सुभाष राय की कविताएँ
सुभाष राय |
परिचय
जन्म एक जनवरी 1957 को बड़ागांव (मऊ नाथ भंजन) में। आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन, जेलयात्रा। एक काव्य संग्रह ' सलीब पर सच' और लेखों का एक संग्रह 'जाग मछन्दर जाग' प्रकाशित। 'समकालीन सरोकार' का एक वर्ष तक सम्पादन। प्रतिष्ठित 'नयी धारा रचना सम्मान' एवं 'माटी रतन सम्मान' से नवाजे जा चुके हैं। फिलहाल जनसंदेश टाइम्स के प्रधान सम्पादक के रूप में लखनऊ में कार्यरत।
कहते हैं, तस्वीरें सब कुछ बयां कर देती हैं। लेकिन क्या यही सच है। क्या 'सम्पूर्ण सच' जैसा कुछ है भी। बहुत कुछ तस्वीरों में दर्ज होने से रह भी जाता है। आखिर तस्वीरों की भी अपनी एक सीमा होती है। लेकिन तस्वीरें भी आखिर एक दिन बदलती हैं। अलग बात है कि समय बदलने के साथ साथ उनको देखने की दृष्टि बदल जाती है। उनके मायने तक पूरी तरह बदल जाते हैं। सुभाष राय ने इन तस्वीरों के हवाले से उस सच को रेखांकित करने का प्रयास किया है जिस पर जाने अनजाने बात करने से अब तक बचा जाता रहा है। सुभाष राय की सूक्ष्म दृष्टि उन प्रसंगों पर पड़ती है जो शब्दों के हवाले से भी बाहर रह जाते हैं। यहीं पर तो कवि की सामर्थ्य दिखाई पड़ती है। कोरोना महामारी ने भले ही समूची दुनिया को एकबारगी ठप्प कर दिया हो लेकिन कविता की गतिमानता को वह नहीं रोक पाई। कोरोना को ले कर कई उम्दा कविताएँ सुभाष जी ने लिखी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है चर्चित कवि सुभाष राय की कुछ नई कविताएँ।
सुभाष राय की कविताएँ
वही जियेंगे कल
एक युग बाद नदी की
देह में उतरी है धूप
उसके भीतर चमक रहीं हैं
मछलियों की आंखें
वह नहा रही है अपने ही
जल में
आसमान का रंग निखर आया
है
बादल और सफेद हो गये हैं
हिमालय काफी दूर से
दिखने लगा है
मानो वह सैकड़ों मील
दक्षिण खिसक आया हो
परिंदों की आवाजें तेज
हो गयी हैं
जिन्हें जंगल के भीतर
खदेड़ दिया गया था
वे अपनी सरहदें लांघ
निकल आये हैं
गांवों, कस्बों और शहरों की सीमाओं तक
जंगल पास आना चाहता है
आगे बढ़कर
अचानक बहुत चौड़ी हो गयी
हैं सड़कें
सारा बोझ सिर से उतार कर
अनकहे सुनसान में भागती
हुईं
कई खूबसूरत जगहें लाशों
से पटी पड़ीं हैं
मुर्दाघरों और
कब्रिस्तानों के बाहर
अपनी बारी के इंतजार में
हैं लाशें
लोगों को गले लगाना
चाहती हैं लाशें
लोग लाशों से बचकर निकल
रहे
लोग जिंदा लोगों से और
भी बचकर निकल रहे
गहरी बहसें हो रहीं
चारों ओर
कितना फासला रखा जाय
मृत्यु से?
मनुष्य से बचकर क्या मृत्यु
से बचना संभव है?
क्या अकेले रहकर मृत्यु
को टाला जा सकता है?
किन चीजों में छिपकर आ
सकती है मृत्यु?
क्या वह हवा में उड़कर
भी आ सकती है?
इस बहस से बिलकुल अलग
जान हथेली पर लिये मृत्यु का पीछा करते
कुछ साहसी लोग आ गये हैं
सामने
पर वे जिनकी मुक्ति के
लिए लड़ रहे
उन्हीं के हाथों पत्थर
खा रहे
हाथ भी कटवा रहे
बड़े- बड़े तानाशाह हांफ
रहे
एक मामूली वायरस का कुछ
नहीं
बिगाड़ सकते ताकतवर
परमाणु बम
असहाय हैं मौलवी, पादरी, पुजारी
और धर्माधिकारी
ईश्वर बेमियादी
क्वारेंटीन में चला गया है
सारी क्रूरताएं और बर्बरताएं
याचना की मुद्रा में खड़ी हैं निरुपाय
जो जीतना चाहते हैं इसे
युद्ध की तरह
उनसे पूछो, पांडव भी कहां
जीत सके थे महाभारत
जीतते तो हिमालय से अपनी
ही
मृत्यु का वरदान क्यों
मांगते
युद्ध जब भी होगा, लोग मारे जायेंगे
और मौतों पर कोई जीत का
उत्सव
आखिर कैसे मना पायेगा
जीतेंगे वे जो लड़ेगे
युद्ध टालने के लिए
भूख, बीमारी और मौतों से लोगों को बचाने के लिए
कल सिर्फ वही जियेंगे जो
आज मरेंगे दूसरों के लिए
12/4/2020
सड़क एक संभावना
उन्होंने अचानक शहर
पर ताला लगा दिया
हजारों लोग सड़क पर आ गए
जितने लोगों को रोका गया
उससे ज्यादा निकल आये
सड़कों पर
दुनिया भौचक रह गयी
अनगिन पांवों को दुख भरी
लय में
एक ही दिशा में चलते
देखकर
कुछ थकान में, कुछ नींद में
मारे गये
रोटियां टूटे हुए सपनों
की
मानिंद बिखर गयीं पटरी
पर
लोग मरते गये और जीने की
जिद बढ़ती ही चली गयी
जो सड़क पर होंगे
एक न एक दिन समझ ही
जायेंगे
कि सड़क एक संभावना है
वे समझ जायेंगे कि जैसे
सड़कें तमाम मुश्किलें
पार
करती चली जाती हैं गांव
तक
बिलकुल वैसे ही जा
सकतीं हैं संसद तक
9/5/2020
तस्वीरें
तस्वीरों में जितना
दिखता है
उससे ज्यादा रह जाता है
बाहर
तस्वीरें कहां बताती हैं
कि कभी भी
बदल सकती है तस्वीर
रात-दिन चलते मजदूरों के
चेहरों पर गहरी थकान
और रास्तों पर जगह-जगह
मौत के निशान
तस्वीरों में दिखते हैं
पर कोई भी तस्वीर कहां
बताती है
कि सारा दुख गुस्से में
बदल जाय
तो दरक सकते हैं बड़े से
बड़े किले
तस्वीरें अधूरी रहती हैं
हमेशा
जरा सोचो उन तस्वीरों के बारे में
जो अब तक किसी फ्रेम
में आईं ही नहीं
23/5/2020
घर नहीं पहुँचा अभी
मैं गांव तो आ गया हूँ
पर घर नहीं पहुँचा अभी तक
शायद किसी और गांव में आ गया हूँ
या मेरा गांव ही समा गया है
किसी और गांव में
जब मैं चला गया था सूरत
घर पीछे ही छूट गया था
कुछ ईंटे और उसके ऊपर तनी एक जर्जर छान
एक कोने चूल्हा जो अक्सर ठंडा
ही रहा मां के जाने के बाद
एक खूंटा, जिसमें बंधी रहती थी बकरी
एक पौधा, पेड़ होने की संभावना से भरा
नहीं ले जा पाया था गुदरी और पतीली भी
यहीं छूट गयी थी साथ-सोहबत
पलग्गी, परनाम, राम- राम, अस्सलाम
किस झोले में ले जाता
अपनों के बीच अपना होना
थोड़ा मैं भी छूट गया था जाते हुए
जितना यहां रह गया था
उसी को पाने की जिद के पांव
चलकर आ पहुँचा गांव
पर जब से लौटा हूँ
ढूंढ रहा अपना यहां छूटा
हुआ हिस्सा
जमीन पर, वनस्पतियों में
दीवारों में, गलियों में, खेतों में
लोगों की आंखों में
उनके गुस्से में, प्यार में, मसखरी में
कई दीवारें उठ खड़ी हुईं हैं
रिश्तों के बीच से होकर
मैं गांव तो आ गया हूँ
पर घर नहीं पहुँचा अभी तक
कह नहीं सकता कि पहुँच पाऊंगा कभी
ईंटों के बीहड़ में सारी यादें
जाने कहां बिला गयी हैं
मां और बापू के पांवों
की गंध भी
मानो घुल गयी है जमीन
में
और जमीन है कि कुछ बोलती ही नहीं
29/6/2020
इतनी दूरी भी ठीक नहीं
दूरी इतनी ही रहे कि
आंसुओं तक पहुँच सकें हाथ
इतनी ज्यादा नहीं कि
धड़कनें भी न सुनायी पड़ें
इतनी तो बिलकुल ही नहीं कि
अपने मनुष्य होने पर
संदेह होने लगे
3/7/2020
बेजान आंकड़ों का हिस्सा
कल तक वह बिलकुल ठीक था
खुश था, बात कर रहा था
कह रहा था, सब कुछ भूलकर
रोज दस मिनट हंसना चाहिए
कहते-कहते हंस पड़ा था
आज सुबह उठा
पत्नी ने चाय दी
पीकर बोला, बहुत अच्छी बनी है
टहलने गया, लौटकर स्नान किया
अगरबत्ती जलायी, हाथ जोड़कर
दो मिनट प्रार्थना की
मां को दवा दी और उनसे कहा
दर्द को काबू में रखना है तो
ज्यादा से ज्यादा आराम कीजिये
बच्चों से पढ़ाई- लिखाई के बारे में पूछा
उनसे कहा, लगन से पढ़ो
समय बहुत खराब है
समय से आफिस के लिए निकला
रास्ते में जो भी मिला, सबसे यही कहा
भाई जरा फासले से मिलो
मास्क लगा के निकलो
बचाव ही एकमात्र उपाय है
शाम को अचानक गला खराब हुआ
सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई
लाद-फांद के अस्पताल गया
उसके लिए कोई यज्ञ नहीं हुआ
डाक्टरों की कोई टीम नहीं बनायी गयी
कोई बुलेटिन जारी नहीं हुई
अगले दिन वह बेजान
आंकड़ों का हिस्सा बन कर रह गया
17/7/2020
दो पक्षियों की बात
वे सिर्फ चूँ चाँ चीं, चूँ चां चीं नहीं करते
तो फिर रोज सवेरे अलग- अलग डाल पर बैठे
दो पक्षी आखिर क्या बात करते हैं
वे बात कर सकते हैं खाना-पानी के बारे में
बहेलिये की निर्ममता के बारे में
जंगल पर उसकी निगरानी के बारे में
इस बारे में कि रोज कुछ पक्षी
आखिर कहां गायब हो जाते हैं
और जो कोई भी मुंह खोलता है
वह अगले दिन पिंजरे में क्यों मिलता है
वे बात कर सकते हैं कि कैसे
बहेलिया कैद पक्षियों से उनके
घोंसलों, अंडों और बच्चों के बारे में पूछता है
पूछता है कि उनमें क्या-क्या बातें होती हैं
जाल लेकर उड़ जाने की साजिश में
आखिर कौन-कौन शामिल है
सही जवाब देने पर भी संतुष्ट नहीं होता है
कई बार गुस्सा होकर पंख नोंच लेता है
गर्दन दबाने की कोशिश करता है
कई बार प्यार से कहता है कि आजादी
चाहते हो तो मुखबिर बन जाओ
एक पक्षी बोलता है, ज्यादा चूं- चां ठीक नहीं
बच्चों को समझाना होगा कि वे
ऊंची उड़ान के चक्कर में न पड़ें
हो सके तो बहेलिये के पक्ष में रहें
उसे शिकार करने में मदद करें
दूसरा कहता है, मेरे पुरखे हमेशा
बोलते आये हैं, मैं भी चुप नहीं रहूंगा
बहेलिये को चकमा दे सकते हैं मेरे पंख
ऐसे बहुतेरे आये और चले गये
एक दिन इसे भी जाना ही होगा
इस सवाल पर रोज दोनों में खूब बकझक
होती है पर सहमति कभी नहीं होती
हो सकता है, दोनों कोरोना पर बातें करते हों
आदमियों से दूरी बनाये रखो
वे कोरोना से भी खतरनाक हैं
वे लाश भी हजम कर जाते हैं
संभव है वे प्रेम की बातें करते हों
लेकिन हम क्या करेंगे प्रेम का
प्रेम करना कहां आया हमें
मानुष की नजर तो हमेशा ही
कुछ पाने पर टिकी रही
उसने मानुष को कब कितना प्रेम किया
दो पक्षी कुछ तो बात करते हैं
पता नहीं, हम उनकी बातों का
सही अनुवाद कर पाये या नहीं
हे, पक्षियों ! तुम्हीं बताओ न, तुम रोज सुबह
आपस में क्या बातें करते हो?
तुम्हें हिंदी आती है क्या?
(विष्णु नागर जी को पढ़ते हुए)
19/8/2020
एक आम सलाह
चुप रहो कि तुम्हारे होने का पता न चले
ज्यादा बोलोगे तो भी एक दिन तुम्हारा
होना संदिग्ध करार दिया जायेगा
गिरफ्तारियों और हत्याओं पर
बेवजह रंज करना छोड़ो
आदिम गुफाओं के आमंत्रण सुनो
मृत्यु और मुक्ति के उत्सव का हिस्सा बनो
रातों में बेवजह जागने से तबियत खराब होगी
कोशिश करो कि ब्लड प्रेशर ठीक रहे
बात-बात पर आपा न खोना पड़े
दुख और उदासी से क्या हासिल होगा
बीमारियों और मौतों की बातें छोड़ो
बच्चों की खुशियों के बारे में सोचो
सोचो कि कहीं कोई भय नहीं है
कोई अन्याय नहीं है, कोई यातना नहीं
सोचो कि मुलुक में रामराज्य है
31/7/2020
मूर्तियों के जंगल में
सुन रहा हूँ
डरावने सन्नाटे में खांसने, छींकने और
शून्य में डूबते जाने की आवाजें सुन रहा हूँ
लाशों का हंसना सुन रहा हूँ
अस्पतालों और श्मशानों की
असमर्थता सुन रहा हूँ
पहली बार इतने करीब से
मृत्यु की धड़कनें सुन रहा हूँ
सुन रहा हूँ
सफलता के आत्मगान सुन रहा हूँ
बिहान के पक्ष में रात का बयान सुन रहा हूँ
श्मशान और कब्रिस्तान सुन रहा हूँ
तेज धार वाले श्लोक सुन रहा हूँ
भाषा में क्रूरता सुन रहा हूँ
टैंक सुन रहा हूँ, तोप सुन रहा हूँ
झूठ के घंटनाद सुन रहा हूँ
सहयोग के लिए आभार सुन रहा हूँ
मूर्तियों के जंगल में पत्थर की
जयजयकार सुन रहा हूँ
15/7/2020
नीरो
खतरनाक बात यह नहीं है
कि रोम जल रहा है
खतरनाक बात यह है
कि अब आग रोम के अलावा
छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में
भी दाखिल हो गयी है
बुझाने वाला कोई नहीं है
कहते हैं आग नीरो ने ही लगायी है
वह चाहता है कि आग धधकती रहे
ताकि वह अपने शत्रुओं
को लांछित कर सके
मजेदार बात यह है कि नीरो के विरोधी भी
यही चाहते हैं कि आग भड़कती रहे
और वे नीरो को नाकाबिल ठहरा सकें
पर ज्यादातर लोग नीरो की बांसुरी सुन रहे हैं
उसकी कला पर कुर्बान हो रहे हैं
उन्हें नहीं लगता कि जो इतनी
सुंदर बांसुरी बजा सकता है
वह रोम में आग लगायेगा
उन्हें तो कहीं धुआं भी नजर नहीं आ रहा
फिर भी उन्हें यकीन है कि अगर
कहीं आग लगी है तो आग लगाने में
सिर्फ विरोधियों का हाथ है
नीरो तो बिलकुल निष्पाप है
11/8/2020
महिमा
नहीं पता उस धूलि का क्या हुआ
जो उनके चलने से उड़ी
उस पानी का क्या हुआ
जिससे उनके चरण पखारे गये
उन सब लोगों का क्या हुआ
जिन्होंने कभी न कभी
उन्हें स्पर्श किया, उनका स्पर्श पाया
पर इतना पता है कि जिन्होंने भी
उनके चरणों में शरण ली
उनका कल्याण हुआ
उनके दुश्मन मारे गये
उन्हें सत्ता मिली, सुख मिला
यह भी पता है कि उनके
स्पर्श में चमत्कार है
उन्होंने एक पत्थर को छुआ
और वह सुंदर स्त्री में बदल गया
उनके चरणों की महिमा आज भी बरकरार है
उनके चरण छूकर ही अपने
अभियान पर निकलते हैं हत्यारे
23 /7 /2020
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
9455081894
एक साथ सशक्त कविताएँ पढ़ने का दुर्लभ अवसर मिला है।
जवाब देंहटाएंएक साथ सशक्त कविताएँ पढ़ने का दुर्लभ अवसर मिला है।
जवाब देंहटाएंएक साथ सशक्त कविताएँ पढ़ने का दुर्लभ अवसर मिला है।
जवाब देंहटाएंकमाल की कविताएँ
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