंककर रखी जाती रहीं
अगर वे उभरने लगें
तो भड़काऊ लगेंगी ही।
चीजें भड़के नहीं
इसीलिए उसे ढंके नहीं।
चीजों को उभरने देना
सभ्यता का परिचायक है
चीजों को ढंककर,
दाबकर रखना
बर्बरता की निशानी है।
सादिओ माने
तुम एक ऐसे फलदार वृक्ष हुए
जिसने अपने फलों को
उनको खिलाने का काम किया
जिन्हें फल नहीं
पत्ते खाने को मिले।
तुम एक ऐसे गुलशन हुए
जिसने अपने फूलों पर
देवताओं का नहीं
अपना नहीं
माली-मालन का अधिकार जमाया।
तुम एक ऐसी लबालब नदी हुए
जिसने अपने पानी पर
उनका अधिकार किया
जिनकी ओस चाटे प्यास बूझती रही।
तुम एक ऐसे हरे-भरे खेत हुए
जिसने अपनी फसलों को
उनके घर पहुंचाया
जिनसे अन्नपूर्णा का बैर कराया गया।
तुम सेनेगल की धरती की वह चमक हो
जिसकी आभा
पूरे ब्राह्मंड में फैल गई है।
सादिओ माने,
तुम इस विशाल पृथ्वी पर वह शोभायमान मुकुट हो
जिसको पहनने की पात्रता मनुष्य जाति में कहां!
(सेनेगल के सादिओ माने फुटबॉल खिलाड़ी हैं। उनकी कमाई अरबों में मानी जाती है लेकिन अपना काम एक टूटे फोन से चलाते हैं। अपनी कमाई का बहुलांश अपने देश की गरीब और शिक्षा से वंचित जनता की जरूरतों को पूरा करने में खर्च कर डालते हैं। कई स्कूल्स खुलवाए हैं उन्होंने सेनेगल में। और भी कई काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि गरीबी उन्होंने देखी है इसीलिए दिखावा और चमक-दमक उन्हें पसंद नहीं।)
प्यास-भूख
श्वान बहुत प्यासा था
बाल्टी पानी से लबालब थी
बाल्टी पर ढ़क्कन चढ़ा रखा था
ढ़क्कन पर पूरी एक ईंट
श्वान पानी पिए तो पिए कैसे
जैसे-जैसे श्वान की प्यास बढ़ती जाती
उसका हलक सूखता जाता
बाल्टी के इर्द-गिर्द
उसकी ऊंची कूद बढ़ती जाती
ढ़क्कन और ईंट पर
उसकी गुर्राहट तेज होती जाती
ऐसे में बाल्टी कब औंधे मुंह गिरी
ढ़क्कन कहां फेंकाया
ईंट कहां लूढक गई
पानी जमीन पर कैसे पसर गया
श्वान के हलक में वह कैसे उतर गया
किसी को कुछ नहीं पता
क्या आदमी का भी ऐसे ही पता चले?
अ-नागरिक
आज वे मुसलमानों की नागरिकता पर सवाल उठा रहे हैं
कल ईसाईयों की नागरिकता पर सवाल उठाएंगे
परसों बौद्धों की नागरिकता पर
तरसों जैनों की नागरिकता पर
नरसों सिखों की नागरिकता पर
दरसों आदिवासियों की नागरिकता पर
मरसों दलितों की नागरिकता पर
हरसों पिछड़ों की नागरिकता पर सवाल उठाएंगे।
कैसा समय आ गया है
जिनकी नागरिकता खुद-बखुद संदेह के घेरे में है
वे हमसे नागरिकता का सर्टिफिकेट मांग रहे हैं?
संपूर्ण क्रांति : एक छलावा
माना कि आपने उसे
रोटी, कपड़ा, मकान दिया
स्कूल भेजा, कॉलेज भेजा
नौकरी दिलाई।
ढ़ोर-गंवार से मनुष्य बनाया
मनुष्य से बेहतर मनुष्य बनना सिखाया
लड़ना सिखाया, उड़ना सिखाया
मान-सम्मान दिलाया।
जीवन की राहों पर चलना सिखाया।
जंजीरों और बेडि़यों को तोड़ना सिखाया।
दुनियाभर की गुलामी से आजाद किया।
इतना सब कुछ आपने किया,
लेकिन अपनी गुलामी में क्योंकर कैद किया?
हायरार्की
हायरार्की
उस समय मनुवाद में तब्दील हो जाती है
जब नीचे वालों की नहीं सुनी जाती है
और ऊपर वालों को
अघोषित रूप से
नीचे वालों की
गर्दन उड़ा देने का फरमान मिला होता है।
वर्तमान व्यवस्था में
हायरार्की
कमोबेश मनुवाद का ही
परिष्कृत अंग्रेजी रूप है।
मूर्तियों का देश उर्फ उत्तर समाजवादी काल
अयोध्या में राम मंदिर का जब भूमिपूजन किया गया
तब एक दूसरी राजनीतिक पार्टी ने घोषणा की कि,
हम रामलला की मूर्ति अयोध्या की तरह
पूरे देश में स्थापित करेंगे।
परशुराम की मूर्ति
जब तीसरी पार्टी ने लखनऊ में स्थापित करने की घोषणा की,
तब एक चौथी पार्टी ने वादा किया कि,
हम परशुराम की सबसे ऊंची मूर्तियां
पूरे राज्य में स्थापित करेंगे।
मनु की मूर्ति
जब पांचवीं पार्टी ने राजस्थान हाईकोर्ट के अलावा
पूरे देश की हाईकोर्टो में स्थापित करने की घोषणा की,
तब छठी पार्टी ने ऐलान किया कि,
हम मनु महाराज की मूर्ति
सुप्रीम कोर्ट के प्रांगण में स्थापित करेंगे।
गौरतलब है कि ये घोषणाएं
वे पार्टियां करती जा रही थीं
जो कल तक स्वर्ग पर धावा बोलने की डींगें हांकती थीं।
जहां जिंदा मूर्तियों की उपेक्षा होने लगती है
वहीं मूर्दा मूर्तियों की पूजा शुरू हो जाती है।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं.)
सम्पर्क
मोबाईल- 9971432440
बहुत अच्छी कविताएं पंकज भाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित रचनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय है। शुभ कामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ
जवाब देंहटाएं